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Pha
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| Wednesday, January 11, 2006 - 1:00 pm: |
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जीडी, गाण्यांवर काहीतरी लिहून ' श्रीगणेशा ' कर की लेका!
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Moodi
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| Wednesday, January 11, 2006 - 1:15 pm: |
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नाहीतर कोकणातील सौंदर्य पण चालेल. लिव्हा हो जागा बक्कळ हाय. प्रवास वर्णनापासुन सामाजीक जीवन वा कॉलेज शाळेतील आठवणी. अभिनंदन जागेबद्दल.
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Manee
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| Friday, January 13, 2006 - 6:28 pm: |
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अरे व्वा! GD , अभिनंदन!!
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Shivam
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| Thursday, February 02, 2006 - 12:20 pm: |
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जीडी, जे काहि खरडलंय म्हणतोयस ना; टाक पाहू लवकर चिकटवून इथे.
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GD , नाहीतर टांग्मारु फुलवाली बद्दल लिहि
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Gurudasb
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| Saturday, February 04, 2006 - 5:26 am: |
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हा भ्रमर त्या फ़ुलांवर सारखा घोंगवतो आहे . अरे भमरा , गजाला राग येईल हे बर न्हवं .
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गजा, लेका ह पहिलाच bb असेल जिथे काही न लिहिता पण अभिप्राय नोंदले जातायत
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Moodi
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| Monday, February 06, 2006 - 10:09 am: |
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मधुकर वन वन फिरत करी गुंजारवाला. अरे गजानना आतातरी खरड काहीतरी नाहीतर आम्ही सगळे गजालीकर इथे येऊन गजाली करु संमिश्र मराठी अन कोंकणीत. मिलिंद...
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भ्रमरा, LOL एक दोन दिवसात टाकतो पोस्ट. मूडी, ऑलवेज वेलखम!
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हे काय गजा, अजुन रिकामेच कसे.. लवकर... तुझ्या पोस्टाचि सगळे आतुरतेने वाट बघत आहेत.. बेस्ट ओफ़ लक..
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Nandita
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| Tuesday, February 07, 2006 - 6:11 am: |
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jaIDI AiBanaMdna naivana jaagaoba_la lavakr furnish k$na Tak 
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गजा फ' चे ऐकल्याबद्द्ल शाबासकी...
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सुरुवात तर छान झाली! अजुन येऊद्यात! 
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Gurudasb
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| Tuesday, February 07, 2006 - 1:30 pm: |
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गजा , बघ कसं ते . त्या घुरुजीनी भिंती रंगवायला शिकवले त्याचा आता उशिरा का होईना फ़ायदाच झाला. किती दिवस ही रंगीबेरंगीची भिंत रीकामी होती. आज ती उजळून निघाली. आणि प्रारंभ उत्तम केलास. गजाननाला व देवी शारदेला वंदन करून , तसेच ज्या शाळेत अक्षरे गिरवायला सुरुवात केलीस ती आठवण . पुढच्या लिखाणाला सुयश चिंतितो . गुरुकाका .
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Lalitas
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| Tuesday, February 07, 2006 - 4:21 pm: |
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तुझी शाळा नजरेसमोर उभी राहीली... तुझी वर्णन करायची शैली उत्तम आहे, त्या काळात घेऊन गेलास. अजून येऊ दे......
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वा सहीच GD मस्तच लिहितोयस. अजून टाक लवकर पुढचे
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व्वा, गजाभाऊ! हुंद्या दणक्यात!
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Champak
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| Wednesday, February 08, 2006 - 2:29 pm: |
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गणपती चल्ले गावाला चैन पडेना जिवाला गजाभावु, लै मस्त रे भो!
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Bee
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| Wednesday, February 08, 2006 - 4:55 pm: |
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Gajanan, sundar lihiles re.. ajun yeu de.. gaawaache naaw kaay paN?
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Yogi050181
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| Thursday, February 09, 2006 - 12:34 pm: |
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गजा पहिल शाळेच लिहीलेले पाहुन बर वाटले. शेवटि तिच तर आपलि पहलि पायरी...
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गजा, या शाळेत कीती वर्ष होतास?? पहीली पायरी सोडायची की नाही? नाही पुढच लिहायला बराच वेळ घेतोयस म्हणून विचारतोय घरच net पण चालू झाल ना आता!
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Kitkat
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| Wednesday, March 01, 2006 - 1:44 pm: |
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गजाभाऊ, छानच जमलय लिखाण! वाचत रहावेसे वाटतय! अजून येऊद्या.... 
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मंडळी thank you! मिलिंदा, कसली वर्षे? इच्छा असूनही कुणी एका वर्गात एका वर्षाच्या वर बसू दिले नाही. :-)
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Moodi
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| Wednesday, March 01, 2006 - 2:44 pm: |
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गजानन अजुन येऊ दे, सकाळी राहूलच्या मुळे पोट दुखले अन आता तू मुरकुंडी वळवलीस. बापरे मजा आली वाचुन मी पण आमच्या शाळेत स्काऊटमध्ये होते, आमच्या बाई काही वेळेस मुलींना एखादी गोष्ट नाही जमली की अगदी टोमणे मरुन अन दात ओठ खाऊन बोलायच्या. मग एकदा आमची सहल नेली निफाडच्या साखर कारखान्यात. स्काऊटमध्ये फक्त मुलीच होत्या, मुले समाजसेवेकडे वळली होती. मग काय वर्गातील मुलीच्या नातेवाईकांच्याच शेतावर अन घरी जाऊन कल्ला केला, काहीनी तर न विचारता पेरू अन फुले तोडली अन मग बाई जाम खवळल्या. मजा आली त्या वेळी..  
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Anilbhai
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| Wednesday, March 01, 2006 - 3:43 pm: |
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गजा छान लिहीलस रे. मजा आली 
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चोखंदळ ग्राहक |
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महाराष्ट्र धर्म वाढवावा |
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व्यक्तिपासून वल्लीपर्यंत |
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पांढर्यावरचे काळे |
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गावातल्या गावात |
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तंत्रलेल्या मंत्रबनात |
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आरोह अवरोह |
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शुभंकरोती कल्याणम् |
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विखुरलेले मोती |
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हितगुज गणेशोत्सव २००६ |
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