|
Cool
| |
| Wednesday, January 04, 2006 - 9:12 am: |
| 
|
अलिकडेच काही खासदारांना sting operation प्रश्न विचारण्यासाठी पैसे घेतांना दाखवले होते. त्यांच्या मनात आता हेच गाणे सुरु असेल
|
Cool
| |
| Wednesday, January 04, 2006 - 9:13 am: |
| 
|
चाल : फुलले रे क्षण माझे फुलले रे.... फिरले रे ग्रह माझे फिरले रे ओढीने, पैशांच्या, पैशांच्या ओढीने, भुलले रे मन माझे भुलले रे लेकरे टी.व्हीची आली रे घेउन मागणी माझ्यापुढे गरीब घराची जाणीव होऊन धावले मन वेडे या वेडाने, या वेडाने, लावीले शनीचे फेरे ओढीने, पैशांच्या ओढीने, तुटले रे जन माझे तुटले रे फिरले रे ग्रह माझे फिरले रे.... विचार सोडुन, मनासी मोडुन, पैसे ते स्विकारले पैशांना जागुन, सभेत जाउन, प्रश्नही विचारले त्या चोरांनी, त्या चोरांनी, ठेवले होते कॅमेरे ओढीने, पैशांच्या ओढीने, मोडले रे घर माझे मोडले रे फिरले रे ग्रह माझे फिरले रे....
|
Moodi
| |
| Wednesday, January 04, 2006 - 9:20 am: |
| 
|
अरे कुंडल्या पाठव मग त्यांच्या इकडे. just joking . कुल मस्त विडंबन रे. यमक मस्त जुळले. धमाल. 
|
Sandyg15
| |
| Wednesday, January 04, 2006 - 11:08 am: |
| 
|
मस्त रे कूल! ..
|
Dineshvs
| |
| Wednesday, January 04, 2006 - 11:35 am: |
| 
|
कुल, अरे दोन वेळा भेटलो, पण तुझ्याशी फ़ार गप्पा नाहि झाल्या. तुझे वेगवेगळे पैलु लक्षात येताहेत आता. मूडि, याची कुंडली बघुन घेतली तर बरं. अजुन चार वर्षे कर्तव्य नाही म्हणतोय.
|
Megha16
| |
| Wednesday, January 04, 2006 - 5:40 pm: |
| 
|
झकास....एकदम वा छान यमक जमलय.
|
Chinnu
| |
| Wednesday, January 04, 2006 - 5:54 pm: |
| 
|
सही आहे कविता, बोले तो एकदम कूल!
|
Ramani
| |
| Thursday, January 05, 2006 - 12:28 am: |
| 
|
मस्तच आहे विडंबन. अगदी यथार्थ.
|
Devdattag
| |
| Thursday, January 05, 2006 - 12:58 am: |
| 
|
कूल.. आवडलय.. लय खास..
|
Milya
| |
| Thursday, January 05, 2006 - 2:10 am: |
| 
|
कूल : खरेच एक्दम कूल आहे रे. छानच जमले आहे. too good
|
Milya
| |
| Thursday, January 05, 2006 - 5:02 am: |
| 
|
मूळ idea ची कल्पना इथेच २-३ वर्षापूर्वी कुणीतरी दिलेली बहुतेक radha_t ने. चु. भु. द्या. घ्या. चाल : वरचीच... फ़ुलले रे क्षण माझे फ़ुलरे रे फ़ुगले रे तन माझे फ़ुगले रे मैद्याने, पिझ्झाच्या, पिझ्झाच्या मैद्याने, सुटले रे तन माझे सुटले रे झुळुक वाऱ्याची आली रे घेउन खमंग वास नवे पोटाच्या भुकेची जाणीव होऊन वेगात मन धावे ह्या वेडाने, ह्या वेडाने, लावले वैद्यांचे फ़ेरे बिलाने, वैद्यांच्या बिलाने, संपले रे धन माझे संपले रे ओढ ही बेबंद, वासात, घासात, ताटात येती वडे भुकेजल्या माझ्या, पोटात, तोंडात, सतत खाणे पडे रणगाड्यांचे, रणगाड्यांचे, उतरले माज सारे धक्याने, शरीराच्या धक्याने, पडले रे आमचे 'हे' पडले रे भूक ही, भूक ही, भागेना लाडवांचे ताट हे पूरेना कशी सांगू मी, कशी सांगू मी माझ्या मनीची व्यथा रे जाडीने, शरीराच्या जाडीने, विटले रे मन माझे विटले रे
|
Moodi
| |
| Thursday, January 05, 2006 - 5:07 am: |
| 
|
मिल्या............ कठिण आहेस बाबा तू. इकडे अश्या तुंदिलतनू ललना की हत्तिणी मी भरपुर पाहिल्यात. आवरु अन सावरु कसा मी हा देह अशी त्यांची खरच अवस्था आहे.
|
Sarang23
| |
| Thursday, January 05, 2006 - 5:23 am: |
| 
|
हे हे हे...
|
Devdattag
| |
| Thursday, January 05, 2006 - 5:40 am: |
| 
|
जबर्या.. हा.. हा.. हो.. हो.. ही.. ही
|
Chinnu
| |
| Thursday, January 05, 2006 - 10:04 am: |
| 
|
मिल्या! अगदी तालासुरासकट गाता आले मला हे विडंबन! सही!
|
Paragkan
| |
| Thursday, January 05, 2006 - 10:28 am: |
| 
|
khi khi khi khi khi .. 
|
Pama
| |
| Thursday, January 05, 2006 - 11:37 am: |
| 
|
ही ही ही ही... 
|
Megha16
| |
| Thursday, January 05, 2006 - 11:43 am: |
| 
|
आई ग पोट दुखायला लागल हसुन हसुन
|
Pendhya
| |
| Thursday, January 05, 2006 - 5:39 pm: |
| 
|
त्या कूल च्या, ओढीतून बाहेर पडतो ना पडतोच तो ह्या मिल्याच्या पंचपक्वान्नां वर ताव मारावा की, ह्या सगळ्याची धास्ती घ्यावी, हे कळेनासे झाले आहे.
|
Cool
| |
| Friday, January 06, 2006 - 12:21 am: |
| 
|
धन्यवाद मंडळी... मिल्या एकदम खल्लास...  
|
Kandapohe
| |
| Friday, January 06, 2006 - 12:44 am: |
| 
|
माझे पेंढ्याला अनुमोदक!! ... 
|
Gandhar
| |
| Friday, January 06, 2006 - 12:50 am: |
| 
|
मिल्या एकदम खल्लास रे!!!
|
मिल्या, सहीच ही कविता pizaa hut, dominos बरोबर च्या discount receipt बरोबर छापून द्यायचा proposal देउन पहा, सिगरेट च्या adv मधे जशी आधी warning देतात तशी ही कविता आधी वाचून मगच pizza खावा
|
Krishnag
| |
| Friday, January 06, 2006 - 12:55 am: |
| 
|
मिल्या.. .. .. धमाल!!! 
|
Rajkumar
| |
| Friday, January 06, 2006 - 12:57 am: |
| 
|
कूल,मिल्या... .. .. ..
|
Milya
| |
| Friday, January 06, 2006 - 4:17 am: |
| 
|
मायबोलीकर मित्र-मैत्रिणींनो आभार. तुम्हा सर्वांना एक एक पिझ्झा बक्षिस 
|
काय रे मिल्या, फ़क्त मित्रांचेच अभार का ? तुला शिक्षा म्हणून शेपू आणि कार्ल्याच्या toppings चा special pizza देण्यात येइल लवकरच 
|
मिल्या, Coooool  ... ... .... ...
|
कूल , मिल्या ... खास !!!
|
Milya
| |
| Friday, January 06, 2006 - 7:07 am: |
| 
|
अग डीजे : मित्रांनो हा शब्द general वापरला होता त्यात मित्र मैत्रिणी सर्व सामिल आहेत. पण तो शेपू कार्ल्याचा पिझ्झा खाण्यापेक्षा मी post दुरुस्त करतो... 
|
Moodi
| |
| Friday, January 06, 2006 - 7:29 am: |
| 
|
मिल्या मेल्या आम्हाला पिज्झा भेट देऊन वरच्या विडंबनाच्या नायिका ठरवण्याचा विचार आहे का तुझा?  
|
Pama
| |
| Friday, January 06, 2006 - 1:01 pm: |
| 
|
मूळ गाण: हात तुझा हातातुन काय माझ्या ताटातुन, सांग ना प्रिया, रोजचाच भात वरण भासतो नवा कालचीच ही भाजी कालचीच पोळी घातले परि नवीन फोडणीत सारे, ही किमया फ्रीजची भारिते जिवा. या कालच्या भातावर पसरल्या भाज्या बदललेत सॉस राजा आवडतील तुला कोशिंबीर केलीय बघ घालुनी खवा रोज रोज शिजवाया क्षण मजला नसतो दिवसांच्या वाट्याने एकदाच बनतो(स्वयंपाक) अट्टाहास ताज्याचा कशाला हवा. क्षणभर मिटले डोळे, भुक न मला साहे ओघळून आमटी पुलावात वाहे घास असा घश्यातून ढकलतो आता.
|
Pendhya
| |
| Friday, January 06, 2006 - 4:38 pm: |
| 
|
तुमच्या एखाद्या मैत्रिणीच्या नवर्याला डायटिंग सुरु करायला लावायचे असेल, तर कॄपया, पमा ची ही कविता, त्या मैत्रिणीला पाठ करुन, तिचा दैनंदिन जीवनात ऊपयोग करायला सांगावे. धन्यवाद. पमा.........
|
Pendhya
| |
| Friday, January 06, 2006 - 4:41 pm: |
| 
|
मूडी, .. मिल्या मेल्या ?
|
Megha16
| |
| Friday, January 06, 2006 - 4:47 pm: |
| 
|
पमा मस्त छान अगदी बरोबर लिहलय तर आता डायटिंग सुरु 
|
|
|