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Dilpya
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| Sunday, November 04, 2007 - 8:22 am: |
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श्री. सुधीर मोघे यांची क्षमा मागून.... दोस्त गोळा झाले सारे, केले कोंबडे खलास पेल्या पेल्यातून वाहे दारू, झकास झकास.. दाणे मागवले खारे, थंड सोडा मागवला रोस्ट पापडाच्या संगे, तंगडी कबाब चापला मुख कमलास येई, सदा व्हिस्कीचाच वास... दोस्त गोळा झाले सारे, केले कोंबडे खलास... कधी हाॅटेल प्रकाश, कधी कफे ईनायत दारू पिण्यासाठी कधी, कधी जातो संस्क्रुतीत पैसे संपले तरिही, पिऊ उधार उधार.. दोस्त गोळा झाले सारे, केले कोंबडे खलास रोज पिऊन पिऊन, ढेरी झाली पहा मोठी दारू रोजच नेमाने, लागे बेवड्यांच्या ओठी पिणे रोजचे तरिही, पिऊ उधार उधार... दोस्त गोळा झाले सारे, केले कोंबडे खलास दिलीप म्हस्कर
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Tiu
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| Sunday, November 04, 2007 - 11:05 pm: |
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दिलीप...झकास आहे विडंबन! आवडलं... नाशिककर का?
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दिलीप, झकास आहे विडंबन! 'उधार उधार..' मध्ये यमक जुळत नाही पण मस्त झाले आहे विडंबन, आवडले.
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Milya
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| Monday, November 05, 2007 - 6:20 am: |
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दिलिप : मस्तच जमलेय ... तेवढे यमकाचे पाळले असतेत तर अजून बहार आली असती..
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Zakasrao
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| Monday, November 05, 2007 - 6:25 am: |
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बुधवार पेशल विडंबन मस्त जमलय दिलिप
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Dilpya
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| Monday, November 05, 2007 - 2:21 pm: |
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'sanskruti' che mrathi typing jamale naahi. te kase karayche he koni sangel ka? Saglya vaachakaana dhanyavaad Dilpya
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Tiu
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| Monday, November 05, 2007 - 2:47 pm: |
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sa.nskRutii...beLagaava Dhagaa = संस्कृती...बेळगाव ढगा
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Dilpya
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| Tuesday, November 06, 2007 - 1:20 pm: |
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दुसरे कडवे, शेवटची ओळ रिचवता पेग वाटे, झाले ठेंगणे आकाश.... दोस्त गोळा झाले.... तीसरे कडवे, शेवटची ओळ पिणे रोजचे तरीही, घालू नवा धुडगूस..... दोस्त गोळा झाले.... आता जमल का? दिलीप म्हस्कर
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