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| Archive through June 15, 2007 | 20 | 06-15-07 5:16 am |
Mankya
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| Friday, June 15, 2007 - 5:24 am: |
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स्पर्शांनी नजरेशी होणार्या तडजोडीलाही फेटाळले व्यक्त अव्यक्ताच्या सीमेवर शब्दही बापडे हेंदकाळले ! माणिक !
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धन्यावाद राज्या, प्रिती, गोबुदा राज्या, प्रिति सुरेख आणि माणिक तुझा तर प्रश्नच नाहि... शब्द हेंदकाळले तर काय झाले??? नजरेतुन आणि स्पर्शातुन अव्यक्तहि व्यक्त होते रुप...
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शब्दांवाचुन कळले सारे तुझ्या मनातले भाव सख्या मुक नजर आणि अबोल स्पर्श घेती मनाचा ठाव सख्या रुप...
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आठवणींच्या पाउलखुणा आजन्म अतृप्तच राहिल्या अखेरच्या श्वासांसोबत मी त्या तुलाच वाहिल्या रुप...
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Jagu
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| Friday, June 15, 2007 - 8:19 am: |
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राजा, प्रिती, माणिक, रुप, खुपच छान. गोबू अरे येउदेत रे तुझ्याही झकास चारोळ्या. अखेरच्या श्वासापर्यंत हेंदकाळतील हे शब्द कारण ह्या शब्दांना तुच केले आहेस जाईबंद
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Rajya
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| Friday, June 15, 2007 - 8:29 am: |
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आस तुझ्या मीलनाची घायाळ करुन गेली आठवणींच्या पाऊलखुणात नकळत गुंतुन गेली
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Jagu
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| Friday, June 15, 2007 - 8:42 am: |
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आठवणींच्या पाउलखुणा वेशित उमटल्या होत्या थांबवून त्यांना ठेवण्यासाठी भावना कुंपणाशी झुंजत होत्या.
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Jagu
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| Friday, June 15, 2007 - 8:48 am: |
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नजर आणि स्पर्श दोघांचीही एकच भाषा कृतीतून आपल्या उमटवतात दोघेही मनातील भावना.
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Rajya
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| Friday, June 15, 2007 - 8:55 am: |
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जगु घेऊन आस मीलनाची आठवणींच्या गावात वेशितल्या पाऊलखुणा उमटतील का दारात
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Ajjuka
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| Friday, June 15, 2007 - 3:42 pm: |
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कसल्या या पाउलखुणा कोण येउन गेलं इथे कुणाच्या ह्या वेणा रूतल्यात इथेतिथे
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R_joshi
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| Saturday, June 16, 2007 - 4:34 am: |
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रुप छानच बरसते आहेस राजा, जगु, अज्जुका,माणिक सुंदर रचना वेशीपाशी आठवणिच्या शब्द अनोळखी व्हावेत नजरेतल्या स्पंदनाचे भावहि का गोठावेत? प्रिति
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Jagu
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| Saturday, June 16, 2007 - 7:07 am: |
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राजा, अज्जुका, प्रिती, खुपच छान आहेत रचना. समोर तुला पाहताच शब्द अनोळखी होतात स्पर्श तुझा होताच लाजून अबोल होतात.
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Jagu
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| Saturday, June 16, 2007 - 4:17 pm: |
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धगधगत्या ऋदयी आस मिलनाची पेटली होती मंद गंधित रातराणी तुझ्यासोबत शांत तिला विझवीत होती.
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