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Princess
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| Thursday, April 05, 2007 - 8:46 am: |
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मिल्या... तुझा तर प्रश्नच नाही. मस्त केलय विडंबन. पूनमचे काय मत आहे ?(ए.भो.प्र. ) साती, तू पण छानच केलय. मजा आ गया.
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Sas
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| Thursday, April 05, 2007 - 7:51 pm: |
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गोजिऱ्या सासूसुनांच्या साजिऱ्या त्या मालिका थांबला जागीच तो मी गरगराया लागले!! बुरुज देखिल सिंहगडचे सूक्ष्म वाटू लागले जसे रोज रातीस दाटून येते तसे हंगलाच्या डोळ्यात होते जबरदस्त ह. ह. पु. पु.
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Disha013
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| Thursday, April 05, 2007 - 8:48 pm: |
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सती,मस्तच गं. हहपुवा.ह्भ ह्ह्ध ह्भ्ब
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Jayavi
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| Friday, April 06, 2007 - 4:13 am: |
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साती.......... झकास!! मज्जा आली
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मिल्या , सहीच . पूर्ण विडंबन आवडले , त्यातही असुर लाखो जवळ असुनी दैत्यराजा हळहळे दैत्यमाणिक हे तुझ्यासम मर्त्यलोकी राहिले खास आलंय . संदीप , सलील सिरीज संपली की नाही ? साती ... गोजिऱ्या सासूसुनांच्या साजिऱ्या त्या मालिका पाहणे मी थांबले अन "हे" हसाया लागले!! भर पहाटे फॅनची मी दृष्ट काढून टाकली थांबला जागीच तो मी गरगराया लागले!! झकास .
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Daad
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| Monday, April 16, 2007 - 7:55 am: |
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साती... मस्तच आहे विडंबन गोजिर्या सासू... आणि भर पहाटे झकासच जमलीये.
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