Mankya
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| Friday, August 24, 2007 - 5:09 am: |
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चाफा .. अतिशय मस्त कथा ! शेवटपर्यंत खिळवून ठेवणारी ! अश्याच एका रत्नाबद्दल मी एक कादंबरी वाचली होती, अफलातून होती ती . पण त्या रत्नाच्या माहीतीत तथ्य किती आहे माहीत नाही . ते रत्न त्याच्या मालकाचा जीव घेते अस नमूद केलं होतं आणि त्या कादंबरीचं अन रत्नाचं नाव ' रक्तमाणिक '! माणिक !
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Kashi
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| Friday, August 24, 2007 - 5:54 am: |
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चाफ़ा मस्त आहे..कथा!!! रात्री वाचुन उपयोग नाही..जाम टरकायला झाले.
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Manogat
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| Friday, August 24, 2007 - 7:09 am: |
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चाफ़ा, सुरेख लिहीली आहेस कथा..सगळि द्रुश्ये दोळ्यापुढे साकार झाली. आणि पुर्ण कथा एका post मधे संपवली म्हणुन मस्त लिंक लागली कथेची.. नाही तर आजकाल लोक कथा लवकर संपवतच नाही.
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Nilima_v
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| Friday, August 24, 2007 - 11:52 pm: |
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lawkar to heera lashkar e toeba chya nawawar karun tak. Agdi nahi jamal tar atleast daud Ibrahimla tari deun taak.
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Durandar
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| Sunday, August 26, 2007 - 1:35 pm: |
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चाफ़्फ़्या गुलमोहोरवर आगमन तर जोरदार केले आहेस, पुढच्या कथेचि वाट पहातोय. पण भिति वाटूनये अशि एकतरी वस्तु सोड ना! झाडापासुन हिर्या-माणकांपर्यत सगळ्याच्या जवळपास जाताना तुझी कथा आठवायला नको
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Maudee
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| Monday, August 27, 2007 - 9:20 am: |
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भयकथा आहे असे आधी नमुद केल्यामुळे मला वाटत अपेक्षित परिणाम साधला नाही गेला.... असं लिहीलं नसतं तर भिती वाटली असती कथा छान होती
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Mmr
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| Wednesday, August 29, 2007 - 6:20 am: |
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surekh mandni ani shewet ekdum zakas kelas.
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Maanus
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| Sunday, September 09, 2007 - 2:07 am: |
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आईशपथ, हे मला आधी का नाही दिसले... मी इतके दिवस असले काहीतरी शोधत होतो. आज काय आपल्याला झोप लागत नाही.
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