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Lampan
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| Wednesday, October 11, 2006 - 1:57 pm: |
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अनिकेत , गिरिराज , श्यामली thank u very much आणि बाकीच्या लोकांना आधीच म्हणालोय :D
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Shonoo
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| Wednesday, October 11, 2006 - 4:55 pm: |
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लम्पन मस्त लिहिलं आहेस एकदम. लहानपणी फिरलेला भाग डोळ्यापुढे आला. अन्कोला, होनावर, कारवार हा भाग इतका सुंदर आणि त्यामानाने अप्रसिध्द आहे. माझे वडील आणि त्यांचे मित्र वगैरे जोग फ़ॉल्स च्या भागत शिकारीला जात असत. त्या गावाचं स्थानिक नाव गिरसप्पा आहे. ज़ोग फ़ॉल्स ही बहुतेक इंग्रजांची देणगी असावी. त्या धबधब्यांना राजा, राणी, रॉकेट ( आणि अजून एक आठवत नाही) अशी नावं होती.
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Sayuri
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| Wednesday, October 11, 2006 - 5:33 pm: |
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Hi लंपन, मस्तंच एकदम! पण ह्या सुंदर थ्रेड्चं नाव तू NH-4..वगैरे असं रुक्ष का दिलं आहेस...लिखाणाला साजेसं एखादं छान चाललं असतं. असो ते फ़ार महत्वाचं नाही. पुढ्चे ट्प्पे वाचायला आम्ही उत्सुक आहोतच.
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Arun
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| Thursday, October 12, 2006 - 3:44 am: |
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अद्वैत : फोटो पण मस्त आहेत रे ...........
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Bhagya
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| Friday, October 13, 2006 - 12:30 am: |
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छान लंपन! अजून पण जिथे जायचे असेल तिथे जाउन ये, प्रवासवर्णन टाक फ़क्त.
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लम्पन १दम सुरेख फोटो, दोन डोन्गर आनी मधे नदी...वा खूप छान
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Lampan
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| Monday, October 16, 2006 - 7:58 am: |
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शोनू , सयुरी , भाग्या , अरुण , रुपाली Thanks a lot !!!
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Dineshvs
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| Tuesday, October 17, 2006 - 2:40 am: |
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अद्वैत, सुंदर लिहिले आहेस. पुढच्या योजनेत मलाहि सहभागी व्हायला आवडेल.
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चोखंदळ ग्राहक |
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महाराष्ट्र धर्म वाढवावा |
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व्यक्तिपासून वल्लीपर्यंत |
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पांढर्यावरचे काळे |
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गावातल्या गावात |
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तंत्रलेल्या मंत्रबनात |
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आरोह अवरोह |
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शुभंकरोती कल्याणम् |
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विखुरलेले मोती |
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हितगुज दिवाळी अंक २००७
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