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Peshawa
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| Wednesday, January 25, 2006 - 11:40 pm: |
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रुढी वाइट किंवा चांगल्या नसतात फ़क्त त्या applicable किन्व unapplicable असतात... म्हणुन शिकवायला निरख़्शिर विवेक लागतो असे मला वाटते... ( काय निर काय ख़्शिर हा perception चा भाग झाला ) जसे स्टो म्हणाली डोळे उघडे ठेवायला शिकवणे हाच उत्तम उपाय... असो जरा discussion भरकटले...
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Meggi
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| Saturday, January 28, 2006 - 8:43 am: |
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सावनी, नवर्याल किंवा सासू-सासर्यांना प्रत्येक गोष्ट विचारण्या पेक्षा सांगुन करत जा... मी ४ दिवस माहेरी जाउ का? ऐवजि.. मला घरच्यांचि आठवन येतेय.. मि ४ दिवस माहेरी जाऊन येते... असं म्हनायला शिक. प्रत्येक गोष्टी साठी permission घेण्याचि गरज नसते. आधी हि सवय तु स्वतः ला लाऊन घे म्हणजे इतरांना पन सवय होइल तुझ्या वागण्याची... घरच्यांचि permission न घेता decision घेण्यात तुला जर अपराधी पणाचि भावना येत असेल, तर ती आधि काढुन टाक. स्वतः decision घेण्यात काहीही वावगं नाही.
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Meghdhara
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| Saturday, January 28, 2006 - 2:43 pm: |
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हे पहा. मुलाला सांभाळायला ठेवलेली बाई या विषयावरची ही मेल नुकतीच आली. आई वडिलांनी ते घरात नसताना कॅमेरा लावला होता. http://www.neethu.com/abbasiya मेघा
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Sayonara
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| Sunday, January 29, 2006 - 1:41 am: |
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baaproÊ f> dÜnaca saokMd laavalaa varcaa ivhiDAÜ. pNa puZo phavalaaca naahI Aijabaat.
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Maudee
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| Tuesday, March 07, 2006 - 11:02 am: |
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ha vedio bahutek aata kadhun takla aahe..... koni sanglel ka yaat nakki kay hote ki sayonarala to baghun lagech band karawasa watla? Mi ha prashna yasathi wichrte aahe ki mulana sambhalnari bai thevtana ya goshti wicharat gheta yetil.
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मायबोली |
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चोखंदळ ग्राहक |
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महाराष्ट्र धर्म वाढवावा |
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व्यक्तिपासून वल्लीपर्यंत |
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पांढर्यावरचे काळे |
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गावातल्या गावात |
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तंत्रलेल्या मंत्रबनात |
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आरोह अवरोह |
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शुभंकरोती कल्याणम् |
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विखुरलेले मोती |
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