|
|
Thread |
Posts |
Last Post |
  | Archive through February 02, 2006 | 35 | 02-02-06 8:05 am |
  | Archive through February 03, 2006 | 35 | 02-03-06 6:51 am |
  | Archive through February 09, 2006 | 35 | 02-09-06 12:21 pm |
  | Archive through February 14, 2006 | 29 | 02-14-06 12:38 pm |
  | Archive through February 15, 2006 | 25 | 02-15-06 11:29 am |
  | Archive through February 17, 2006 | 25 | 02-17-06 4:06 am |
  | Archive through February 22, 2006 | 25 | 02-22-06 1:23 am |
  | Archive through February 23, 2006 | 25 | 02-23-06 4:02 am |
  | Archive through February 26, 2006 | 25 | 02-26-06 8:48 pm |
  | Archive through February 28, 2006 | 25 | 02-28-06 4:07 am |
  | Archive through February 28, 2006 | 24 | 02-28-06 5:58 am |
Devdattag
| |
| Tuesday, February 28, 2006 - 6:05 am: |
| 
|
नको रे आठव त्या पहिल्या भेटिचा आज पुन्हा दोष देते त्या दिसाला ज्या दिवशी हा घडला गुन्हा..
|
काही काही जाणवत नाही पाऊस वा उन्हाच्या झळा तिची नि माझी प्रत्येक भेट चांदण्यांतला सोहळा
|
Shyamli
| |
| Tuesday, February 28, 2006 - 6:15 am: |
| 
|
चंद्र चांदणे असतील का रे? का सुर्याचा असेल पहारा? ह्या पहिल्या भेटीला लाभो ना आज कीनारा श्यामली!!!
|
Devdattag
| |
| Tuesday, February 28, 2006 - 6:33 am: |
| 
|
ना आठवे आसमंति तो सुर्य का चंद्र होता अंतरंगी माझ्या सखये तो तुझाच मुखचंद्र होता
|
श्यामली सुंदर ग!!! अजुन पुढे चालवते.... मागची कविता चुकुन ह्या bb वर आली किती धीटपणे नजरा मिळाल्या होत्या थेट, जेव्हा तुझी माझी झाली होती पहीली भेट
|
Meenu
| |
| Tuesday, February 28, 2006 - 6:47 am: |
| 
|
पहिल्यांदा भेटले तुला आणि केला विचार समजतो स्वत:ला हा फार शहाणा तरीही मन शोधु लागले तुलाच भेटायचा बहाणा प्रथमदर्शनी प्रेमाच्या याच असतात का खुणा
|
जेव्हा जेव्हा भेटतो तेव्हा नवे लाघवी रूप दिसते म्हणूनच आपल्या भेटींचे मला इतके अप्रूप असते
|
Shyamli
| |
| Tuesday, February 28, 2006 - 7:01 am: |
| 
|
वा! देवदत्ता,वैशाली, मीनु,वैभव मस्त प्रत्येक भेटीत मनाला असते एक हुरहुर ह्या नंतर भेटशील ना का जाशील रे दुर? श्यामली!!!
|
पहिल्या भेटीत आपल्या कळीसुध्दा लाजली होती, पाकळी पाकळीत फ़ुलली होती, सार्या जगाला कळले होते, पण तुला.. मलाच वळले नव्हते!!!
|
तु माझ्यापासुन लपत होतास नि मी तुझ्या पासुन आणि तरीही नजरेच्या कोपर्यातुन एकमेका बघत होतो, खेळ आपला बघुन सार जग..... हसत होतं....
|
Devdattag
| |
| Tuesday, February 28, 2006 - 7:11 am: |
| 
|
आपल्या प्रत्येक भेटिला एक आगळाच कलर आहे आणि तो कलर टिकून रहावा म्हणूनच मी ब.Cचलर आहे
|
वाह वैभव, वैशाली वाह!! श्यामली, देव.. हलका फुलका मुड आवडला.. पहिल्या भेटीच्या पहिल्या खुणा.. तुझ्या डोळ्यात अंगार माझ्या गालावर वहाणा..
|
पहिल्या भेटीच्या खुणा ओठावर माझ्या बहाणा डोळ्यात तुझ्या आर्जव, कसे गुन्तलो त्या भेटिने पहाना...............
|
|
|