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Swara
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| Wednesday, August 29, 2007 - 3:33 am: |
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वाट तुझी पहात राहिले रात्र जागले सारी प्राण माझे ओढून नेले काळ सर्पाने विखारी
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Manogat
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| Wednesday, August 29, 2007 - 9:20 am: |
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ती रोज स्वप्नातच भेटते डोळ्यातच विसावते प्रत्यक्षात येतांन मात्र डोळ्यातल्या अश्रुंनी वाहुन जाते
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Pujarins
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| Monday, September 03, 2007 - 8:46 pm: |
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ऊंच सरकती भिंत ज़सा आरंभ न अंत सरके कासव हळूहळू थबकुनी जरा संथ
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Swara
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| Wednesday, September 05, 2007 - 1:27 am: |
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संपता संपता सुरुवात होते अस्तानंतर उदय होतो स्वप्नांच्या राखेमधून फीनिक्स पुन्हा जन्म घेतो
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Swara
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| Wednesday, September 05, 2007 - 2:06 am: |
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वारे वारे तारे तारे छळती मजला का रे सारे आठवणीचे तुझ्याच राजा छलकत जाती जाम पहा रे मन ही भरले भरले डोळे तहान कैसी तरी मला रे शब्दांना मग पूर लोटता गा गा गा रे खिन्न मना रे
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va mast lihalas chan
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