Daad
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| Wednesday, February 07, 2007 - 1:20 am: |
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काळोख होतो तेव्हा कुठे जातात सावल्या की आपल्यातच लपून असतात सावल्या? -- शलाका
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Daad
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| Wednesday, February 07, 2007 - 1:21 am: |
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अरे, कुठे गेले सगळे? गोरजवेळी पुन्हा भेटू म्हणतात सावल्या निघतातही घरून पण, पोचत नाहीत सावल्या -- शलाका
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Chinnu
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| Wednesday, February 07, 2007 - 10:50 am: |
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शिवाशिवी खेळणार्या सख्याच होत्या सावल्या मोठेपणाच्या बेगड्या गर्दीत हरवुन गेल्या सावल्या!
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Daad
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| Wednesday, February 07, 2007 - 5:07 pm: |
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आहा चिन्नू! मोठेपणाच्या उन्हात जळतात सावल्या, तेव्हा आपली सावली शोधतात का सावल्या? -- शलाका
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Chinnu
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| Wednesday, February 07, 2007 - 7:59 pm: |
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धन्यवाद शलाका! शोधतात कणभर ऊन तर कधी तश्याच पांगतात सावल्या कधी कुणा प्रियेच्या सादेकरीता भर उन्हात पोळतात सावल्या!
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Saco
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| Wednesday, February 07, 2007 - 8:28 pm: |
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सायंकाळच्या सूसह्य वेळी मोठेपण मिरवतात ह्या सावल्या रख रखत्या उन्हात मात्र आपल्यातच बुजतात ह्या सावल्या
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Chinnu
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| Wednesday, February 07, 2007 - 10:47 pm: |
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होत्या बुजुन उभ्या थोड्या ओठंगुन सावल्या पडले उन जरासे आल्या धावुन सावल्या! सॅको, शलाका मस्त..
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Suvikask
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| Thursday, February 08, 2007 - 1:25 am: |
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मंद झुळुक विसरुन सावल्या का आठवल्या? मायबोलीवर मग सगळ्यांनी अशाच कविता का पाठवल्या?
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Saco
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| Thursday, February 08, 2007 - 2:05 am: |
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सावलीतच येते वार्याची मंद झुळूक नाहीतर नुसतेच झोंबरे वारे किंवा जीवघेना काळोख
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सावल्यांचा खेळ छान चालु आहे. व्वा!!!
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R_joshi
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| Thursday, February 08, 2007 - 4:49 am: |
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हा खेळ सावल्यांचा भावनांच्या बनलेल्या असतात सावल्या एकटेपणाची व्यथा मिटवतात सावल्या. प्रिति
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R_joshi
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| Thursday, February 08, 2007 - 4:53 am: |
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काळोख्या रात्रित हरवतात सावल्या स्वत:ला शोधण्यास वेळ देतात सावल्या प्रिति
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Daad
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| Thursday, February 08, 2007 - 8:01 pm: |
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मस्तच चाललय! एकट्या वाटेवरी हरवल्या जर सावल्या हिंडणारी पावले मग शोधतात सावल्या -- शलाका
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Daad
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| Thursday, February 08, 2007 - 8:10 pm: |
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भीक मिळण्या तिष्ठती जेव्हा अनवाणी सावल्या हरवून बसती माणसांना माणसांच्या सावल्या -- शलाका
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सर्वांच्या सावल्या मनाला भावल्या
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सांगितले ना " तुला मी विसरली..! " काल तुझ्या दारापुढे थबकली ती मी नव्हे माझी सावली..!!!
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चिनु,शलाका,प्रिती मस्त.. भ्रमर नुसतिच दाद लिहा काहीतरी..
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R_joshi
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| Friday, February 09, 2007 - 3:29 am: |
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ओळख स्वत:ची मागतात सावल्या अनोळखी का स्वत:ला समजतात सावल्या प्रिति
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R_joshi
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| Friday, February 09, 2007 - 3:32 am: |
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भ्रमरा तुझ्यासाठी सर्वांच्या सावल्या तुझ्या मना भावल्या तुझ्या शब्दांच्या सावल्या सांग कुठे हरवल्या? प्रिति
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R_joshi
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| Friday, February 09, 2007 - 3:35 am: |
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पावलांना मी समजावल परी सावली हि समजे ना गुंतलेले मन सोडवले परी सावली तुझी साथ सोडेना. प्रिति
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