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गिरि, तु सुरुवात कर. एक दिग्गज आलय आत्ता बाकीचे पण येतील हळुहळु...
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एक वेडा ढग आज धावत खाली आला बिलगला धरतीला आणि माझी हो म्हणला ती म्हणाली "खुळ्या, असा कसा रे तु? तुझ्या येण्यानेच खुलते मी तुझ्या येण्यानेच सजते मी तुझ्याशिवाय माझे अस्तित्वच कसले?" रुप...
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Abhijat
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| Wednesday, June 13, 2007 - 11:53 am: |
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शांत अश्या मौनकाळी फूले शब्दांची झाली अबोलीच्या त्या फूलांनी धरती सजून गेली
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Gobu
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| Wednesday, June 13, 2007 - 11:59 am: |
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मित्रहो, काय सही चाललेय इथे! सन्घमित्रा, मानक्या, जगु, गिरीराज, प्रीती, रुप्स.., सुन्दर! राज्या, "चुकुन एक थेम्ब" अतिSSशय सुन्दर!!!
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Rajya
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| Wednesday, June 13, 2007 - 12:06 pm: |
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गोबु, धन्स रे अरे तिकडे कथा कादंबरीवर धुमाकुळ घातला आहेस, आता ईकडे ही सुरु होऊ द्या.
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R_joshi
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| Thursday, June 14, 2007 - 4:46 am: |
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राजा,रुप्स,अभि, माणिक सुंदर चारोळ्या लिहिलात गोबु तु कोठे राहिलास आसवांच्या गावात सुखदु:ख नांदते सुख सरितेपरी वाहते दु:ख घन होऊनी बरसते प्रिति
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Rajya
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| Thursday, June 14, 2007 - 5:34 am: |
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काल चिंब पावसात आठवणींचा गाव जागा झाला गालावरच्या थेंबात नकळत, एक अश्रु झिरपला
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Jagu
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| Thursday, June 14, 2007 - 5:45 am: |
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गोबु धन्यवाद. आसवांच गाव कोरड बनुन सज्ज होत धरतीला सुखावण्यासाठी धारांच्या प्रतिक्षेत होत.
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Jagu
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| Thursday, June 14, 2007 - 5:58 am: |
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रुप, अभिजीत, प्रिती, राजा खुप छान आहेत चारोळ्या. पावसाच्या पाण्यामुळे मला तुझ्यापुढे सावरता आल डोळ्यातल्या माझ्या अश्रुला त्याने सोबत वाहत नेल.
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Bee
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| Thursday, June 14, 2007 - 6:14 am: |
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mastach aahe warachee 4Lee, Rajya.
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Rajya
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| Thursday, June 14, 2007 - 6:16 am: |
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जगु, प्रिती, रुप्स बढीया धन्यवाद बी, हवी होती तेव्हा नाकारलीस तु साथ अश्रु अधीर वाहण्या पावसाने दिला हात
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Jagu
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| Thursday, June 14, 2007 - 6:25 am: |
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राजा, छान. पावसाची पहिली सर आठवणींना उजाळा देते डोळ्यात त्यांना साचविण्यासाठी अश्रूंना मोकळे करते.
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R_joshi
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| Thursday, June 14, 2007 - 7:33 am: |
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राजा, जगु छानच आसवांच्या तीरावर आठवणींच गाव वसल पावसाच्या संथ धारेत ते कोठे वाहुन गेल प्रिति
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Rajya
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| Thursday, June 14, 2007 - 8:30 am: |
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प्रिती आठवणींचा वसवलेला गांव अजुनी इथेच आहे तु येशील ही मनीषा मी अतृप्त इथेच आहे
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Rajya
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| Thursday, June 14, 2007 - 8:35 am: |
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आठवणींच्या गावात नेहमीच मी भटकतो तुलाही तिथेच पाहुन क्षणभर मी हरवतो
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R_joshi
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| Thursday, June 14, 2007 - 10:27 am: |
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राजा आठवांच्या पाऊलखुणा नेहमीच मला खुणवतात मी नको नको म्हणताना त्या तुझ्याकडेच वळतात प्रिति
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R_joshi
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| Thursday, June 14, 2007 - 10:34 am: |
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अतृप्त आठवणित तृप्तीची सर बरसली नयनी वसलेली स्वप्ने भेटित साकार झाली प्रिति
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Gobu
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| Thursday, June 14, 2007 - 10:35 am: |
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प्रीती, राजा, जगु, अरे काय चाललय काय इथे! अरे ही झुळुक आहे की चारोळीची बरसात! एकापेक्षा एक!
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Rajya
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| Thursday, June 14, 2007 - 11:08 am: |
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प्रिती अतृप्त आठवणी या कढ गळा दाटे अतृप्त मी तसाही हा जन्म अपुरा वाटे अरे गोबु तु काय करतोयस?
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R_joshi
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| Friday, June 15, 2007 - 5:16 am: |
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राजा अपुर्ण मी तुझ्याशिवाय अतृप्त मी जन्मांतरीची मेघापरी बरस आता आस तुझ्या मिलनाची प्रिति गोबु तु गायबच झालास.
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