Princess
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| Friday, December 01, 2006 - 7:26 am: |
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वादळाशी केलीय मी आता दोस्ती ना उडण्याचे भय ना होरपळण्याची धास्ती... रुप धन्स. तु पण हो ना सामिल.
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Princess
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| Friday, December 01, 2006 - 7:27 am: |
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रुप टाळी दे ना.... आपण दोघीनी same लिहिलय... शब्द वेगळे पण भावना तीच... हो ना
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प्रयत्नांच्या शर्थीने वादळही शमतात अचंबित होउन ते आपल्याशी मैत्री करतात रुप असच आपल कहीतरी पुनम...
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मनं जुळली तर शब्दांचे बंधन कसले??? भावना कळायला हृदयी प्रेम वसले रुप
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अरे!वा!!वादळ अजुनही जिंवत आहे तर! रूप आणि प्रिन्स..धन्यवाद!!--मयूर
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वा!! फ़िरून आला तोच ऋतू तोच पाऊस भुरभुरतो डोळे लावून वाटेवरती जीव तसाच हुरहुरतो
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Phatrya
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| Saturday, December 02, 2006 - 2:02 am: |
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माझा भगवा, माझा निळा, माझा हिरवा असं म्हणता-म्हणता सारा हिन्दुस्तान जळत आहे. राजकारण्यांनी लावलेली आग दिवसें-दिवस उग्र रुप धरत आहे.
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R_joshi
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| Monday, December 04, 2006 - 3:47 am: |
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मृ, मयुर, रुप, प्रिन्स आणि बाकि सगळ्यांनी झुळुकेवर काव्याचे वादळ छान उठवले आहे. देवदत ब-याच दिवसांनी झुळुकेवर.
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R_joshi
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| Monday, December 04, 2006 - 3:49 am: |
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वादळी वा-याच्या सोबतीने तुला माझी हि आठवण होती हि गोष्ट माझ्यासाठी काही कमी अर्पुवाईची नव्हती प्रिति
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Princess
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| Monday, December 04, 2006 - 4:02 am: |
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काही लोकांना विसरणे मुळीच सोपे नसते... ते नसले सोबतीला तरी, त्यांचे कार्य बोलत असते
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Princess
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| Monday, December 04, 2006 - 4:04 am: |
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लोकहो मी princess आहे prince नाही. तुम्ही मला पुनम म्हणु शकतात.
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आठवण त्याची काढतात ज्याला आपण विसरतो सदैव ज्याच्या धुंदीत त्याला विसरुच कसे शकतो??? रुप हाय पुनम लेख वाचल्याबद्द्ल धन्स... प्रिति, कशी आसस गो???
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R_joshi
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| Monday, December 04, 2006 - 4:15 am: |
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रुप एकदम मजेत पुनम तुम्ही तर राजकुमारी आहात सॉरी राजकुमार बनवल्याबद्द्ल
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Princess
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| Monday, December 04, 2006 - 4:20 am: |
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प्रिती असे नुसतेच प्रश्नांना उत्तर देउन नाही चालणार बरे का... मधल्या दोन दिवसाच्या चरोळ्या लिहुन टाक बरे पटकन ...
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R_joshi
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| Monday, December 04, 2006 - 6:04 am: |
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आपलेपण हि किती विचित्र आपले म्हणवणारे दुर असतात आणि अनोळखि चेहरे किती आपलेसे वाटतात प्रिति
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R_joshi
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| Monday, December 04, 2006 - 6:23 am: |
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पावसाने बरसावे तसे अश्रु बरसतात ते मातित मिळतात आणि हे मनाला भिडतात प्रिति
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R_joshi
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| Monday, December 04, 2006 - 6:26 am: |
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आज वाटले वादळाशी झुंज द्यावी उभारणा-या मनाला अशिच काहिशी आस असावि प्रिति
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R_joshi
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| Monday, December 04, 2006 - 6:30 am: |
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शब्दांचे दालन उघडते काव्य हसुन स्वागत करतात मनाच्या अनोळखि ऊर्मिला ते भावनांचे नाव देतात प्रिति
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आपलेपणाच्या नात्याला खुपच कंगोरे असतात अनोळखी लोकांना आपलसं करायला ते पुरेसे ठरतात रुप...
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R_joshi
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| Monday, December 04, 2006 - 6:32 am: |
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वा-यासंगे बेभान व्हावे आकाश सारे कवेत घ्यावे शब्दांच्या या जादुयि दुनियेत मी काव्य बनुनी वास करावे प्रिति
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