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श्रावणातल्या रेशीमसरींनो बरस बरस बरसाहो भावकळ्यांना शब्दफुलांना म्रदगंध नाहवा हो श्रावणातल्या रेशीमसरींनो माहेरी जाऊनी या हो त्या तिथल्या अंगणातल्या आठवणी मज सांगा हो श्रावणातल्या रेशीमसरींनो आठवते कां छोटीशी "मी" जरा विसावा त्या वाटेवर भेटतील माझ्या मैत्रीणी हो श्रावणातल्या रेशीमसरींनो बहु भाग्यवान तुम्ही अहा त्या मातीचा गंध कांहीसा मजसाठीही घेऊनी या हो श्रावणातल्या रेशीमसरींनो काय तुम्हांस देऊ मी सखया माझ्या तुम्ही गं सार्‍या मन माझे घेऊनी जा हो! कलिका*
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कोणत्या अगम्य भाषेत लिहिले आहे?
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मस्तच! अजून येऊ दे
कलिका अगं नुसते आकडे दिसतायत. OS चा प्रॉब्लेम आहे का? jpeg करून टाक नाहीतर.
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Shyamli
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| Monday, August 13, 2007 - 10:25 am: |
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कलीका अग बरहा मधे येतो असा problem, सुरवात eng मधे करुन edit कर, किंवा सरळ देव२ मधे टाक
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>> मस्तच! अजून येऊ दे सन्मे, डीकोड केल आहेस का? मग तूच टाक ना इथे
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Rajya
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| Friday, August 17, 2007 - 9:52 am: |
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गादीवर बेडशीट टाकल्यासारखं वाटतय नाही?
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Runi
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| Friday, August 17, 2007 - 3:15 pm: |
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मस्त...काहिही न वाचता येवुन्पण इतक्या प्रतिक्रीया, मग वाचल्यावर किती? अरे पहेले तुम पहेले तुम कर्ण्यापेक्षा प्लीज कोणीतरी टाका ना ते आम्हाला समजेल अशा भाषेत.
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Rajya
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| Saturday, August 18, 2007 - 9:09 am: |
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रुनी, आपल्या पवित्र हातानं हे सामाजिक कार्य होऊ द्या.
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Mrinmayee
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| Saturday, August 18, 2007 - 2:25 pm: |
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जुन्या सवयीप्रमाणे मी आपला रोलनंबर शोधायला लागले!
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Runi
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| Saturday, August 18, 2007 - 3:51 pm: |
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राजा, अरे बाबा मला जर ते पुण्यकर्म करता आले असते तर कशाला बाकीच्यांना करायला सांगीतले असते.
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Gobu
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| Sunday, September 02, 2007 - 9:44 am: |
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हे काय लिहील आहे, काहीच कळत नाहीय.. कुणी जाणकार सान्गेल काय?
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