Athak
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| Saturday, October 27, 2007 - 8:38 am: |
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वा वा सगळे किती छान लिहीतात
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Mi_vikas
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| Saturday, October 27, 2007 - 10:28 am: |
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shyamli 4 u... माझी आरोळी ...i mean नव्हे चारोळी !! मोकळे आकाश माझे भास त्याला चांदण्यांचे भेट झाली जेव्हा तुझ्याशी भाळ झाले पोर्णिमेचे
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Pujarins
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| Sunday, October 28, 2007 - 5:04 pm: |
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एक पूर्वीची ऊंच सरकती भिंत ज़सा आरम्भ ना अंत सरके कासव हळूहळू थबकूनी जरा संथ त्यपुढील, सरकते ते कासव सरकते ती भिंत आरपार निघुनी जाती लाटांना न अंत
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Princess
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| Monday, October 29, 2007 - 11:21 am: |
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थांबवु नकोस दु:ख देणे जराही खुण तीच एक आहे मी जिवंत असण्याची...
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Itgirl
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| Monday, October 29, 2007 - 11:52 am: |
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माहित नाही हे कितपत जमलय, पण तरीही.. मौन असूनही तुझा शब्द वेल्हाळ वेल्हाळ वेड्या नजरेची साद जीव माझा हा घायाळ
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Princess
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| Monday, October 29, 2007 - 12:35 pm: |
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मस्त आहे ग आयटे जमलय... अजुन एक माझी किती दिवस झाले अश्रुच वाहिले नाही तू थांबवलय दु:ख देणे की जाणीव झालीये बोथट माझी.
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Itgirl
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| Monday, October 29, 2007 - 1:00 pm: |
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धन्यवाद ग प्रिंसेस, कुठे म्हणे हल्ली?
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Princess
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| Monday, October 29, 2007 - 1:03 pm: |
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आहे ग इथेच... पण सध्या कमी झालय इथे येणे.
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Itgirl
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| Monday, October 29, 2007 - 1:15 pm: |
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पत्रपेटी पहा प्रि मॉड्स सॉरी, हे संभाषण प्लीज उडवाल का? पण ही भेटतच नाही हल्ली, आजच भेटली, म्हणून... परत एकदा, सॉरी
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बरं झालं भेटलीस तेव्हा पाऊस आला झरून नाहीतर तुला दिसले असते ओले डोळे दुरून...!
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R_joshi
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| Monday, November 05, 2007 - 4:26 am: |
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पाणावलेले तुझे डोळे पावसासमच बरसले आता आले कळुन मी किती तुला व्यापले प्रिति जमल कि नाहि... प्रश्नच आहे?
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हाय पूनम, नेहमीसारखी झकास, अभिजित, लगे रहो!
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Princess
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| Monday, November 05, 2007 - 7:34 am: |
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धन्यवाद भ्रमा... कुठे आहेस?
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Gobu
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| Monday, November 05, 2007 - 5:15 pm: |
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रुप्स, पाणावलेले तुझे.. अगदी सुरेख!
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R_joshi
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| Tuesday, November 06, 2007 - 4:45 am: |
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गोबु राहिलास कोठे? झुळुकवर येण मंद(बंद) झालय निळ्या नयनातील आसमंताला प्रेमाचा किनारा लाभु दे सप्तरंगाचे इंद्रधनु जीवनी असेच राहु दे प्रिति
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Mankya
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| Tuesday, November 06, 2007 - 6:46 am: |
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सरून सरुन तरी असे कितीदा उरायचे एकसंध होता होताच तिळ तिळ तुटायचे तरी श्वासांना उरी फरफटताना पहायचे राहून राहून वाटते असेच व्हायचे जायचे ! माणिक !
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>>>थांबवु नकोस दु:ख देणे जराही खुण तीच एक आहे मी जिवंत असण्याची... <<<<< पुनम... एकदम खल्ल्लास... शैलजा, प्रिती मस्तच.. गोबुदा ती मी नाही प्रिती आहे... अभिजीत सुरुवातच सुरेख...
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