Sandu
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| Saturday, August 05, 2006 - 11:08 am: |
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mi sweety mhanel diva ghe ,, mhanje light ghe..raaag nako manu .. sweety la dukhavacha maza kahihi uddesh nahi .. mala fakta ek alikhit niyam sangaycha hota, hurt zala asel taaar mi maaafi magato 
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Shyamli
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| Sunday, August 06, 2006 - 1:55 pm: |
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मनाच्या मनाला कशा व्यथा कळाव्या न ओठी शब्द येता नेत्री तुझ्या दिसाव्या श्यामली!!!
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शामली इतक दु:ख एकटीनेच नको सोसुस. आमच्याशी मन मोकळ कर बरं वाटेल मनिषा
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Shyamalee न ओठी शब्द येता नेत्री तुझ्या दिसाव्या क्या बात है! -बापू.
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Jayavi
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| Monday, August 07, 2006 - 12:46 am: |
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श्यामली, सुरेख! पण काय झालंय गं?
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खरं आहे शामली, शब्द फार बोलतात,कित्येकदा निरर्थकही पण....... ओठांपेक्षा माणसाचे डोळेच अधिक बोलतात. शब्द जे दडवू पहातात, नेमक तेच डोळे उघडतात, म्हणूनच काही लोक दु:खात[किंवा नेहमीच] गॉगल वापरतात.आ आपला खरेखोटेपणा त्याच्याआड दडवतात. अभिनेत्री नर्गिस गेली तेंव्हा राज कपूर गॉगल डोळ्याला लावून वावरत होता म्हणे. --बहुदा शिरीष कणेकर यांच्या लेखात. मनिषा
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Meenu
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| Monday, August 07, 2006 - 3:24 am: |
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ऑफीसची वेळ, अनोळखी गर्दी, बसमधे मी अचानक ओळखीची झुळुकशी आली नजर उचलुन पाहिलं अन कळलं बाजुनी तुझी गाडी गेली
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Krishnag
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| Monday, August 07, 2006 - 3:28 am: |
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श्यामली, छानच... .. ..
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Meenu
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| Monday, August 07, 2006 - 3:30 am: |
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किती ते एखाद्याला छळावं संपर्काचे सारे मार्ग बंद करायला लावावं विसरतोय असं वाटता वाटता रस्त्यामधे दिसावं
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गाणे गाणे.. कुणाचे सुखसुमनांचे.. उमलत उमलत दरवळणारे.. गाणे.. कुणाचे गहिवरलेले.. टिपता टिपताही पाझरणारे..
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Shyamli
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| Monday, August 07, 2006 - 8:27 am: |
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baapu.... tumhii pratikriyaa dilit... waa! tumachi pratikriyaa sudhaa ekhaadyaa baxisaasarakhi asate ho aamhaalaa jamatay mhNaje kaahiitaree kaa hoinaa lihaayalaa... jayaa kuchh nahii.... parat yaayache vedh laagalet... jayaa ,baapu,manishaa krish.. dhanyawaad.... manishaa sadhyaa mii baaher aahe... gharee aale kii bolate tujhyaashi... chhaan lihiitiiyes lihiit rahaa...
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Jayavi
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| Monday, August 07, 2006 - 10:19 am: |
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मीनु, क्या बात है! खूप छान! मृ,मनिषा छान सुरु आहे..... चलने दो
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Jayavi
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| Monday, August 07, 2006 - 10:43 am: |
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शब्दातून कळते प्रीती परी गुलाम ती ओठांची डोळ्यांची प्रीती न्यारी नजरेतूनीच आकळते
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Sandu
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| Monday, August 07, 2006 - 10:57 am: |
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तुझ्या आठवणींच्या जोडीला माझ्या एकटेपणाची साथ आहे तुझ्या ओठांच्या ओढीला माझ्या ओठांची आस आहे!!
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तुझ्या गळा, माझ्या गळा गुंफू सयींच्या माळा माझ्या हसर्या, लाजर्या तुझ्या दुखर्या, बोचर्या -बापू.
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जयवी तुला मेल केली आहे घरी परतल्यावर परत करीन उत्तराची वाट पहात असशील ना? सध्या फॉरवडआ मेलच आहे मनिषा
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Smi_dod
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| Wednesday, August 09, 2006 - 1:23 am: |
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ही हुर हुर ही कातरता कशाची? तुझ्या भेटीची की तु अजून ही न भेटल्याची ईतकी ओढ अनावर होते ही अधीरता.... क्षणा क्षणाला वाढते कोसळवते पुरती मला व्याकुळ तुझी हाक फ़ोडते बान्ध मनाचा तु असताना जवळ तुझ्या विरहाची भिती का जाणवतेय मला मनाची तगमग शान्त होत नाही राहु कशी आता तुझ्याशिवाय तुच सांग मला
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श्यमली २ गुड मीनु, जयावी, मृदगंधा छान. स्मिता एकदम सहीच
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R_joshi
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| Thursday, August 10, 2006 - 6:01 am: |
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अरे वा! ब-याच दिवसांनी झुळुकेचा छान गारवा अनुभवतेय. सर्वच छान लिहित आहेत
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R_joshi
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| Thursday, August 10, 2006 - 6:05 am: |
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तु अचानक भेटतोस मघा मधल्या मेघासारखा आणि बरसत राहतोस श्रावणातल्या सरींसारखा प्रिति
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