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Chinnu
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| Thursday, February 15, 2007 - 4:32 pm: |
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वाह वसंत मस्तच! गणेश, प्रीती, दाद, सुरुची छान. स्वरूप, सुविका, भ्रमा दिसलास तु खुप दिवसांनी स्मृतींचे जरा ओझेच होते मनाला तुझे गाठोडे तुला देऊ केले पण तु तर ओळखलेच नाही म्हणाला!
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Chinnu
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| Friday, February 16, 2007 - 10:43 am: |
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ओळखींचे गाठोडे गावात नेऊन उघडले प्रत्येक ओळखीने मला त्यांच्या थडग्यापर्यंत नेउन सोडले..
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Deep_tush
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| Saturday, February 17, 2007 - 1:14 am: |
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अनोळ्ख़ी माणसही कधी कधी ओळ्ख़ दाख़तात ओळख़ीचे मात्र रस्त्यात भेटल्यावर पाठ फ़िरवतात तुषार......
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R_joshi
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| Saturday, February 17, 2007 - 6:17 am: |
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सर्वांच्या झुळका छान आहेत ओळखिच्या वाटेवरुन जाताना अनोळखी चेहरेच फार भेटले एकदाच ओळख दाखवुन पुन्हा नव्हते ते परतले प्रिति
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Daad
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| Saturday, February 17, 2007 - 5:47 pm: |
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कोणत्या वळणास चुकले मी कुणा पुसायचे? चेहरे अनोळखी अन मुखवटे हसायचे...
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Chinnu
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| Sunday, February 18, 2007 - 9:37 am: |
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वाह शलाका खुप सुंदर!
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Chinnu
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| Sunday, February 18, 2007 - 9:40 am: |
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हसणार्या मुखवट्यांमध्ये जन्म उभा गेला पाहता पाहता चेहरा हसणारा मुखवटा जाहला!
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प्रत्येकाच्या मनात एक तरी रुतलेला काटा असतो त्यामूळेच की काय बाजारात काट्याविनाच फुलांचा साठा असतो. गणेश(समीप)
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Princess
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| Monday, February 19, 2007 - 12:40 am: |
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कालच्या नशेची बात औरच होती, मदिरेच्या प्याल्यात, तिची नजर मिसळली होती...
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