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Jo_s
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| Friday, July 06, 2007 - 7:09 am: |
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वा, मंक्या छानच लिहीलस की, हल्ली चित्रकवितेला चित्र टाकणं बंद केलस की काय
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Mankya
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| Friday, July 06, 2007 - 9:28 am: |
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धन्स सुधीर ! चित्रकवितेचा विभागच काढून टाकलाय की ! माणिक !
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Kpramod
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| Sunday, July 08, 2007 - 12:20 pm: |
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वा! श्यामली ..... कविता मस्त जमल्यायत!
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प्रतारणा आज कसे,का, कुणास ठाऊक? पण,फ़ितूर माझी भावना झाली अन, क्षणभरच विसरुन तुला मी तुझी प्रतारणा केली..
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Shyamli
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| Saturday, July 14, 2007 - 5:06 am: |
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पान आतुर आतुर पाहे लेखणिची वाट एका वेड्या वचनासाठी जणु राहिली मुकाट बापु इथे येउन अभिप्राय दिल्याबद्दल मन:पूर्वक धन्यवाद, प्रीती
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श्यामली,अग कुठल्या font मध्ये लिहते आहेस,मला दिसत नाहीय..
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Shyamli
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| Saturday, July 14, 2007 - 10:27 am: |
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आता दिसतय का ग?
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Jo_s
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| Saturday, July 14, 2007 - 11:11 am: |
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श्यामली, छान आहे एका दिल्या वचनासाठी गप्प राहिली मुकाट गुदमरले नाजूक ते घट्ट दाबलेले ओठ कुणा कळेना काहीही नयनी का वाहती पाट तीच मनी जाणून होती वचनाची खुण गाठ सुधीर
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धन्स श्यामली.. दिसतय आता आवडली सुधीर, छान..
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Jo_s
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| Monday, July 16, 2007 - 3:45 am: |
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मृदगंधा धन्यवाद. ... सुधीर
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R_joshi
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| Monday, July 16, 2007 - 7:20 am: |
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मृ, जो श्यामली.. छानच आसवांच्या धारा वाहता शब्द दिसे नासे होती उरे पांढरा कागुद त्या वचनाचा साक्षी प्रिति
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Shyamli
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| Monday, July 16, 2007 - 10:14 am: |
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धन्यवाद सुधीर, मृ, प्रीती
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