R_joshi
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| Friday, February 09, 2007 - 3:36 am: |
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हरवलि माणस हरवलि मन सांग आता कोठे शोधु सावलिचे घर? प्रिति
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Jo_s
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| Friday, February 09, 2007 - 3:41 am: |
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अशी कशी ही सावली का काळोखी अडते तिला नाही वजन तरी सारखी पडते सुधीर
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R_joshi
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| Friday, February 09, 2007 - 3:42 am: |
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आठवणिंच्या गर्दित सावल्यांचे चेहरे पाठलाग करु किती आठवणित ते मिसळलेले प्रिति
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R_joshi
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| Friday, February 09, 2007 - 3:44 am: |
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मनातील भाव चेहरा लपवत नाहि रात्र काळोखी असली तरी सावली साथ सोडत नाही प्रिति
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Meenu
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| Friday, February 09, 2007 - 6:27 am: |
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जे आले समोर ते रीचवित चालले मी, घोट कडु अपमानाचे पचवित चालले मी!
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R_joshi
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| Friday, February 09, 2007 - 7:17 am: |
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मानापमानांच्या सीमारेषा किती अंधुक असतात शब्दांच्या प्रखर बाणांनीच त्या स्पष्ट होत जातात. प्रिति
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R_joshi
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| Monday, February 12, 2007 - 4:36 am: |
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झुळुकेवरुन सर्व गायब कोठे झाले?
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R_joshi
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| Monday, February 12, 2007 - 4:39 am: |
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मन उदास विराणी का आनंद न हे जाणी दु:खाच्या वाटेवरुनी गात राहे जीवन गाणी... प्रिति
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मी तुला दिसलो की तू हसतेस मनातल्यां दु:खानां तू असं कितीदा फसवतेस! गणेश(समीप)
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झुळुकेवरुन सर्व गायब कोठे झाले? गायब नाहि ग... सावलीत हरवुन गेले!
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Swaroop
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| Monday, February 12, 2007 - 9:24 pm: |
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झुळुकेवरुन सगळे एकाएकी गायब झाले.... apprisal चा महिना होता बहुतेक सगळे 'साह्येब' झाले....
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Daad
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| Monday, February 12, 2007 - 10:54 pm: |
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दु:खांना नाही रे फसवत ती आपलीच असतात हे न कळणारी माणसच परकी असतात
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Daad
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| Monday, February 12, 2007 - 10:59 pm: |
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तू दिसलास ना की माझी मी नसते, बहुतेक कितीही दुखरं मन असलं तरी ओठ हसतात, बहुतेक?
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Suvikask
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| Tuesday, February 13, 2007 - 1:50 am: |
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झुळुक च्या बीबी चे हे काय झाले? सगळेच कवी गंभीर झाले!! आता सोडा हा गंभीरपणा आणी हसवा सर्वाना
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इतरांना हसवण्याची आपली खरच हिम्मत नाही पळीभर आसू पचवल्याखेरिज थेंबभर सुखाची किम्मत नाही
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सुरुचि, छानच! पळीभर आसू पचवल्याखेरिज थेंबभर सुखाची किम्मत नाही
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Vasant_20
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| Wednesday, February 14, 2007 - 10:14 am: |
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आज मी उरलोय का कुठे? आज मी साठलोय का कुठे? आठवण म्हणुनी मी आज ओघळलोय का कुठे? वसंत.
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जियो वसंत जियो! अगदी बहर आणलास मित्रा! आठवण म्हणुन आज मी ओघळलो का कुठे?
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R_joshi
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| Thursday, February 15, 2007 - 3:27 am: |
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वसंत खुपच छान मी उरले तुझ्या स्मरणात मी जगले तुझ्या स्मरणात स्मरणांचि माळ होऊन मी राहिले तुझ्या जीवनात प्रिति
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"डोळ्यातील आसवांचा कधीच अटू देऊ नका झरा कारण... ह्यावरूनच ओळखता येतं जाणारा माणूस खोटा होता की खरा!" गणेश(समीप)
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