अरे वा !!! इथे बरंच काही घडत असतं ... अलिकडे येणंच झालं नाही ... मस्त रे !!!
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झकासच प्रत्येकजण वहावतो आहे. वैभव तु पण कर रे चालु..
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देह चींब उष्म श्वास एक बोली श्रावणमास
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कुणा मुक्त कुणा दग्ध करूनी जाई श्रावणमास एक ओला एक कोरडा जाय अखेरी श्रावणमास
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देवा, खरच खुप छान रे
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ऋतूचक्रच होते केवळ नेमस्त दाटले होते बरसेल जरासे आणिक थांबेल वाटले होते पण काय असे मेघांच्या डोळ्यांत साठले होते ? आभाळ नसावे बहुधा काळीज फाटले होते !!!
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कधी दाट मेघ.. दाटले सरीवर सरी कोसळले.. कधी सोनेरी लकीर झाले नव्हते मागणे काही तरीही आतुर जाहलेले... कोवळ्या स्पर्शाने उन्हाच्या.. मधुर जाहलेले.. मन मन माझे श्रावणातले...!!!
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Ninavi
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| Thursday, July 20, 2006 - 9:23 am: |
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>>>> आभाळ नसावे बहुधा काळीज फाटले होते !!! वा वा!!
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Soultrip
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| Friday, July 21, 2006 - 5:41 am: |
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मन मन माझे श्रावणातले...!!! >>>> याच्याऐवजी 'मन माझे श्रावण झाले' करुन पहा.
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Meenu
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| Friday, July 21, 2006 - 10:19 am: |
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दुर उडुन गेले माझ्या, स्वप्नांचे निळे पक्षी बापड्या पापण्या शोधीत राहील्या त्यांच्या मखमल पंखावरली सुंदर नक्षी उडुन गेले दुर माझ्या स्वप्नांचे निळे पक्षी - मेधा पाठक
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Meenu
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| Friday, July 21, 2006 - 10:21 am: |
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जळताना वात झाले सांगीतले का कुणाला जगताना लाट झाले साथ न आला किनारा ! - मेधा पाठक
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Bavlat
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| Friday, July 21, 2006 - 10:29 am: |
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मला वाटते ते 'किनाला' पाहिजे. किंवा 'कुणारा' तरी.
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तो भरभरून सोंडेने ओथंबतो जीवाच्या आकांताने झडी लावतो अर्थांनाहि मग लुसलुशीत शब्दांची पाती फुटतात. -बापू.
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Mruda
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| Monday, July 24, 2006 - 2:28 am: |
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सुटण्या-पोहोचण्यामधलं जीवघेणं अधांतर.... संपून जाईलसं वाटतय श्वासांमधलं अंतर....
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Mruda
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| Monday, July 24, 2006 - 2:46 am: |
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ही मी कदाचित आधी टाकली असेल.. रानात पाऊस मनात पाऊस.. वेड्या कोकिळा नको ना गाऊस..
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Mruda
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| Monday, July 24, 2006 - 5:20 am: |
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धुंद गात्रं चिंब मनं.. सरींवर सरी श्रावण घनं..
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Jo_s
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| Monday, July 24, 2006 - 7:00 am: |
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मृदा छान, हो ती तू टाकली होतीस, त्यावर मी ही चारोळी टाकली होती. एका मागे एक रुतू असाच येणार जाणार सखी त्याची मिळे पर्यंत वेडा कोकीळ गाणार
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Jo_s
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| Monday, July 24, 2006 - 7:08 am: |
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रुषी त ला रु कसा लिहायचा
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Himscool
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| Monday, July 24, 2006 - 8:44 am: |
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सुधीर असे लिहा ऋ = R^i
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सुधीर असे लिहा ऋ = Ru 
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