Ajjuka
| |
| Monday, January 22, 2007 - 9:56 am: |
| 
|
तांत्रिक अडचणीमुळे इमेज फाईल टाकते आहे. क्षमस्व..
|
Ajjuka
| |
| Monday, January 22, 2007 - 10:18 am: |
| 
|

|
Ajjuka
| |
| Monday, January 22, 2007 - 10:19 am: |
| 
|

|
Ajjuka
| |
| Monday, January 22, 2007 - 10:20 am: |
| 
|

|
Rimzim
| |
| Monday, January 22, 2007 - 11:28 am: |
| 
|
ajjuka, chan ahe katha, pan ya adhi hi katha vachalia he me, shevat nahi athavat pan pahi;e 2 postings nakki vachale ahe. tu adhi kuthe post keli hotis ka?
|
Ajjuka
| |
| Monday, January 22, 2007 - 11:34 am: |
| 
|
सुरूवात केली होती आणि मग ती राह्यली ती राह्यली. शेवट राहूनच गेला होता. आता पूर्ण करून टाकली इथे. माझी requests abt topic मधली आजची ३ ही पोस्टस् वाच म्हणजे उलगडा होईल.
|
Dineshvs
| |
| Monday, January 22, 2007 - 11:47 am: |
| 
|
छान आहे कथा, हि पण सुरवात धरायची ना ?
|
Rimzim
| |
| Monday, January 22, 2007 - 4:26 pm: |
| 
|
ajjuka, chana he gost.
|
Prajaktad
| |
| Monday, January 22, 2007 - 4:36 pm: |
| 
|
अज्जुका!सुरवात करुन राहुन गेल्याचे आठ्वतय असो..पुर्ण केलिस हे छान झाले.कथा आणी लेखनशैली आवडली, लिहित रहा.
|
Bhagya
| |
| Monday, January 22, 2007 - 5:17 pm: |
| 
|
छान अज्जुका, ही मी वाचल्याचं आठवतंय... अजून येऊ दे.
|
Ajjuka
| |
| Tuesday, January 23, 2007 - 2:03 am: |
| 
|
सगळ्यांचे आभार.. दिनेश, अहो कथा संपली की.
|
Bee
| |
| Tuesday, January 23, 2007 - 2:44 am: |
| 
|
छान! कथा लिहिण्याचा ढंग खूप आवडला.
|
मस्त आहे ही कथा
|
Itsme
| |
| Tuesday, January 23, 2007 - 9:29 am: |
| 
|
छोटिशी छान कथा ... आवडली
|
Dineshvs
| |
| Tuesday, January 23, 2007 - 11:51 am: |
| 
|
अज्जुका, कथालेखनाची सुरवात म्हणायचे होते मला. अगदी खरे सांगु, याहि कथेत काहितरी गहिरे रंग अजुनहि भरता आले असते, थोडा आळस नडला, हो ना ?
|
Ajjuka
| |
| Wednesday, January 24, 2007 - 3:40 am: |
| 
|
आले असते? नाही इथे नक्कीच आळशीपणा नाहीये केलेला.. जेवढी आली तेवढीच लिहिली. अजून काही लिहिलं तर लय बिघडेल असं लक्षात आलं आणि अजून काही असायला नको असंही वाटलं म्हणून ही तेवढीच... मान्य की अजून तितकासा दर्जा नाहीये पण कथेत आळशीपणा नाहीये एवढं नक्की हो.
|
सुरुवातीलाच आठवले ही गोष्ट वाचली होती आधी. छान लिहीलीय. आटोपशीर. >> जेवढी आली तेवढीच लिहिली. अगदी अगदी. उगीच पाणी घातल्यासारखी वाटते, आली नसताना वाढवली तर.
|
Ajjuka
| |
| Monday, January 29, 2007 - 5:00 am: |
| 
|
सन्मे आणि बाकीचे, आभार सगळ्यांचे. आता मी सिरीयसली लिहू लागलेय. इथे किती येईल माहीत नाही पण लिहितेय नक्की.
|
Hems
| |
| Monday, January 29, 2007 - 3:25 pm: |
| 
|
मस्त कथा अज्जुका ... कुठे थांबायचं ते कळलं पाहिजे याबाबतीत सन्मीशी सहमत आहे ! .... इथे किती येईल माहित नाही पण लिहितेय नक्की का ग? लिहिलंस की पाठव लगेच आमच्यासाठी !
|
Storvi
| |
| Monday, January 29, 2007 - 3:56 pm: |
| 
|
नी संपवलीस का एकदाची! चांगली झालीये...
|