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Bee
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| Wednesday, February 27, 2008 - 7:03 am: |
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खरच योगेश, भाषा जरी शुद्ध असली तरी सोसायटील संडास सामायिक असणे गमतीदार वाटते आहे
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Ramani
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| Wednesday, February 27, 2008 - 7:55 am: |
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Ramani
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| Wednesday, February 27, 2008 - 8:06 am: |
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खोटे वाटेल पण ही पाटी तथास्तु मधल्या ट्रायल रुम मध्ये होती
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Ramani
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| Wednesday, February 27, 2008 - 8:09 am: |
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Ramani
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| Wednesday, February 27, 2008 - 8:11 am: |
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Ramani
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| Wednesday, February 27, 2008 - 8:13 am: |
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Ramani
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| Wednesday, February 27, 2008 - 8:15 am: |
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Upas
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| Wednesday, February 27, 2008 - 3:24 pm: |
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झुणका भाकरीला पस्तीस रुपये, सजवून देतात काय डीश? एकूणच पदार्थ इतके महाग.. पॉश असलं पाहीजे पण दरपत्रकावरून वाटत नाही तसं.. कुठे आलं हे हॉटेल? बरं तर बरं, मी रुपयात झुणकाभाकर खाल्लेय कीत्येकदा.. गरीबांचं राज्य नाही बा..
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शिवाय झुणका भाकरीला ३५ रु. आणि पिठलं भाकरीला २५ - हे लॉजिक काही कळलं नाही बुवा!
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Asami
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| Wednesday, February 27, 2008 - 4:26 pm: |
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झुणका भाकरीला ३५ रु.>>सेनेने sponsore केलेली असेल
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Sonalisl
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| Wednesday, February 27, 2008 - 7:20 pm: |
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रमणी, कित्ती त्या पाट्या.....सुचना फ़लक! (छान आहेत!) पुण्यात कॅमेरा(मराठी शब्द?) घेऊन फ़िरतेस कि काय?
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माझ्या माहिती प्रमाणे झुणक्यात कांदा असतो आणि पिठल्यात नाही.... तसंच पिठलं पाणी घालून कधीही वाढवता येतं
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Bee
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| Thursday, February 28, 2008 - 3:01 am: |
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पिठल्यात कांदा नाही.. हे काही खरे नाही. आम्ही दोन्हीत कांदा घालतो.. नव्हे हवाच च च च असतो
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Ashwini_k
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| Thursday, February 28, 2008 - 7:45 am: |
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झुणक्यात घट्ट होण्यासाठि १०रूचे बेसन जास्त लागत असेल.-
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Prachee
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| Thursday, February 28, 2008 - 8:04 am: |
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अश्विनी, अगदी अगदी..... मलाही तसेच वाटते.
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रमणी काय पुणेरी पाट्यांवर संशोधन चालूय काय? उपास पण झुणका भाकरी वगैरेचे हे रेट्स आता कॉमन आहेत. पॉश हॉटेल्स (विवा पश्चिम वैगरे) मधे तर खूपच जास्त आहेत. ते एक रुपयावालं गेलं आता. तिथं आता वडा पाव, नूडल्स पिझ्झा वगैरे कॉंटीनेंटल मिळतं. आता झुणका भाकरी डिझायनर डिश म्हणूनच खायची. स्वाती मला वाटतं अश्विनी म्हणतेय ते बरोबर आहे. पीठ जास्त लागतं त्याला.
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ती झुणका भाकरी ची पाटी एरंडवण्यातल्या "मनोहर" रेस्टाॅरेन्ट मधली आहे (मेहेंदळे गॅरेज वालं). तिथे शिरा आणि साबुदाण्याची खिचडी छान मिळते. "येथे कोणतेही खेळ खेळू नये" अशी पाटी शामाप्रसाद मुखर्जी उद्यान पटवर्धन बाग कोथरुड इथे पण आहे. ती वाचून चांगलीच करमणूक झाली होती.
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खासकरून त्या मजकुरामागची रंगसंगती!!
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नमस्कार हि घ्या एक पाटी 
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Zakki
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| Wednesday, March 05, 2008 - 7:03 pm: |
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दुकानाच्या आसपास नुसते 'मोबाईल' म्हंटले तरी चार्ज पडेल!
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चोखंदळ ग्राहक |
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महाराष्ट्र धर्म वाढवावा |
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व्यक्तिपासून वल्लीपर्यंत |
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पांढर्यावरचे काळे |
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गावातल्या गावात |
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तंत्रलेल्या मंत्रबनात |
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आरोह अवरोह |
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शुभंकरोती कल्याणम् |
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विखुरलेले मोती |
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हितगुज दिवाळी अंक २००७
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