Ajjuka
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| Tuesday, June 12, 2007 - 6:48 am: |
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मुक्या झर्याचे झुळझुळ पाणी जलरंगांची आर्त कहाणी
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Ajjuka
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| Tuesday, June 12, 2007 - 6:49 am: |
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खरंच होऊन जाऊद्या!!! आलेच मी थोड्यावेळात.. वैभवा मस्त रे!
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Shyamli
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| Tuesday, June 12, 2007 - 6:52 am: |
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नसतोस भोवताली येतो सुगंध कैसा हा मोगरा मलाही हूल देऊनी गेला
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Mankya
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| Tuesday, June 12, 2007 - 7:10 am: |
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वैभवा, अज्जुका .. सहि है ! अल्लड निरागस झरा कसे हसते खळाळते पाणी अथांग डोहाची कहाणी भिजली व्यथेत लीन वाणी ! माणिक !
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मी तरी हसते कधी अन मी तशी रुसते कुठे तू इथे नसतोस तेव्हा मी इथे असते कुठे ?
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मुका चांदवा नी मुक्याचीच गाणी फुले साथ द्याया मुकी रातराणी
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Shyamli
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| Tuesday, June 12, 2007 - 7:17 am: |
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क्या बात है रे!
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Giriraj
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| Tuesday, June 12, 2007 - 7:21 am: |
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नसतो सभोती ही लटकी कहाणी हृदयीच्या सुगंधा विसरलीस राणी!
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ही कुणाची साद आली हे कुणाचे भास झले चिंबला अश्रूंत गजरा अन सुगंधित श्वास झाले
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सोड आता चौकश्या ह्या ती कुणाची चूक होती खेळही होता जिवाशी वेळही नाजूक होती
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शेवटी कळले न मजला काय मी किंमत करावी माझिया गावात सारी माणसे घाऊक होती
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R_joshi
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| Tuesday, June 12, 2007 - 7:32 am: |
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वाह!!! सर्वच सुरेख लिहित आहेत. जुगलबंदि रंगणार बहुतेक
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ते कसे होते अघोरी वायदे भेटावयाचे वेळ तू टाळायची अन श्वास मी मोजावयाचे
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Shyamli
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| Tuesday, June 12, 2007 - 7:39 am: |
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नाहीच कोणतीही चाहूल या मनाला मी आठवावे तूला कि विस्मरावे स्वत:ला
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Ajjuka
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| Tuesday, June 12, 2007 - 7:55 am: |
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खुळ्या चाहुली किलकिलते कवाड रिकामा रस्ता ओल्या डोळ्याआड
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Ajjuka
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| Tuesday, June 12, 2007 - 7:57 am: |
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माफ करा मी वृत्त बदललं बहुतेक!
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अरे गाव आठवांचा त्याला आसवांची वाट नदी आतून ओलेती तिचे कोरडे ते काठ
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Jayavi
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| Tuesday, June 12, 2007 - 8:09 am: |
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क्या बात है यारो...........जियो मजा आ रहा है...!! अज्जुका, अगं मोकळी होत रहा........वृत्त वेगळं झालं तरी श्यामली मस्तच ! वैभवा....असं भरभरुन लिहायला लागलास की चिंब पावसात भिजल्यासारखं वाटतं गिरी, देवा, माणिक.... सगळॆच मस्त लिहिताहेत....!!
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Ajjuka
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| Tuesday, June 12, 2007 - 8:10 am: |
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भरलेली घागर घराची वाट लेकरू घरी पान्हा काठोकाठ
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Rajya
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| Tuesday, June 12, 2007 - 8:25 am: |
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मध्यरात्री समुद्राकाठी, लाट झेपावली कोणासाठी?
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