|
Mankya
| |
| Friday, August 10, 2007 - 10:37 am: |
|
|
मीनू .. झुळूक छाने पण असं का गं लिहिलस एकदम .. ठिक आहेस ना ? मनोगत .. धन्स दोस्त ! चाहूल होतीच ती वादळाची उरी पण ते येण्यापूर्वीच अनर्थ घडलं वादळालाही समाधान न दिले मी हाय ... परत काळीज चरफडलं ! माणिक !
|
Kinara
| |
| Friday, August 10, 2007 - 11:21 am: |
|
|
मणिक, छान लिहिले आहे, वद्ळाच्याही सिमा ओलान्ड्नणार मान तूज़्ह्या कडे असाव.......
|
Rajya
| |
| Friday, August 10, 2007 - 12:05 pm: |
|
|
झुळुक म्हणता म्हणता त्याचं वादळ झालं त्या वादळानं माझं अवघं विश्व उधळलं
|
Shyamli
| |
| Monday, August 13, 2007 - 3:41 am: |
|
|
वादळ का? ही एक जुनीच सांगु नको अजुनी वादळाची कारणे अपुरीच घातली तू भोवताली कुंपणे श्यामली!
|
Mankya
| |
| Monday, August 13, 2007 - 8:40 am: |
|
|
किती कितीदा व्हावे जमीनदोस्त अन पून्हा त्या वादळालाच सावरावे तरी का त्यानेच मजसाठी रडावे फिरूनी तेच झंझावत उरी वावरावे ! माणिक !
|
|
|