Ninavi
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| Wednesday, August 02, 2006 - 11:12 am: |
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वा! वर्षा, मस्त!! मस्तच!!
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Dineshvs
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| Wednesday, August 02, 2006 - 12:46 pm: |
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वर्षा, खरेच ईतकी मोठी कधी झालीस ?
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Chinnu
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| Wednesday, August 02, 2006 - 4:20 pm: |
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वा वा लोक्स, मस्त चाललयं!
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Saurabh
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| Wednesday, August 02, 2006 - 7:04 pm: |
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वर्षा, सुंदर! मला आसावरी काकडेंच्या 'समंजस' ची आठवण झाली.
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Meenu
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| Thursday, August 03, 2006 - 12:09 am: |
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वा वर्षा सुंदरच !!! निनावी खरय तसा विचार मी पण केला होता पण फारच लांबण वाढायला लागली म्हणुन आवरतं घेतलं
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Paragkan
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| Thursday, August 03, 2006 - 12:41 am: |
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वा! वर्षा! खासच. रसभंग करण्याचा किंवा खुसपट काढण्याचा कोणताही हेतू नाही, पण इंग्रजी शब्द अनावश्यक वाटले. मराठी प्रतिशब्द वापरुनही कविता तितकीच सहज वाटली असती ..... अर्थात हे आपलं माझं मत.
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Devdattag
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| Thursday, August 03, 2006 - 12:50 am: |
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गिरी.. वरदान मस्त वैभव.. मीनु.. छानच वर्षा सुरेखच आहे कविता
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Bee
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| Thursday, August 03, 2006 - 3:43 am: |
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कविता एकदम सुंदर आहे वर्षा. जरा जास्तच मुक्तछंदी झाली पण ही प्रशंसेची पावती आहे कवितेची लय आणि आशयाबद्दल. मलाही ते आणि इतके सारे english शब्द खटकले.
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Kshipra
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| Thursday, August 03, 2006 - 3:45 am: |
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गिरी तुझा विचार वेगळ्या पध्दतीत. चालण्याला अंत नाही. येस, मिलाॅर्ड, आपल्या ह्या जजमेंटवर मला कुठलच अपील करायच नाहीये. फक्त मला माझ्याच पावलांशी मैत्री करण्या इतका वेळ मिळेल ना?
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Ninavi
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| Thursday, August 03, 2006 - 9:31 am: |
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व्वा! क्षिप्रा, सुंदर. बाकी, मला रूढ इंग्रजी शब्द वापरण्यात काही चूक आहे असं वाटत नाही.
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Ninavi
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| Thursday, August 03, 2006 - 9:37 am: |
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पासोडी खूप जुनी झाली आहे ही पासोडी आता.. हजार ठिकाणी विरली आहे.. कधी मी.. कधी तू.. तुटेपर्यंत ताणलं होतं त्याच्या खुणाच त्या.. तरीही रोज रात्री तीच पांघरते हट्टाने कधीकाळी तिने थंडी कशी पळवून लावली होती त्या आठवणींची ऊबसुद्धा पुरेशी वाटते.. तुला.. नाही का रे वाटत तसं...??
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Chinnu
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| Thursday, August 03, 2006 - 10:06 am: |
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निनावे, अत्त्त्त्त्त्त्तीशय सुंदर! वाह... व्वा..
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Gharuanna
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| Thursday, August 03, 2006 - 2:55 pm: |
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वा हे क्य सही आहे तुम्ही सर्वानी एअक्दम सोल कोन्ट्राक्ट घेतलेल दिसतय मनल भोक पडणार लिहायच
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बैरागी फ़ारच छान... खरंच अचूक शब्द... वर्शा ऋतु, खास आहे... खूप आवडली... "पासोडी" हा शब्दच मला माहीती नव्हता! निनावि, नेहमीप्रमाणेच मनातला एखादा धागा बरोबर उचलून धरणारी "पासोडी"... नवीन वाचायला मिळालं बरंच... बर्याच दिवसांनी इकडे चक्कर झाली.
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Bee
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| Thursday, August 03, 2006 - 11:36 pm: |
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कालपरवाची ओळखीपाळखी संवादातील आनंद-मैत्री कालांतराने उरली नाही... तो दुरवरून समीप येणारा, स्मितहास्य करणारा चेहरा अजूनही ओळखीचा वाटतो एकमेकांकडे बघून मात्र बाकी हसण्यापलिकडे काहीच शिल्लक नाही कालपरवाची ओळखीपाळखी संवेदनाहीन आजची मैत्री...
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Bee
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| Friday, August 04, 2006 - 12:07 am: |
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आपल्या छातीचा जो पिंजरा असतो तो कमकुवत झाला की जो भाग दिसतो त्याला पासोळी म्हणतात ना.. मला पासोडीवरून पासोळी शब्द आठवला.
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Meenu
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| Friday, August 04, 2006 - 1:01 am: |
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बी अरे हाडांची दिसते तिले फासळी म्हणतात ना ..? पासोळी काय ... निनावी मला पण पासोडी हा शब्द माहीत नव्हता .. गोधडी का म्हणजे .. अर्थावरुन पांघरुण हे नक्की कळतय सुंदर लिहीलं आहेस ..
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Zaad
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| Friday, August 04, 2006 - 4:39 am: |
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वर्षा, भिडली कविता... वाचताना डोळ्यांत पाणी आल्याने बरं वाटलं... बी छानच! निनावी, खूपच सुन्दर कविता! पासोडी हा शब्द प्रथमच वाचला... हा प्रादेशिक शब्द आहे का?
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Princess
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| Friday, August 04, 2006 - 5:22 am: |
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मीनु, झाड पासोडी म्हणजे पिशवी (आमच्या खांदेशात). सहसा शेतकरी लोक हा शब्द वापरतात. आणि मला वाटते मूडी ला पण तोच अर्थ अभिप्रेत आहे प्रिन्सेस
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Princess
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| Friday, August 04, 2006 - 8:29 am: |
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वरच्या पत्रात मला निनावीला म्हणायचे होते. सॉरी.
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