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Dilpya
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| Saturday, November 17, 2007 - 2:47 pm: |
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विकत घेतला शाम.... फक्त घेतली बदली, बढती नाही गाळला घाम पैसा कमावला जाम, तरी मी पैसा कमावला जाम... कुणी म्हणे ही असेल चोरी, कुणा वाटते असे उधरी सरकारी या परंपरेचा, फक्त राखला मान.... पैसा कमावला जाम तरी मी पैसा कमावला जाम... लालू गुराखी यमुनेकडचा, कर्णिक वाटे आमचा घरचा देव कुणाचा कुणी असो पण, आमचा तो 'सुखराम' पैसा कमावला जाम तरी मी पैसा कमावला जाम... खालूनी घ्यावे, वरती द्यावे, जे मिळेल ते वाटूनी खावे पैशावाचून केले नाही, कधी कुणाचे काम.. पैसा कमावला जाम तरी मी पैसा कमावला जाम... दिलीप म्हस्कर नाशिक
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Gsumit
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| Tuesday, November 20, 2007 - 12:32 am: |
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हे हे हे, मस्तच... सरकारी नोकरीत आहात का हो दिलीप तुम्ही? kidding
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Kalpak
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| Tuesday, November 20, 2007 - 6:53 am: |
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व्वा, मस्त छानच आहे
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Milya
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| Wednesday, November 21, 2007 - 7:21 am: |
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दिलीप चांगले जमलेय विडंबन.. 'पैसा कमावला जाम' मध्ये मिटर चुकतोय पण... बाकी मस्त आहे
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Zakasrao
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| Wednesday, November 21, 2007 - 1:35 pm: |
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मस्त आहे मिल्या मीटर मध्ये नको तर फ़ुट मध्ये घे
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ही! ही! ही! ही! दिलिप, सहीच जमलय रे........
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