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Ruthi
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| Friday, August 18, 2006 - 4:12 am: |
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namaskar...... chala, bara zala, paus kami zala. mi ale hote miraj la. pani kharch changale navate .... pan apan miraj karana ata savay zali ahe ya saglyachi... :-)
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Ruthi
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| Friday, August 25, 2006 - 11:01 am: |
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अरेच्चा....... ! ईथे या BB वर कोणीच कस काय लिहीत नाहीत?
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Sdatar
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| Sunday, August 27, 2006 - 2:42 am: |
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hello thanks for update.... jara jastich h busy chalu aahe sagle mhanun vel zala nahi..
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Satul
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| Saturday, September 09, 2006 - 7:07 am: |
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hI ALL Ek News dyachi ahe tuma saravan MIRAJET CHIKAN GUNIYACHI KHUP SATH ALI AHE JO KONI MIRAJELA JANAR AHE ATHVA MIRAJE JAYCHE RELATIVE AHET TYNI KALAJI GHENE AVASHYAK AHE CHIKAN GUNIYA BRAHMANPURIT PAN KHUP LOKANA ZALA AHE ' KALACH MAZE AIE BABA PUNAY ALE TYNI SANGITALE
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मी मिरजेत पाच वर्शे होतो, मिरज सोडून ही दहा वर्शे झाली. पण मिरजेच्या काही भन्नाट आठवणी अजुन आहेत. नरसोबावाडीला चालत जाणे, हरिपूर ला चाल्त जाणे, स्वातन्त्र्य दिनी जिलेबीवर ताव मारणे. उरुसात आणी अम्बाबाई महोत्सवात अप्रतीम शास्त्रिय सन्गीत. वहिनीचा वडा( अजून आहे का?) मोहोरम ल गुलाबी सरबत वाटत जाणर्या गाड्या, आणी मिरजेचा मटका! तसा मटका सगळीकडेच असायचा पण मिरजेत तो इतका उघड चालायचा आणी त्या अड्ड्यन्वर मानवी स्वभावचे इतके नमुने पहायला मिळाले की एखादि कादम्बरी सहज लिहिता येइल. एकदा मटका घेणार्या बूकीनी कमिशन वाढीसाठी चक्क मटका किन्ग च्या घरावर मोर्चा काढला होता! "माधव" नावचे एक एकमेवाद्वितिय सिनेमा थिएटर माझ्या घराशेजारी होते. तेथे सिनेमा ज्यानी पाहिला त्याना नरकातही फारसा त्रास होणार नाही.
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Satul
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| Monday, October 02, 2006 - 6:02 am: |
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mataka khelun pahelela distoy Vijay mataky vishi agadi bharbharun lihilay ani mirjet ajunahi mataka kelala jato paravach mirajela gelo ty vele hich charch hote mirajet ambaibai che navaratra utsav jorat suru ahe mala maza gharachankadun samajale baki mirajet ajunahi chikan guniyachi satth ahech
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Sdatar
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| Tuesday, October 17, 2006 - 1:29 am: |
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kuthe ahat sagle? ekdum busy ka?/ kase kaay chalu ahe? kahi khabar
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विजय, अगदी खरे बोललास बघ. मटका हा मिरजेच्या आयुष्यातील एक एकमेवाद्वितीय अनुभव आहे. ह्या मटक्यामधे काही लोक बरोबर आकडा सांगणारे म्हणुन फेमस असतात. अश्या लोकांच्या आजु-बाजुला सकाळी एक विचित्र गर्दी असते. बुद्धीबळाच्या पटावर घोडा जसा आडवा-तिडवा चालतो तसे एका मटक्याच्या चार्टवर ही लोके आपली बोटे चालवुन आज कुठला आकडा लागणार याचा अंदाज सांगतात. फुल टाइमपास असतो. वहिनीचा वडा अजुनही आहे. मी मिरजेला गेलो कि तिथे वडा-चहा-सिगरेट मारायला नक्कि जातो नेहमी.
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नमस्कार मिरजकर्स, १३-१४ वर्षापूर्वी मिरजच्या कोणत्यातरी महाविद्यालयात "तुला वेळ मिळाला तर आपण दोघांनी प्रेम करायचं" हि कविता खूपच फेमस झाली होती. तुमच्या कोणाकडे ती आहे का? असल्यास इथे टाकू शकाल का? धन्यवाद, विजय
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महेश मुतलिक याना स रे ग म प मधे महागायक करुया... sms to 57575...MAH 01 or lig on www.zeemarathi.com
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हितगुज दिवाळी अंक २००७
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मायबोली |
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चोखंदळ ग्राहक |
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महाराष्ट्र धर्म वाढवावा |
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व्यक्तिपासून वल्लीपर्यंत |
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पांढर्यावरचे काळे |
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गावातल्या गावात |
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तंत्रलेल्या मंत्रबनात |
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आरोह अवरोह |
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शुभंकरोती कल्याणम् |
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विखुरलेले मोती |
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हितगुज दिवाळी अंक २००६ |
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