अनंताक्षरी - लॉजीकल (हिंदी)

Submitted by admin on 31 March, 2008 - 00:08

अंताक्षरीचे नियम

१. गाण्याची सुरूवात ही सुरूवातीपासून केली जावी. फक्त सुरूवातीचे आलाप किंवा गुणगुणणे वगळावे. गाण्याचे धृपद पूर्ण लिहीले जावे. धृपद पूर्ण लिहीले नसेल किंवा गाण्याची सुरूवात सुरूवातीपासून केली नसेल तर गाणे बाद धरले जाईल.
२. गाणं त्या पानावरुन वाहून गेल्याशिवाय त्याची पुनरुक्ती करु नये.
३. दोन किंवा अधिक गाणी एकाच वेळी किंवा काही अंतराने पण एकाच अक्षरापासून लिहीली गेली तर सर्वात आधी आलेलं गाणं ग्राह्य धरुन पुढील गाणे लिहावे.
४. अ, आ, ओ सारखे स्वर स्वतंत्रपणे वापरले जावेत अपवाद इ / ई आणि उ / ऊ चा).
५. नवीन गाण्याची सुरूवात आधीच्या गाण्याच्या शेवटच्या अक्षराने किंवा शेवटच्या एक अथवा अधिक शब्दांनीही करता येईल. शेवटचा शब्द घ्यायचा असेल तर तो आहे तसाच घेतला जावा. त्याची रूपे किंवा समानार्थी शब्द घेऊ नयेत.
६. हिंदी अंताक्षरीमध्ये शेवटचे अक्षर ' ह ' असेल तर ते गाणे लिहीणार्‍याने पर्याय देणे अपेक्षित आहे. पर्याय दिल असेल तरी तो घेणे बंधनकारक नाही. पर्याय दिला नसेल तर ' ह ' पासून किंवा उपांत्य अक्षरापासून गाणे लिहावे.
७. हिंदी अंताक्षरीमध्ये ' जाये ' किंवा ' जाए ' आणि तत्सम शब्दांच्या बाबतीत जसे आधीचे गाणे संपले असेल त्याप्रमाणे अंत्य अक्षर धरले जावे.

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दुनिया में, लोगों को
धोखा कभी हो जाता है
आँखों ही, आँखों में
यारों का दिल खो जाता है

अनहोनी को होनी कर दें होनी को अनहोनी
एक जगह जब जमा हों तीनों अमर अकबर एन्थोनी
अनहोनी को होनी ...

एक एक से भले दो दो से भले तीइन
दूल्हा दुल्हन साथ नहीं बाजा है बारात नहीं
अरे कुछ डरने की बात नहीं
ये मिलन की रैना है कोई ग़म की रात नहीं
यारों हँसो बना रखी है क्यूँ ये सूरत रोनी
एक जगह जब जमा ...

होंठों में ऐसी बात मैं दबाके चली आई
खुल जाये वोही बात तो दुहाई है दुहाई
हाँ रे हाँ, बात जिसमें, प्यार तो है, ज़हर भी है, हाय
होंठों में...

हो शालू...
रात काली नागन सी हुई है जवां
हाय दय्या किसको डँसेगा ये समा
जो देखूँ पीछे मुड़के
तो पग में पायल तड़पे
आगे चलूँ तो धड़कती है सारी अंगनाई
होंठों में...

मैं प्यार का राही हूं,
तेरी जुल्फ के साए में, कुछ देर ठहर जाऊं,

तुम एक मुसाफिर हो,
कब छोड़ के चल दोगे, ये सोच के घबराऊँ,

बर्याच दिवसात लॉजिक बदलेलेले नाही.
घ्या, कपड्यांमधील वैविध्य दर्शवणारी .... तसा उल्लेख असणारी गाणी. . मग त्यात रेशम, मलमल, खादी असेल किंवा ओढणी, कुर्ता, साडी, घागरा, चोली असे उल्लेख असतील.

रेशमी सलवार कुर्ता जाली का
रूप सहा नहीं जाये नखरे वाली का होय
रेशमी सलवार कुर्ता जाली का
रूप सहा नहीं जाये नखरे वाली का होय
जा रे पीछा छोड़ मुझ मतवाली का
काहे ढूँढे रास्ता कोतवाली का
जा रे पीछा छोड़ मुझ मतवाली का
काहे ढूँढे रास्ता कोतवाली का

पान खाए सैयां हमारो
सांवली सुरतिया होठ लाल-लाल
हाय हाय मलमल का कुरता
मलमल के कुर्ते पे छित लाल-लाल

मेरा जुता है जपानी
ये पतलून इंग्लीशस्तानी
सर पे लाल टोपी रुसी
फिर भी दिल है हिंदूस्तानी

साला मैं तोह साहब बन गया
अरे साला मैं तोह साहब बन गया
रे साहब बनके कैसा तन गया
यह सूट मेरा देखो
यह बूट मेरा देखो
जैसे गोरा कोई लंदन का

सर पे टोपी लाल, हाथ में रेशम का रूमाल,
हो, तेरा क्या कहना
गोरे-गोरे गाल पे उलझे-उलझे बाल,
हो, तेरा क्या कहना

ओ हरे दुपट्टे वाली
सीदी साधी भोली भाली
जानम रुक जाना
तू सलमा है या सुल्ताना
तू सलमा है या सुल्ताना
नाम तो अपना बतलाना
ओ जनम रुक जाना
जानम रुक जाना, रूक जाना
जानम रुक जाना

नीला दुपट्टा पीला सूट
चली चली मैं दिल को लूट
हर लड़का मेरी नज़र में
मेरी जूती मेरा बूट
ये हा
ये लड़की का हक़ है
लड़कों से वह जायी रूठ
के लड़के फिर भी आएंगी
पीछे पहन के सूट बूट

पल्लो लटके रे म्हारो पल्लो लटके
पल्लो लटके रे म्हारो पल्लो लटके
ज़रा सा, ज़रा सा, ज़रा सा
टेढो होजा बलमा

घूँघट की आड़ से दिलबर का
दीदार अधूरा रहता है
जब तक ना पड़े, आशिक़ की नज़र
सिंगार अधूरा रहता है

सरफ़रोशी की तमन्ना, अब हमारे दिल में है।
देखना है ज़ोर कितना, बाज़ु-ए-कातिल में है?

करता नहीं क्यूँ दूसरा कुछ बातचीत,
देखता हूँ मैं जिसे वो चुप तेरी महफ़िल में है
ऐ शहीदे-ए-मुल्क-ओ-मिल्लत, मैं तेरे ऊपर निसार,
अब तेरी हिम्मत का चर्चा ग़ैर की महफ़िल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

वक़्त आने पर बता देंगे तुझे, ए आसमान,
हम अभी से क्या बताएँ क्या हमारे दिल में है
खेँच कर लाई है सब को क़त्ल होने की उमीद,
आशिक़ोँ का आज जमघट कूच-ए-क़ातिल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है।

है लिये हथियार दुश्मन, ताक में बैठा उधर
और हम तैय्यार हैं; सीना लिये अपना इधर।
खून से खेलेंगे होली, गर वतन मुश्किल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना, अब हमारे दिल में है।

हाथ, जिन में हो जुनूँ, कटते नहीं तलवार से;
सर जो उठ जाते हैं वो, झुकते नहीं ललकार से।
और भड़केगा जो शोला, सा हमारे दिल में है;
सरफ़रोशी की तमन्ना, अब हमारे दिल में है।

हम तो निकले ही थे घर से, बाँधकर सर पे कफ़न
जाँ हथेली पर लिये लो, बढ चले हैं ये कदम।
जिन्दगी तो अपनी महमाँ, मौत की महफ़िल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना, अब हमारे दिल में है।

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ह्यात कफ़न पाचव्या कडव्यात आल्याने एवढी सगळी लिहावी लागली. अजून दोन कडवी आहेत, पण जाऊ दे.