Ninavi
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| Tuesday, February 14, 2006 - 12:45 pm: |
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वा, सगळेच मस्त लिहीतायत की! 
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Ninavi
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| Tuesday, February 14, 2006 - 12:58 pm: |
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तुझ्यावर चिडायला तू माझा आहेस कुठे? आणि स्वतःवर चिडावं तर मी माझी राहिल्ये कुठे?
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Shyamli
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| Tuesday, February 14, 2006 - 12:59 pm: |
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thanks जया, पमा, वैभव,
निनावी जमकेच आहे एकदम
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श्यामली झूळुक तुझीच ग! ..........
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Shyamli
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| Tuesday, February 14, 2006 - 10:37 pm: |
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वैशाली, चल काहितरीच तुझ 
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Devdattag
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| Wednesday, February 15, 2006 - 2:11 am: |
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माझ्या मनाला खरंतर तुझ्या असण्याची जाणीव आहे ती जाणीवही मला मान्य होती फ़क्त तू दिसण्याची उणीव आहे
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Sparsh
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| Wednesday, February 15, 2006 - 5:13 am: |
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मनावर पडलं आहे आठवणींचं चांदणं कठीण आहे तुझी उणीव शब्दांमध्ये मांडणं
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Sarivina
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| Wednesday, February 15, 2006 - 6:30 am: |
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maanya kolaM Aaho Aata maI tuJaM nasaNaM Aata tpasaUna phayalaa hvaM maI ... maaJaMhI AsaNaM
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Sarivina
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| Wednesday, February 15, 2006 - 6:40 am: |
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saMvaodnaaMcyaa pilakDo ek vaodnaocaa gaava Aaho itqaoca eka Garavar kÜrlaM tuJaMmaaJaM naava Aaho
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Sarivina
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| Wednesday, February 15, 2006 - 6:58 am: |
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tuJyaa maaJyaa naa%yaalaa tU roXaImagaaz mhNaalaasa Kra maI basalao gauMta saÜDvat tU Alagad inaGaUna gaolaasa bara
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Sparsh
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| Wednesday, February 15, 2006 - 7:04 am: |
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तु कल्पनाही नाही करु शकलास आणि मी ती स्वप्नं डोळ्यात साठवलीयेत तुला आठवतही नसेल कदाचित आणि मी त्या आठवणींची पारायणं केलीयेत....
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Shyamli
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| Wednesday, February 15, 2006 - 7:30 am: |
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साठवलेल्या आठवणीतच आठवायच तुला समोर आलास की मात्र काहीच सुचत नाही मला श्यामली!!!
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Devdattag
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| Wednesday, February 15, 2006 - 7:52 am: |
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तुझी प्रत्येक स्वप्नं मी माझ्या स्वप्नांबरोबर सांधली होती पण तुला सोडवायची घाई आत्ताच कुठे रेशिमगाठ बांधली होती
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Jaaaswand
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| Wednesday, February 15, 2006 - 8:38 am: |
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स्वरांत भेटली अन त्यानंतर एकसारखी आवडत गेली अबोल्याची एकच ओळ रोज नव्याने सुचत गेली जास्वन्द...
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Shyamli
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| Wednesday, February 15, 2006 - 8:43 am: |
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आलात का रे देवदत्ता,जास्वन्दा होऊन जाऊ दे जोरात!!!!!
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Shyamli
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| Wednesday, February 15, 2006 - 8:48 am: |
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आता कशाला अबोला भेट झाल्यानन्तर आवडलिये ना ओळ मग शब्द सुरात पडु दे अंतर श्यामली!!!
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Shyamli
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| Wednesday, February 15, 2006 - 9:08 am: |
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माझ्या दिसण्यात माझ्या असण्यात सगळीकडे तु आहेस कुठे कुठे शोधु तुला हा खरा की भास आहे श्यामली!!!
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Jaaaswand
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| Wednesday, February 15, 2006 - 9:19 am: |
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हाय श्यामली, देवदत्ता... शब्दांच्या गोंधळात कधी अबोल्याचा पावा होतो चांदण्यांचे थाटून ताम्हण चंद्राचा मग दिवा होतो जास्वन्द...
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Ninavi
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| Wednesday, February 15, 2006 - 9:36 am: |
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अजूनही कधीतरी पावा वाजतो रानात हासे कदंब मनात.. कधीतरी पाहिलेले आठवून प्रतिबिंब यमुना अजून चिंब..
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Jaaaswand
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| Wednesday, February 15, 2006 - 10:38 am: |
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वाह निनावी... 2 gud यमुनेला " त्रेता " नंतर खळी आता पडत नाही अश्रूंचा गोडवा तिच्या गळी आता उतरत नाही जास्वन्द...
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Ninavi
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| Wednesday, February 15, 2006 - 10:56 am: |
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धन्यवाद, जास्वंद. अजूनही नक्षत्रांचा रास तसाच रंगतो आणि अंधार भंगतो अजूनही राधिकेच्या फिरे तनामनावर मोरपीस हळुवार...
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Pama
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| Wednesday, February 15, 2006 - 11:06 am: |
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सरिता स्पर्श.. छान.. देवदत्त, जास्वंद.. काय रे बाबांनो.. कुठे होतात इतके दिवस? श्यामली, लढते रहो!! निनावे..
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Jaaaswand
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| Wednesday, February 15, 2006 - 11:18 am: |
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हाय पमा... कुठे नाही... इथेच होतो...थोड पोटापाण्याचे बघत होतो थोडी background ... ( बहुदा तुम्हां दर्दी लोकांना माहीत असेलच ) राधेने कृष्णाला जाताना ( बासरी बरोबरच ) वैजयंतीमाला भेट दिली होती, जी कृष्णाने आयुष्यभर गळ्यात घातली... प्रीतीच्या रितीची गाथा रचून गेला बासुरीवाला राधा होऊन आजन्म राहीली हृदयाजवळ वैजयंतीमाला जास्वन्द...
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Shyamli
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| Wednesday, February 15, 2006 - 11:25 am: |
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तुम्ही इतक उच्च लीहील्यावर आमच्या सारख्यांनी कशी रे हिम्मत करायची ईथे लिहायला?
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Jaaaswand
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| Wednesday, February 15, 2006 - 11:29 am: |
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मी श्यामलीच्या बाजूने आहे बरका
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