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Panna
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| Wednesday, November 21, 2007 - 3:11 pm: |
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अमृता, हळदीमधे काय मिक्स केलेस? म्हणजे एक सलग भरता यावी म्हणुन?
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Amruta
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| Wednesday, November 21, 2007 - 4:50 pm: |
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स्वाती, मस्त आल्यात तुझ्या रांगोळ्या. पूनम जमेलच तुला बघ सगळ्यानी प्रोत्साहन दिलय
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Amruta
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| Wednesday, November 21, 2007 - 4:54 pm: |
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पन्ना, अग रांगोळीच मिसळली आहे हळदीत. थोडीशी रांगोळी होती माझ्याकडे आणि बाकि आपली फॉलची पान, फुल आहेतच. दिव्या, अग रात्री लावलेली पणती मधे.
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Mepunekar
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| Wednesday, November 21, 2007 - 6:52 pm: |
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हि रांगोळी माझ्या बाबांनी काढलिये 
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Bsk
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| Thursday, November 22, 2007 - 4:33 am: |
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amazing!!! mepunekar, kasali mast distiy hi rangoli! ti hirwi pane far goad distayt.. 
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Swa_26
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| Thursday, November 22, 2007 - 5:13 am: |
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धन्स पुनम, मोना, दिव्या नि पन्ना... मीपुणेकर... सहीच आलीय ही रांगोळी!!
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Jayavi
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| Thursday, November 22, 2007 - 9:34 am: |
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मी पुणेकर..... जबरी आलीये तुझ्या बाबांची रांगोळी अमृता.......मस्त आयडीया आहे गं ! स्वाती, फ़ार सुरेख आल्यात तुझ्या रांगोळ्य़ा !! मला ह्यावर्षी जास्त वेळ मिळाला नाही म्हणून पटकन होईल अशी छॊटीशी रांगोळी काढली
दिनेश..... ही खास तुझ्यासाठी माणसा..... अरे आम्ही कुवेतवासी रे.......... सौदीवासी नाही 
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Divya
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| Thursday, November 22, 2007 - 1:56 pm: |
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जयावी, छान आहे रांगोळी. मला तुझी मागच्या वर्षीची काढलेली रांगोळी सुद्धा लक्षात आहे. रंगीत खडे वापरुन काढली होतीसना. फ़ार छान आली होती. मी-पुणेकर, मस्तच. माझ्या घरी पण अशा पार्टेक्सच्या फ़रश्या, काही पुजा असली कि त्यावर रांगोळी काढलेल दिसायच नाही म्हणुन आइने काळा छोटा प्लायवुड आणुन ठेवला होता त्यावरच काढावी लागायची. ही पण आयडिया मस्तच.
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Mepunekar
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| Thursday, November 22, 2007 - 4:37 pm: |
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bsk ,स्वाती,जयावी,दिव्या धन्स! बाबांना सांगेन तुमच्या प्रतिक्रिया. दिव्या, सेम.. अग त्या पार्टेक्स च्या फ़रश्यांमुळे फ़ुलांची रांगोळी सुरु केली घरी
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Dineshvs
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| Thursday, November 22, 2007 - 5:14 pm: |
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स्वाती, तुझ्या घरी यायला हवे होते, दिवाळीत. मीपुणेकर क्रोटनच्या पानाचा वापर दाद देण्याजोगा. बाबांच्या कलेला सलाम. ! जयु, किती सुंदर रंगसंगती आहे ही. !! रांगोळी काढणे आपल्यासाठी किती जिकिरीचे असते पण अस्सल कलाकार याच माध्यमात काय करु शकतो ते इथे बघा. हे फोटो नेहरुनगर कुर्ला, इथे भरलेल्या प्रदर्शनातील आहेत. त्यामूळे कोन नीट साधता आला नाही.

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Fulpari
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| Tuesday, December 04, 2007 - 7:56 am: |
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ही रांगोळी मी office मधे काढली होती 
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दिनेश्दा great रंगोळी आहे अस तर चित्र सुध्दा काढता येत नाही. मी अशीच रांगोळी चित्रे पहिल्यांदा साता-याला पहिली होती. आणि आता फ़ार छान आहेत.
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Ajai
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| Tuesday, December 04, 2007 - 8:41 am: |
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दिनेश्- युमची वरची पोस्ट पाहिली. कॉलेजला असताना गुणवंत मांजरेकर आणि त्यांच्या शिष्यांनी काढलेल्या रांगोळिचित्रांच प्रदर्शन मुंबई मराठी ग्रंथ संग्रहालय दादर येथे भरायच त्याची आठवण झाली. बर्याच जणाना विचारुन सुद्धा अजुन या कलेच तंत्र कळले नाही. ही चित्र ग्रीड मेथडने काढतात आणि शक्यतो डार्क टु लाईट पद्धत वापरतात एव्हढेच ऐकुन आहे. कुणाला डिटेल्स माहीती असतील तर प्लिज पोस्ट करा. नेटवर फारशी माहीती नाहिये. एक साईट मिळाली जी जुजबी माहिती देते. http://swastikrangoli.com/rangoliart.html
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Dineshvs
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| Wednesday, December 05, 2007 - 3:25 am: |
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अजय, अरे मीही गुणवंत मांजरेकरांचा चाहता आहे. मला वाटते त्यानी अनेक शिष्य तयार केले आहेत. ते रंग वापरताना छोट्याश्या कपड्यात घेऊन टाकत असत. ह्या रांगोळ्या काढताना, अजिबात वारा चालत नाही तसेच एक रांगोळी पुर्ण करायला आठदहा तास लागतात. त्या मानाने संस्कारभारतीच्या रांगोळ्या सोप्या वाटतात.
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Suchiti
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| Wednesday, December 05, 2007 - 8:40 am: |
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माझ्या रान्गोल्या 
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Suchiti
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| Wednesday, December 05, 2007 - 8:43 am: |
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अजुन रान्गोळ्या 
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Suchiti
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| Wednesday, December 05, 2007 - 8:44 am: |
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Tell me if u like one more for u
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Itgirl
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| Wednesday, December 05, 2007 - 9:31 am: |
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सुचिती, गजानन, किती सुरेख आहेत रांगोळ्या! सुरेखच आहेत
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Divya
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| Wednesday, December 05, 2007 - 2:03 pm: |
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सुचिती आणि गजानन छान. पाचबोटाच्या रांगोळीत काय सफ़ाई जाणवते. दिनेश तुम्ही टाकल्या तशा रांगोळ्या (रांगोळ्या नाही म्हणता येणार खडु ने काढलेली चित्रच होती) नगरला रस्त्यावर काढल्या होत्या मराठी साहित्य संमेलन भरले होते तेंव्हा. त्याची आठवण झाली.
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