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Dineshvs
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| Thursday, November 22, 2007 - 5:22 pm: |
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राज्य, दादच्या वतीने माझे चार शब्द. डॉ. डहाणुकराना कुणीतरी विचारले होते, कि तुम्हाला सगळीच झाडं कशी सुंदर वाटतात ? त्यावर त्या म्हणाल्या होत्या, माझ्या नजरेने बघा बरं, सगळेच छान दिसेल.
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Rajya
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| Friday, November 23, 2007 - 10:14 am: |
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धन्यवाद दाद.. .... .. दिनेश
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दाद सुरेख. यावेळी तीट लावायला पण काही मिळालं नाही लिहीत जा बाई.
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Satyajit_m
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| Thursday, November 29, 2007 - 11:05 am: |
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दाद काय दाद देउ? सुंदर भावल मनाला, पिल्लांची वर्णन फारच सुंदर. परदेशी हवेत देखिल आपल्या मतीचा सुगंध दरवळला झक्कास. सगळ्या आनंदात एक ठुसठुसणारी सल मात्र जाणवली. मुजरा...
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Rprachi
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| Sunday, December 02, 2007 - 6:44 pm: |
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सुरेख लिहीलय! हे वाचून वाटायला लागलं आहे, उद्या सकाळी जायफळ घालून दूधाची काॅफी घेऊन शेजारच्या पार्क मध्ये जावं.
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Anaghavn
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| Monday, December 03, 2007 - 5:03 am: |
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'तुमचं न आवडलेलं सांगणही आवडलंच" वा!दाद, तुझ्या स्वभावलाहि दाद. अनघा
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Daad
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| Tuesday, December 04, 2007 - 8:55 pm: |
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खूप खूप आभार सगळ्यांचे. अशी सकाळ तुम्हा आम्हाला वर्षातून एकदातरी लाभो!
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