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Meenu
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| Saturday, May 26, 2007 - 2:26 am: |
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नंदिनी छान आहे कथा ..
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Neelu_n
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| Saturday, May 26, 2007 - 5:25 pm: |
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नंदिनी कथा खरच आवडली. भ्रमर म्हणतो तसे अगदी शेवट वाचताना स्क्रीन धुसर झाला.
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Chaffa
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| Sunday, May 27, 2007 - 4:26 am: |
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नंदिनी कथा खरंच सुंदर आणी नेटकी, जमा करुन घेतलीच आहे.
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Ashwini
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| Monday, May 28, 2007 - 3:48 am: |
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नंदिनी, छान आहे कथा. एकटेपणाची व्यथा, अगतिकता आणि नंतरचा कणखरपणा छान मांडला आहेस.
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Jagu
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| Monday, May 28, 2007 - 7:28 am: |
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नंदिनी ऋदय स्पर्शी आहे कथा.
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Daad
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| Monday, May 28, 2007 - 7:33 am: |
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नंदिनी कथेत तिचं एकटेपण अतिशय सुंदर उतरलंय. अशाच एका व्यक्तीला मी जवळून ओळखते. तिनेही तिच्या आयुष्यात अशीच एक उसळी मारलेली मी बघितलीये, त्याची आठवण झाली. ही कथा तिला वाचायला दिल्यावर तिच्या शब्दात - "मी परत एकदा ते सगळं जगले गं!" सुंदर!
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Alpana
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| Sunday, June 03, 2007 - 12:57 pm: |
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नंदिनी आवडली तुझी कथा... हळु हळु तुझ्या जुन्या कथा पण वाचेन
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Shailaja
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| Sunday, June 03, 2007 - 5:10 pm: |
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अल्पना औरंगाबाद्ला तु कुठे राह्तेस? मी पण औ"बाद्ची आहे आणि माझ्या बहिणी च्या वर्गात पण एक खांड्रे होती.
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Manogat
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| Monday, June 04, 2007 - 2:20 pm: |
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नंदीनी, मस्तच! u are great सही आहे कथा
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