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Milya
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| Thursday, August 09, 2007 - 5:31 am: |
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चाल : हा खेळ सावल्यांचा दिल्लीत खेळ चाले, या मूढ माकडांचा संपेल ना कधीही, हा खेळ माकडांचा || हे कमळ ना सुगंधी, संघात घडवलेले जातीयवाद नामे, काट्यात अडकलेले तोंडात राम असुनी, आचार रावणाचा संपेल ना कधीही, हा खेळ माकडांचा | लढण्यात पाकळ्या जर, आपापसात दंग कैसा मुठीत यावा, सत्तेसमान भृंग करते धनुष्य मारा, कमळावरी शरांचा संपेल ना कधीही, हा खेळ माकडांचा | पिझ्यास इटलिमधल्या, लालू, पवार बेस डाव्यांकडून वरती, जुनकट नि लाल सॉस मनमोहनास होई, मग त्रास अपचनाचा संपेल ना कधीही, हा खेळ माकडांचा | कुरवाळण्यात 'दाढी', पंजा सदैव मग्न अफजल गुरुस फ़ाशी, देण्या अनेक विघ्न राष्ट्रास का पती हा निर्जीव लाकडांचा संपेल ना कधीही, हा खेळ माकडांचा |
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मस्त ... पिझ्झा , बेस आणि एकूणच कडवं विशेष . विडंबन आवडलं मिल्या
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Pillu
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| Thursday, August 09, 2007 - 6:04 am: |
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मस्त मिल्या सुंदर विडंबन यात अजुनही भर घालता आली असती असु देत हे वर्तमान पत्रात दे न छापुन येईलच.
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Radha_t
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| Thursday, August 09, 2007 - 7:58 am: |
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खरच मिल्या e- सकाळ ला पाठव मस्त जमलय
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मिल्या,मस्त विडंबन आणि एकदम समर्पक..
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Arun
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| Thursday, August 09, 2007 - 8:28 am: |
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मिल्या : नेहमीप्रमाणेच मस्त आहे रे विडंबन ..........
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Psg
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| Thursday, August 09, 2007 - 9:01 am: |
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वा मिल्या.. शालजोडीतले हाणले आहेस की! जमलंय विडंबन!
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Kandapohe
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| Thursday, August 09, 2007 - 9:22 am: |
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मिल्या नेहेमीप्रमाणेच मस्त. आपण कितीही म्हणले तुमचे एक मत हे सर्व बदलू शकते तरी न बदलणारी गोष्ट आहे ही. सगळेच चोर. त्यातला छोटा चोर बघायचा. 
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Abhi_
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| Thursday, August 09, 2007 - 9:43 am: |
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मिल्या खासच रे!! ..
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Zakasrao
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| Thursday, August 09, 2007 - 12:33 pm: |
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मिल्या सहीच रे छान जमलय. मी चालीत म्हणून पाहिल मनातल्या मनात. सद्य परिस्थिती अशी आहे रे. केप्याने जे बोलल ते हि तितकच खर आहे
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Amruta
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| Thursday, August 09, 2007 - 7:47 pm: |
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मस्तच जमलय रे मिल्या. मी अगदी मोठ्यांदा आणि चालीत वाचल.
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Chetnaa
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| Friday, August 10, 2007 - 2:54 am: |
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खुपच छान झालय विडंबन... सही
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Daad
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| Friday, August 10, 2007 - 4:17 am: |
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मिल्या, बहोत खूब! मीही चालीत म्हटलं... पिझ्झ्याचां कडवं झकासच.
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Milya
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| Friday, August 10, 2007 - 5:19 am: |
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खूप खूप धन्यवाद सर्वांना!!! केपी, झकास .. : तुम्हाला अनुमोदक. खरेच सर्व एकाच माळेचे मणी आहेत
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Disha013
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| Friday, August 10, 2007 - 7:18 pm: |
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मस्त विडंबन! मला पण पिझ्झ्याचं कडवं जास्त आवडलं. खरच माकडे आहेत सगळी....
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Hems
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| Friday, August 10, 2007 - 9:33 pm: |
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मिल्या, धम्माल आणि कम्माल लिहिलयस !
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Vhj
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| Saturday, August 11, 2007 - 6:58 am: |
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मस्तच खुप छान विडंबन केलय.
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Paragkan
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| Saturday, August 11, 2007 - 2:58 pm: |
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kya baat hai ... ekadam fitt!
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Ksmita
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| Saturday, August 11, 2007 - 10:13 pm: |
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Milya, मस्तच ! सही जमलेय , प्रत्येक कडवे अगदी फ़िट्टं !!
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mILIND bHAI tUSSI CHAAA GAYE HO YARR.....! Jabardast...!
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