R_joshi
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| Wednesday, June 28, 2006 - 12:12 am: |
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तु नेहमीच असतोस बरसत आनंदाचा घन बनुन मी नेहमीच तुझी वाटत पाहते चातक पश्री बनुन प्रिति
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Jo_s
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| Wednesday, June 28, 2006 - 12:12 am: |
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मिनू मस्त निनावी छान Asmaani सुंदरच >>>मी कितीदा भरभरून आलो तुशार खासच >>वेदना आतली कुर्वाळत राहाते स्वरा मस्त
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R_joshi
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| Wednesday, June 28, 2006 - 1:07 am: |
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पावसाच्या कविता अगदि पावसासारख्याच बरसत आहेत. चालु दे कविता अशाच बरसत राहु देत
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Smi_dod
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| Wednesday, June 28, 2006 - 1:16 am: |
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अचानक आलेल्या पावसाने धुळ भरल्या आठवणी परत स्वच्छ झाल्या बघुन माझ्याकडे लख्खपणे हसल्या
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Meenu
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| Wednesday, June 28, 2006 - 1:46 am: |
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हाय तुषार बर्याच दिवसांनी ... छान लिहीलं आहेस रे तु भरभरुन आलास कळवलं रे मला विजेनी पाहिलं ही मी तुला बरसताना खिडकीआडुन भिजल्या डोळ्यांनी वेगळ्या आपल्या वाटा कसं येऊ भिजायला ....? खोट्या आशेचा अंकुर नको तुझ्या मनात रुजायला ....
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Devdattag
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| Wednesday, June 28, 2006 - 1:54 am: |
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कालच्या पावसात मला मी स्वप्नांचा आधार दिला ढगांनीही रंग त्यांचा माझ्या स्वप्नांना उधार दिला
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Meenu
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| Wednesday, June 28, 2006 - 2:23 am: |
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स्वप्नांचाच आधार तो जाग येताच संपणार .. उधारीचा रंगही देवा कीती दिवस टिकणार ...?
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तुषार, अस्मानी, मीनु खुपच छान..
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tushaar... pritii, devaa, smitaa, meenu... vaa vaa... mast !!!!
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Mruda
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| Wednesday, June 28, 2006 - 4:09 am: |
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असु देत गं स्वप्न असली खोटी तरी.... उधारीचा रंगही बरा बेरंग जगण्यापरी....
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Devdattag
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| Wednesday, June 28, 2006 - 4:18 am: |
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नभी दाटल्या मेघांनी दिला उधारीवर रंग काळ्या आजच्या रातीला काळ्या स्वप्नांचा हो संग
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Jo_s
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| Wednesday, June 28, 2006 - 5:18 am: |
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आजकाल कुठलेही रंग फार सहज मिळतात म्हणून कुठल्याही गोष्टीला काहीजण कुठलाही रंग देतात
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R_joshi
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| Wednesday, June 28, 2006 - 5:55 am: |
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स्वप्नांना रंग देताना त्याची उधारी बघायचि नसते रंग भरलेल्या स्वप्नांनमध्ये नवी उभारी शोधायची असते. प्रिति
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R_joshi
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| Wednesday, June 28, 2006 - 5:58 am: |
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रंगांची उधळण निर्सग नेहमीच करत असतो आपणच ठरवायचे असते आपल्यासाठी कोणता रंग असतो प्रिति
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उधारीचे असले तरिही त्यांतिल रंग खरे मानले तुझे प्रत्येक स्वप्न मी प्रत्यक्षात जगले... रुप...
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पावसाच्या गाण्याला मृत्तिकेचा गंध आहे... आठवणिच्या थेंबाना आसवांचा रंग आहे
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Aavli
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| Wednesday, June 28, 2006 - 8:49 am: |
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निसर्गाच्या रंगात... सारेच दंग.......... मायबोलीवर उठती... झुळुकेचे तरंग........ आपली.....आवली
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Meenu
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| Wednesday, June 28, 2006 - 9:00 am: |
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रंग बघुन ईतकही नकोय भुलुन जायला .... असत्याला सत्य नको तेवढ्यासाठी मानायला .... रंग नाही म्हणुन वार्याला कधी दु:ख झालय ...? रंगासाठी सांग मला पाणी का कधी तहानलय ....? पाण्यासारखं होऊन बघ सत्याशी एकरुप हो अन त्याच रंगाची होऊन जा ...
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Swara
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| Wednesday, June 28, 2006 - 3:42 pm: |
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वाढल किंवा कमी झाल तर सत्य सत्य रहात नही असत्याची परिक्षा इथे कुणी पहात नाही (सच घटे या बढे तो सच ना रहे झुठ की कोई इम्तिहा ही नही ह्या जगजीत सिंगच्या एका गझल च्या शेरावरुन...) सुधीर thanks .
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आरश्या समोर उभा असताना मि स्वताला शहणा समज्तो कारण बहेरच्या या जगात मि नेहमीच वेडा ठरतो
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