Jo_s
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| Monday, February 27, 2006 - 12:42 am: |
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श्यामली, छान पण इतक्या एकदम? ऐसाभी क्या है गम? अबोल्यावर लिहीता लिहीता लेखणीच बोलू लागली अन ज्याच्या साठी लिहीत होती त्याची मान डोलू लागली
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शब्दांना कैद करुन कधी डोळ्यांनाही वाव द्यावा तुझ्या माझ्या नात्यात अबोल्यालाही भाव घ्यावा
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Shyamli
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| Monday, February 27, 2006 - 4:33 am: |
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दिनेशदा, सुधिर thanks .. .. .. 
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Devdattag
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| Monday, February 27, 2006 - 6:31 am: |
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श्यामलि छान चालु आहे चालु दे.. सुधीर माफ़ कर तुझ्या चारोळीचे विडंबन करतोय जीवनमार्गी चालता चालता वार्धक्याला तोलु लागलि अन ज्याची साठी झाली होती त्याची मान डोलु लागली
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Jayavi
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| Monday, February 27, 2006 - 8:45 am: |
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श्यामली, अगं काय गं ? सब कुछ ठीक है ना ? बाकी एकदम मस्त सूर पकडला आहेस
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Jaaaswand
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| Monday, February 27, 2006 - 12:09 pm: |
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ओथंबू देत तुझ्या मनाचे ढग की माती माझी तृप्त करतील पण इतकीही बरसू नकोस वेडे मग चांदण्याही उठून दिसतील जास्वन्द...
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Shyamli
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| Monday, February 27, 2006 - 1:40 pm: |
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काही नाही जया दीवसभर एकटी होते ना त्याचा परीणाम असावा! आज छान आहे मी!!! कीती म्हणुन थोपवुन धरले भरुन आलेले मळभ एक तुझी नजर राजा उजळुन गेली सारा काळोख श्यामली!!! हाय जास्वंदा निनावी, पमा कुठे आहत ग! 
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Manuswini
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| Monday, February 27, 2006 - 10:50 pm: |
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मीनु तुझ्या चारोळ्या खूप छान असतात हृदयास एक कळ उठवतात
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Shyamali, Meenu, Vaishali, Jaswand धमाल उडवून दिलीय तुमच्या मस्त झुळूकांनी.लगे रहो. बापू.
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तुझ्या मधुर आठवणी जणू सुगंध कैरीला रणरणत्या ग्रीष्मातही मनी आम्रवृक्ष मोहरला
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Heartwork
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| Tuesday, February 28, 2006 - 1:30 am: |
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तुझ्याइतक्या निष्ठुर तुझ्या आठवणी नसतात तु केन्व्हातरी दिसतेस त्या नेहमीच मला भेटतात
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Heartwork
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| Tuesday, February 28, 2006 - 1:33 am: |
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छोटेसे स्वप्न माझे सत्यामधे येइल का? एकदातरि माझ्याकडे वळुन ति पाहिल का?
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Heartwork
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| Tuesday, February 28, 2006 - 1:37 am: |
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वळुन तिने पाहीले तर... नजरेमध्ये तिरस्कार मी मनाला म्हटले 'हाच तुझा पुरस्कार'
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Heartwork
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| Tuesday, February 28, 2006 - 1:48 am: |
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तु केला उपहास आणि मि अनिरुद्ध झालो तु दिलेल्या वेदनानी मि समृद्ध झालो
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Meenu
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| Tuesday, February 28, 2006 - 2:42 am: |
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बापू, Manuswini धन्यवाद... सगळ्यांनाच छान सुर सापडलाय.. शामली, heartwork मस्त...
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दाद मी दिल्यावर प्रतिसाद तू देशील का? हाक माझी विरण्याआधी साद तू देशील का?
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Shyamli
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| Tuesday, February 28, 2006 - 3:08 am: |
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वाटल होत जुळले सुर निघतील आता तराणे पण हाय........ अजुनही निघतायत ईथुन सुर जुनेच वीराणे श्यामली!!!
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व्वा श्यामलि नि दिप्स झुळुक छानच..
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Shyamli
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| Tuesday, February 28, 2006 - 3:33 am: |
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हार्टवर्क.... आठवणींच काय रे त्या तुझ्याच असतात मला मात्र संधिसाठी दिवस दिवस लागतात श्यामली!!!
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ह्या वेळी येशील तेव्हा आठवे ठेऊन जाऊ नको घेऊन जा जे हवे ते आसवे घेऊन जाऊ नको
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Shyamli
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| Tuesday, February 28, 2006 - 3:40 am: |
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हाय वैभव मनापासुन साद तु देऊन तरी बघ दिला हात हाती तुझ्या घेऊन तरी बघ श्यामली!!!
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Shyamli
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| Tuesday, February 28, 2006 - 3:44 am: |
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आसवे ती नकोच मला आठवांचे काय करु तु नसता तेच रे माझ्या जीवाचा आधारु श्यामली!!! चुकतय काय तरी बरोबर बसत नाहिये का सान्गा कुणितरि please
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हाय, शयामली........ तुला अजुन खाद्य पुरवते.......... ओठातल्या मुरलीतुन येतात ह्रुदयातील सुर मुरली ही तुच ह्रुदयही तुझेच अन सुरही तुच अणि तुझ्यासाठीच! तरी का हेका नव्या गाण्याचा? ऐक ते गीत पुन्हा एकदा चढव आटवणींचा साज शब्दही तेच गीतही तेच त्याची धुंदीही तीच रंगही तोच, पण जर तुच बदलली चाल तर तेच गाणे वाटे बेताल शोध नात्याचा ताल होउ दे परत तोच बेधुंद उष्:काल!!!
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Shyamli
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| Tuesday, February 28, 2006 - 3:56 am: |
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वैशाली मस्तय ग! अजुन येऊ दे ना!!!
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Devdattag
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| Tuesday, February 28, 2006 - 4:07 am: |
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नि:शब्द जाहलो आज आम्ही, मुक्यानेच तुजला आवाज देतो रेखुनी त्या स्मृतिचित्रांना मग आठवांना आसवांचा साज देतो
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