| | Mankya 
 |  |  |  | Wednesday, May 16, 2007 - 5:57 am: |       |  
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 वेदनांचे ढिग बाजारात
 कवडीमोल दरात होते
 सुखाचे अंशमात्रच प्रमाण
 भाव भलतेच झोकात होते  !
 
 माणिक  !
 
 
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| | Mankya 
 |  |  |  | Wednesday, May 16, 2007 - 6:05 am: |       |  
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 प्रेम म्हणजे अर्पणभाव
 ईथे बरबटलेला सौदा नाही
 मनातून मनाला साद
 तिथे व्यवहाराला मौका नाही  !
 
 माणिक  !
 
 
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| वा!माणिक... आवडली... सुखाचे अंशमात्र प्रमाण... जबरी रे...
 झुळूकीवर मी सहसा येत नाही..पण आज आल्याचं सार्थक झालं
   
 
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| सौदा प्रेमाचा म्हणजे
 हृद्याची अदलाबदली असते
 व्यवहाराच्या बरबटीला इथे
 कधीच जागा नसते
 
 रुप...
 
 
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| अंशमात्र सुखातही
 तृप्तीचा ढेकर
 वेदनांच्या ढिगार्यात
 तेवढीच हळुवार फ़ुंकर
 
 रुप...
 
 
 
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| | Mankya 
 |  |  |  | Wednesday, May 16, 2007 - 6:59 am: |       |  
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 मयुरा ..  मनःपुर्वक आभार  !
 
 विकून टाकावी म्हटलं तर
 कुठे आपुलकीला भाव होते
 चेहरे फक्त सोंगाढोंगाचे
 तिथे शेफारलेले बडेजाव होते  !
 
 माणिक  !
 
 
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| | Jagu 
 |  |  |  | Wednesday, May 16, 2007 - 7:06 am: |       |  
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 अंशमात्र सुखही
 काया मोहरुन टाकते
 भावनांच्या विसाव्याला
 प्रेमाची छाया पडते.
 
 
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| | Rajya 
 |  |  |  | Wednesday, May 16, 2007 - 7:21 am: |       |  
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 काही माणसं
 पिंपळाच्या पानासारखी असतात
 त्याची कीतीही जाळी झाली तरी
 मनाच्या पुस्तकात जपुन ठेवावीशी वाटतात
 
 
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| | Bee 
 |  |  |  | Wednesday, May 16, 2007 - 9:40 am: |       |  
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 राज्या, सुरेख आहे ४ळी.. आवडली..
 
 
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| | Ksha 
 |  |  |  | Wednesday, May 16, 2007 - 8:21 pm: |       |  
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 किती महाग झालयं नाही सुख हल्ली
 भाव काही वाट्टेल ते लावतोय तो मेला
 त्यापेक्षा आपला नेहमीचा वाणी बरा
 दुःख देतो, पण चाट तरी पडत नाही खिशाला
 
 
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| | R_joshi 
 |  |  |  | Thursday, May 17, 2007 - 4:34 am: |       |  
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 सुख दु:खाचा व्यवहार करायचा
 तर नफा तोटा बघु नये
 सुख विकत घेता येत नाही
 म्हणुन दु:खाचा बाजार मांडु नये
 
 प्रिति
   
 
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| | Rajya 
 |  |  |  | Thursday, May 17, 2007 - 4:50 am: |       |  
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 धन्यवाद बी,
 हा माझा पहीलाच प्रयत्न होता
 
 
 
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| | Mankya 
 |  |  |  | Thursday, May 17, 2007 - 4:54 am: |       |  
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 रोज मागतो नियतीकडे मागणे
 सांगतो एवढंच माय पदरात टाक
 एकतर सर्वस्वी सावरणारा विवेक दे
 अथवा विकारात अवघे जाळून टाक  !
 
 माणिक  !
 
 
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