सजता सजता पुरते ते घर ढासळले होते तू उम्बरा सोडला अन छप्पर कोसळले होते वैभव!!!
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Nalini
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| Wednesday, November 30, 2005 - 1:47 pm: |
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निल्या, वैभव, अगदी मस्त! उंबरा ओलांडुन त्या घराचा केली मी साथ तुझी तुझ्या घराला घरपण देईन देशील का साथ माझी? (चला आता उद्या भेटु.)
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Suniti_in
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| Wednesday, November 30, 2005 - 1:54 pm: |
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अरे वा! नलिनी, वैभव निलेश छानच जमल्या आहेत. काळ्या ढगांची गर्दी मी आकाशात पाहिली होती म्हणूनच उंबरा ओलांडण्याची हिंम्मत माझ्यात आली होती
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मी उम्बरा ओलांडताना तुझी पावलं दारातच अडखळली... सावरताना मनाला मझ्या तुझी नव्याने ओळख झाली ....
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ठाऊक होत मला तुझं पाऊल अडखळनार आहे.... अश्रुंचे ओझे माझ्या पापन्यांनाच पेलायच आहे.... निलेश
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are he kaay ? suniti..vaibhav..kuthe aahat .....
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काल भेटलो तिथे एक क्षण लाजरा राहुन गेला उन्मादात भिजलेला मोगरा राहुन गेला वैभव!!!
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Suniti_in
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| Wednesday, November 30, 2005 - 2:24 pm: |
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अडखळ्णा - या पावलांना अश्रूंचे बांध नको घालूस विसकटलेल्या घरट्याला कितीदा मी नवीन उभारू
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Suniti_in
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| Wednesday, November 30, 2005 - 2:32 pm: |
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प्रत्येक भेटीमध्ये तुझ्या नवा गध गवसला कुपीत माझ्या मनाच्या त्यांनी संसार मांडला
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suniti, nilesh, nalini ... mast.. some problem .. not able to type devnagari... bhetu udyaa
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Dear Vaibhav, Simply Great!!
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Chinnu
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| Wednesday, November 30, 2005 - 4:21 pm: |
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वैभव, तुझ छप्पर आणि मोगरा.. आईशप्पत कसं रे सुचते तुला? खुप छान!
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Raahul80
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| Wednesday, November 30, 2005 - 5:50 pm: |
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कविता मस्तच आहेत. कुणी नुस्त्या मैत्रि वर एखादी कविता लिहु शकेल काय. प्रेमप्रकरने खुप झली
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Ninavi
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| Thursday, December 01, 2005 - 1:13 am: |
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काल भेटलो तिथे अजून तोच क्षण रेंगाळलाय मनचं सांगत नाही, तो बघ मोगरा कसा दरवळलाय
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Ninavi
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| Thursday, December 01, 2005 - 1:20 am: |
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कल भेटलो तिथे... फक्त एकदा पुन्हा जाऊन येशील तो माझा मोगरा तव्हढा राहिलेला घेऊन येशील
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Devdattag
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| Thursday, December 01, 2005 - 5:24 am: |
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काल भेटलो तेथलि मन्तरलेली सान्ज दे.. राहिलेल्या मोगर्याला तु पुन्हा आवाज दे
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Shabd
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| Thursday, December 01, 2005 - 6:25 am: |
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मला तुझी आठवण आली, असे कधीच झाले नाही. आठवण्यासाठी विसरावे लागते , मला तुला विसरताच आले नाही
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Apalyaach gallit basoon maaraleli pratyek aaroLi garjanaa nasate, baaShkaL koTyaa ni yamake juLawaleli pratyek chaaroLi kavitaa nasate
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Ninavi
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| Thursday, December 01, 2005 - 10:38 am: |
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बापू, I thought you said you don't hate in plurals !!!
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Me_anand
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| Thursday, December 01, 2005 - 9:13 pm: |
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पाऊल अडखळले पण जराहि भ्यालो नाहि चौकट ओलन्डून आलो आणि जुना 'मी' राहिलो नाही
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I am still not able 2 send a message in Devnagari. Whenever I press the button 'Devnagari' the screen changes to a page with 2 columns- one for Roman and the other for automatic translation to Devnagari. But the page covers the whole screen. There r no more buttons visible to say either 'OK' or 'Done' etc. Any solutions?
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Devdattag
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| Friday, December 02, 2005 - 12:20 am: |
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try to change the screen resolution to the highest resolution.. if it is not working.. go to devnagari screen.. just press the tab key.. if you dont have the focus on both the windows..the focus is on done button..just press enter then
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Uttara7
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| Friday, December 02, 2005 - 12:40 am: |
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आठ्वनी असतातच आशा कधी पटकन हसावणार्या, अन कधी पटकन रडवणार्या, पण आता त्याच माझ्या सहारयाला.
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Mmkarpe
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| Friday, December 02, 2005 - 2:52 am: |
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कालानुरुपे होतिल आठवणीही धुसर तरिही पडू शकणार नाही मला तुझा विसर
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तुझ्या आठवणींच्या विश्वात विहरताना प्रत्येक क्षणच बधीर असतो तरिही त्या जगात रमायल मी नेहमीच अधीर असतो
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राहुल, हि बघ मैत्री साठी कशी वाटतीय कविता.... स्वप्न आपण मिळुन पाहिली झोक्यावरती झुललो छान रानात खाल्ले आवळे, चिन्चा कवितेचीहि मारली तान मिळुन आपण share केली हसण्याबरोबरच थोडी आसवे मैत्रीचे हे गहिरे नाते केवळ तुझ्या तुझ्याच नावे
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Shubhashish.. This is really good, keep on writing,All the Best.
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Ninavi
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| Friday, December 02, 2005 - 10:01 am: |
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मैत्री आणि प्रेम यातली धूसर असते रेषा इतकच फक्त खरं, तुला माझी कळते भाषा
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Dear pkarandikar when u press devnagari, screen divides in two sections ..when u type in roman accrdly marathi will appear in next screen ...when u complete just select marathi matter ..press cntrl c and then paste same in post window... hope this will solve ..... dekhenge....
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अगदी घरच्यासारखं तुझ मित्रा माझ्या मनात वावरणं होत .. मी घसरताना नकळत तुझं मला सावरनं होत .....
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मित्र म्हणजे सुखात .. हातात हात देनारा.. मित्र म्हनजे दु:खात आपलाच एक हात होनारा....
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Raahul80
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| Friday, December 02, 2005 - 1:01 pm: |
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शुभा, आणि मंडळी, मैत्री वरील कविता सुन्दर आहेत. request ला दाद दिल्याबद्दल आभारी आहे,
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मित्रान्नो धन्यवाद देवनागरीत मेसेज लिहीणे जमेलसे वाततेय बपू करन्दिकर
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Suniti_in
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| Friday, December 02, 2005 - 1:41 pm: |
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मैत्री खरी नसते सहवासाने असते अतूट विश्वासाने जुळली एकदा तुटत नसते तुटली मात्र जुळत नसते
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झुळूक - १ किती पाहिली रे वाट तुझी शिणली गात्रे, बधीरली एक झुळूक,तुझा सान्गावा घेउन आली, कळलेच नाही झुळूक-२ निष्पर्ण माळरानी, ऊन्ट उधळले तुझ्या आठवणीन्चे कढ रानोमाळ उसासे कढत, धुळीत भिरभिरले मला उगाचच वाटले, झुळूक आली बापू करन्दिकर
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