Deep_tush
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| Thursday, January 25, 2007 - 5:30 am: |
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अंधारानंतर येणारे साम्राज्य हे प्रकाशाचे असते...... कोंड्लेल्या श्वासासही कधीतरी मोकळे करायचे असते.... तुशार.............
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तुशार खुप आशादायी.... गणेश(समीप)
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गणेश तुमची झूळुक वाचून मी कविता बीबीवर २६ जानेवारी निमित्त एक कविता लिहिली आहे.
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तुशार झुळूक मस्तं लिहिलीय तुम्ही. व्वा!!!
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Meghdhara
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| Thursday, January 25, 2007 - 11:11 pm: |
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आपण फक्त बरसायचं कुठलं तरी बीज आळोखे पिळोखे घेतं.. तरसण्यातलं अस्तित्व त्याच्या अंकुरण्यात सामावतं.. आणि मग आहेच नवीन तरसणं.. मेघा
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Shyamli
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| Thursday, January 25, 2007 - 11:20 pm: |
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क्या बात है, मेघा
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Naveen
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| Friday, January 26, 2007 - 5:51 am: |
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ईथे कोणी वकील असतील तर, माफ करा. खर्याचं खोटं करणारे वकील महान आहेत न्याय मिळविण्यासाठी कित्येकांचे मंगळसुत्र गहान आहेत
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नविन, महान साठी तुम्ही गहान शब्द योजला आहे का? तो शब्द गहाण असा हावा का?
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Naveen
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| Saturday, January 27, 2007 - 2:37 am: |
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धन्यवाद भ्रमर मित्रा. तो शब्द "गहाण" हवा होता.
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Naveen
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| Monday, January 29, 2007 - 2:12 am: |
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कितीही पाऊस पडला तरी, एकदा सुकलेलं फुल पुन्हा फुलत नसतं कितीही वाळलेलं असेल तण तरी, शेवटी तेच उगवत असतं
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गंगेच्या निर्मळ पाण्यात कांही खोटी लोकं,खराब देह बुडवतात आणि गंगा गढुळ आहे म्हणुन... गंगेलाच नावं ठेवतात! गणेश(समीप)
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वकीलावरुन आठवलेली.. तुझ्या माझ्या भांडणाचा कोर्टात गेला मामला.. तो सोडवता सोडवता वकिलाने बांधला मोठा बंगला.. 
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Naveen
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| Monday, January 29, 2007 - 6:26 am: |
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क्या बात है योगी. मस्तंच
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मेघा पहिल्या तीन ओळी खूप छान आहेत. पण तरसण्यातलं अस्तित्व म्हणजे काय ते कळलं नाही.
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Meghdhara
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| Monday, January 29, 2007 - 9:58 am: |
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मित्रा.. तरसण्यातलं म्हणजे अपुर्णता हेच अस्तीत्व.. हो ना? मेघा
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Manas6
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| Monday, January 29, 2007 - 11:05 pm: |
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खर्याचं खोटं करणारे वकील महान आहेत न्याय मिळविण्यासाठी कित्येकांचे मंगळसुत्र गहान आहेत वा जबरदस्त!! -मानस
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Naveen
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| Tuesday, January 30, 2007 - 12:18 am: |
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आभारी आहे मानस मित्रा.
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Meghdhara
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| Tuesday, January 30, 2007 - 11:18 pm: |
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ओंजळीतलं फुल आकाशाला हसतं मुक्त उधळलं तरी जमिनीला मिठीत घेतं मेघा
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एकदा अशीच मन्मनी हसत होती वेडी अबोलीची कळी... प्रत्येकाच्या चेहर्यावर पाहुन प्रश्नचिन्ह दाट.. कळी बोलली " किती मी खुळी... कळले नाही नाही मला.. अबोलीने पाहु नये कधी सुगंधाची वाट "
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Maitreyee
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| Wednesday, January 31, 2007 - 11:13 am: |
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तरसणे, तरस खाणे हे शब्द वर वापरलेत, तसा शब्द्प्रयोग मराठीत आहे?? मला खरीखुरी शंका आहे
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