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शोभ गुर्टुंनी गायलेले हे गीत बहुदा) वन्दना विटणकर यान्चे आहे. गीत आणि सन्गीत दोन्ही सुन्दर. माझे मला कळेना का सुर हा जुळेना र्हुदयात दाटलेली हुरहूर साहवेना गुलजार पापण्यांनी विणल्या अधीर ताना धुन्दावल्या स्वरान्चा फुलला मनी तराणा त्या लाजर्या नशेचा का कैफ हा सरेना माझे मला??... हाकारिते मनाला ती स्वप्न धुन्द रात चुम्बुनी बिम्ब तेथे घे ई मिठीत नाते ढळली निशा कधी का तो सोहळा मिटेना माझे मला कळे ना का सूर हा जुळेना देहावरी सुखाच्या झरति अनन्त झारा मनमोर नाचतो हा फुलवून टक पिसारा ह्या भरजरि नशेचा का अर्थ सापडेना मझे मला कळेना का सूर हा जुळेना??.. बापू.
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मायबोली |
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हितगुज दिवाळी अंक २००८ |
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