Ksha
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| Friday, May 11, 2007 - 8:30 pm: |
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सगळेच यमके होतायत तर "आमी पन आमी पन" रानवेड्या वाटेवर बघितला मी काज़वा रानरेडा त्या म्हणु का, का म्हणु मी काजवा रोज रोज वाट विसरे, वेंधळा कुठला बघा देऊन वाटांचा नकाशा, सणकून एकच वाजवा ~D अनिलभाई, गिरी दिवे, दिवे, दिवे
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श्यामले, आधीच क्षमा मागतो. चुकवुन जात होतो रोजच्या खाटांस मी भीत होतो ढेकण्यां गादीतल्या चाव्यास मी!
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Zakasrao
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| Saturday, May 12, 2007 - 8:48 am: |
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रोज रोज त्याच वाटा हरवलो तरी कसा मी? धुंदवेड्या वाटेवर एकटा केला बुधवार साजरा मी. झकास वेगळे दिवे घे अस सांगायची गरज नाहीच कारण बुधवारी दिवे दिसत असतातच आपोआप.
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Zakasrao
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| Saturday, May 12, 2007 - 8:54 am: |
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दिवे शामली चुकवुन जात होतो रोजच्या वाटांस मी भीत होतो भेटण्या माझ्या देणेकरांस मी.
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Ajjuka
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| Saturday, May 12, 2007 - 11:11 am: |
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अंधारल्या वाटा झपझप झपझप जिभल्या चाटते रात्र लपलप लपलप
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R_joshi
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| Monday, May 14, 2007 - 8:23 am: |
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मी न एकटी होते वाटांची मज साथ होती रातराणिच्या बहराची धुंद अशि ती रात होती प्रिति देवदत,गिरीराज,श्यामली ब-याच दिवसांनी येथे येण केलत
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Gobu
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| Monday, May 14, 2007 - 11:14 am: |
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मित्रहो, अरे वा! छान मैफ़ल जमलीय इथे! कस काय लिहीता येते हो मित्रहो तुम्हाला, फ़ार प्रयत्न केला पण जमत नाही हो आपल्याला! प्रीती, काव्य न लिहीता मी कोमेन्ट लिहील्या तर चालतील ना असो, आणि हा माणिक कुठे गायब झालाय?
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कृपया इथे स्वतः लीहिलेल्या चारोळ्या टाकाव्यात. TP नको.
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Ksha
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| Monday, May 14, 2007 - 9:03 pm: |
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मांडीला संहार सभ्य श्वापदांनी आक्रोशांस मन निर्ढावले
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Mankya
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| Tuesday, May 15, 2007 - 5:38 am: |
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मिलनात चिंब भिजून भाळून गात्रं गेली उत्कट धुंद उसासे माळून रात्र गेली ! माणिक !
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आक्रोशातली आत्ता आर्तताही गेली, निर्ढावलेले मन त्याची संवेदनाही मेली... रुप...
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क्ष, माणिक खासच... आपल्या मिलन घडीला होती चांदण्यांची साथ लाजुन चंद्र लपला काळ्या निळ्या ढगात रुप...
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मॉड, क्षमस्व! माझा वरील टीपी ऊडवुन टाकावा. रुप्स, वेलकम बॅक
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Gobu
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| Tuesday, May 15, 2007 - 9:10 am: |
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मायबोली ही आपली सगळ्यान्ची मनातले सारे सान्गण्यासाठी मायबोली ही मॉड्स ची देखील बिन्धास्त पोस्ट उडवण्यासाठी!!! गोबु...
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Bee
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| Tuesday, May 15, 2007 - 10:30 am: |
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देहाचा वसंत असेपर्यंतच फ़क्त प्रेमात पडायच देव जाणे ह्या पामरांना खर्यार्थाने प्रेम कधी कळायच...
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Zakasrao
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| Tuesday, May 15, 2007 - 10:42 am: |
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मॉड, क्षमस्व! माझापण वरील टीपी ऊडवुन टाकावा. गोबु सुधार रे आता तरी. मॉड्स च काम वाढवु नको.
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Ksha
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| Tuesday, May 15, 2007 - 11:41 pm: |
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बाजार छान सजला सौदा पुरा खुणांत लाजून चंद्र लपला काळ्या निळ्या ढगांत
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Mankya
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| Wednesday, May 16, 2007 - 4:33 am: |
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बाजार गजबजला भावही तोर्यात होते स्पर्शाचे .. भावनांचे सौदेही जोमात होते ! माणिक !
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प्रेमाच्या सौद्याची गमंमतच वेगळी खाणा खुणा, रुसवे फ़ुगवे त्यांची रंगतच वेगळी रुप...
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Jagu
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| Wednesday, May 16, 2007 - 5:30 am: |
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प्रेमाच्या सौद्यात होतच नाही तोटा सर्वच दिले घेतले एकत्र होते जमा.
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