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Princess
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| Thursday, September 06, 2007 - 4:57 am: |
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वाह आयटी, अगदी सुंदर लिहिलाय वृत्तांत. मजा आली वाचुन. मी पण मिसले ग बाई. त्या अद्वैतला मुळीच वेळ नसायचा. एका कंपनीत असुनही कधीच भेटला नाही. मेसेंजर वर भेटला तेच आमचे नशीब. अय्या रविशा, तु कधी बंगलोरला गेली नाहीस का? अग खरच भरतातल्या सगळ्या शहरातले रिक्षावाले देव आहेत इथल्या रिक्षावाल्यापुढे. पण बंगलोरचे हवामान... अहाहा... शब्दा पलिकडले. फक्त त्या एका कारणासाठी i love bengalooru
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Princess
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| Thursday, September 06, 2007 - 4:59 am: |
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अजुन एक म्हणजे तुझे कौतुक करावे तेव्हढे थोडे. कमी भांडी असुनही एवढा साग्रसंगीत स्वयंपाक म्हण्जे कौतुकास्पदच ग पोरी. असेच एक जीटीजी पुन्हा कर मी भारतत आल्यावर
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Zakasrao
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| Thursday, September 06, 2007 - 5:27 am: |
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अरे वा छान लिहिला वृतांत. ते दोघे कोण होते घर लवकर न सापडलेले?? ते खरच खुप हुशार म्हणले पाहिजेत. कारण त्यानी NJ चा GTG चा वृतांत वाचुन शिकुन घेतल की लवकर पोहोचलो की काम लागेल पुण्याच्या पुढे बंगलोर उणे अशी एक नवी म्हण करावीच.
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Lampan
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| Thursday, September 06, 2007 - 10:41 am: |
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आयटी चांगलं लिहिलं आहेस .. पण मी भांडी धुतली ते तु लिहिलं नाहीस :X का का का ???
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Itgirl
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| Thursday, September 06, 2007 - 11:21 am: |
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अरे, मी म्हटले की तू वृत्तांत लिहिशील त्यात ते ठळक अक्षरात नोंदवशीलच!! तर लोक हो, अद्वैत, अमोल आणि देवबाप्पाने भांडी घासली तरी पण नंतर राहिलीच होती ३ - ४ सिंकमधे!! अद्वैत, तुला पेशल थॅंक यू जास्त भांडी घासल्याबद्दल
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Itgirl
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| Thursday, September 06, 2007 - 1:58 pm: |
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अथक, आर्च, एकट्या, कृ, चेतना, माणूस, मृ, रविशा, राजसी, मयुरेश, अरुण, राजकन्ये, झकास सार्यांना धन्यवाद झकास, म्हण मस्तच
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Rajasee
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| Thursday, September 06, 2007 - 2:55 pm: |
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hi arun, olakh aahe barr!!! kashi visaren??? (sakali sakali punyachya bb var yeoon abhangvani(? mhanje kaay te devaas thavook) mhanoon majhee zop bhang karayachas te???!!!)
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Runi
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| Thursday, September 06, 2007 - 5:22 pm: |
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अरे वा वा सगळीकडे GTG करत आहेत मायबोलीकर. पुणे, बंगलुरु, बागराज्य, बे एरिया. छान हं आयटी. आणि टेबल खुर्च्या नाहीत, जागा नाही या क्षुल्लक गोष्टीचे काही वाटुन घेवु नकोस, दिल मे जगह होनी चाहिए और कुछ नही.
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Vinaydesai
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| Thursday, September 06, 2007 - 8:13 pm: |
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DC मध्ये असूनही 4 Aug ला DC मध्ये झालेल्या GTG ला येऊ शकली नाहीस? कठिण आहे... 
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Arun
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| Friday, September 07, 2007 - 5:29 am: |
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राजसी : तुला अजून आठवतायत का ते अभंग ???????? मी तर केंव्हाच विसरलो होतो .............
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Gobu
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| Friday, September 07, 2007 - 11:12 am: |
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आय टी, जबरदस्त potential आहे तुझ्या लिखाणात! Give justice to ur potential, write more!! 
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Itgirl
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| Friday, September 07, 2007 - 1:52 pm: |
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धन्यवाद गोबू .. ..
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Dineshvs
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| Saturday, September 08, 2007 - 10:07 am: |
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शैलजा, मेनु सारखाच साधासा पण रुचकर वृत्तांत. लिहिण्यातली सहजता आवडली. आता सातत्याने लिहित रहा.
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Itgirl
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| Sunday, September 09, 2007 - 10:07 am: |
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दिनेशदा, खूप खूप आनंद झाला तुमची प्रतिक्रिया वाचून धन्यवाद
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