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Sush
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| Wednesday, October 03, 2007 - 5:14 am: |
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वा, सुंदर कथा. एकसलग टाकल्याने हवा तो परिणाम होतो वाचकांवर.(नाहितर अर्धी आधी आणि उरलेली नंतर असं केलं असतं, तर मायबोलिकरांनी हि कथा नाहि, ललित मधे टाका असं म्हटल असतं)
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Ajai
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| Wednesday, October 03, 2007 - 5:35 am: |
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September 28 ला पण खुप पाऊस पडत होता त्यावेळी सुचलेली कथा. येकुणच परिणामाबद्दल साशंक होतो.प्रतिक्रियांबद्दल आभार.
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Rajya
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| Wednesday, October 03, 2007 - 5:46 am: |
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मस्त रे अजय भन्नाटच आहे कथा
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Anaghavn
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| Wednesday, October 03, 2007 - 8:52 am: |
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रुनि,थन्क्स.शोना,प्लिज तुज़ी कथा लवकर पुर्ण कर ना. आम्ही सगळे वात पहात अहोत, आतुरतेने. आणि हो, मलाहि एक कथा लिहायचि आहे.कशी टाकायची ते कोणी सान्गेल का?
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Disha013
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| Wednesday, October 03, 2007 - 4:46 pm: |
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वा सही!एक्दम धक्कादायक शेवट.....
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