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Devdattag
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| Tuesday, September 11, 2007 - 10:52 am: |
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सहीच रे सागर.. .. ..
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Zelam
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| Tuesday, September 11, 2007 - 12:27 pm: |
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माणसा TP story आहे, आवडली.
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Dineshvs
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| Tuesday, September 11, 2007 - 1:54 pm: |
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सागर छान आहे कथा. मी शेवटाची वाट बघत होतो, प्रतिक्रिया द्यायला.
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Amruta
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| Tuesday, September 11, 2007 - 2:39 pm: |
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आत्त पुर्ण झाली बघ वाचुन छान लिहिलयस.. शेवट तुला खरच अजुन छान करता आला असता.
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Maanus
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| Tuesday, September 11, 2007 - 5:09 pm: |
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धन्स हो लोकहो... चेत्स... तुझ्यासाठी तर एक आखी लाईन मारली लिहीली की ग, अरे वा कुणाला तरी रहस्य वाटले, गुड माळ्यावरी सगळी जळमट काढली, प्रकाशासाठी थोडीफार जागा केली. कालचा टाकलेला अंगारा झाडुन काढला. आणि आज रात्री न चुकता पाणी चकल्या करंज्या माळ्यावर भुतांसाठी नेवुन ठेवल्या. मला ईथेच गोष्टीचा शेवट करायचा होता, पुढे का लिहीत गेलो माहीत नाही. बघा हा तुम्ही मला प्रोस्ताहन देत आहात परत काहीतरी लिहायला.
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