Pama
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| Friday, January 06, 2006 - 2:34 pm: |
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तुझ्याच मनाच तू ऐक तरी एकदा, त्यालाही नाही येणार माझ्याविना जगता.
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Pama
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| Friday, January 06, 2006 - 2:35 pm: |
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बाय वैभव.. भेटू नंतर, करावाच म्हणते आता अभ्यास.
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Mani_mau1
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| Friday, January 06, 2006 - 6:40 pm: |
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मी वाचलेल्या कविता पोस्ट करत आहे 
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Mani_mau1
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| Friday, January 06, 2006 - 6:42 pm: |
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अजुन एक वाचलेली कविता.कवितेचे नाव आहे ज़ावयाची प्रतिज्ञा 
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Mani_mau , ' गुलमोहर ' हा विभाग फक्त स्वरचित साहित्यासाठी आहे. इतरांच्या कविता आपण Culture विभागात योग्य त्या BB वर पोस्ट कराVयात ही विनंती. उदाहरणार्थ हा BB पहा. /hitguj/messages/34/1607.html?1122285291
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Sarang23
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| Friday, January 06, 2006 - 10:58 pm: |
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आज एक नविन विषय घेवुन चारोळ्या करा... विषय आहे... अबोला किंवा... चांदणी... किंवा यापेक्षा वेगळा विषय सुचत असल्यास सांगा...
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Kshipra
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| Saturday, January 07, 2006 - 12:10 am: |
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हटेल मिटले ओठ तुझे मुजोर आठी भाळावर लटका रुसवा सोड सख्या बोल पडू दे कानावर केली सुरुवात....
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Paragkan
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| Saturday, January 07, 2006 - 12:36 am: |
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करावंच का धाडस यानंतर काही लिहायचं? :-) सावरलिस जी, सोड पुन्हा ती बट हलक्याने गालावर शब्द जुळू दे, सूर मिळू दे येईल गीतच ओठांवर
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Kshipra
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| Saturday, January 07, 2006 - 12:44 am: |
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शिशिरामधुनी वाहून नेईल पराग आपुली प्रीत कणाकणातून झरेल तेव्हा तुझे नि माझे गीत
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Shyamli
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| Saturday, January 07, 2006 - 1:29 am: |
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इकडुन तीकडुन येते गाणे माझे मात्र अबोल तराणे शब्दासाठी झुरझुर झुरणे माझ्यासाठि नि:शब्द गाणे
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Sarang23
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| Saturday, January 07, 2006 - 1:41 am: |
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क्या बात है क्षिप्रा, पी के, आणि श्यामली... मला म्हणा रे धाडसी... लालबुंद त्या गालांवरती मध्येच नाजुक गोड खळी सोड सखे हा रुसवा लटका उघड जराशी नेत्रपाकळी
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Sarang23
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| Saturday, January 07, 2006 - 2:34 am: |
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सायंकालीन, तुझ येण उशीर करुन माफी मागण हलके हलके मंजुळ गाण तुलाच जमत अस वागण
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Sarang23
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| Saturday, January 07, 2006 - 2:39 am: |
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बहरुन गेल्या फुले नी वेली तुझे नी माझे गीत जसे ठेव अबोला क्षणैक कारण प्रेमाची ही रित असे!
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Sarang23
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| Saturday, January 07, 2006 - 2:54 am: |
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आरक्त लाल चेहरा आणि डोळे जमिनीला भीडलेले तुला आठवत बसण्याचे खुळ मला जडलेले
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Sarang23
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| Saturday, January 07, 2006 - 3:04 am: |
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अशी येतस 'बोल' म्हणतेस सुचेपर्यंत 'निघते' म्हणतेस
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Shyamli
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| Saturday, January 07, 2006 - 3:18 am: |
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बोलायच म्हणुन ठरवत असते समोर आलास कि विसरुन जाते तुझ्या डोळ्यात बघता बघता निघायचि माझी वेळच होते
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Daizy
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| Saturday, January 07, 2006 - 6:01 am: |
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तुझे माझ्याकडे ते रोखुन पाहणे, तुझ्या बघण्यातले ते झुरणे, ....तुझे ते नुसतेच झुरणे, शब्दाविना ते ह्द्दयास भिडणे... सगळ्याना माझा नमस्कार... नविन आहे चु.भु.दे.घे. असेच कहितरी म्हणतात ना ?
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Shyamli
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| Saturday, January 07, 2006 - 9:59 am: |
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आज का नि:शब्द सारे कुठे(गेलि) झुळुक नि कुठे(गेले)वारे विशय आजचा अबोला रे नका बसु गप्प चला लिहा रे
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Meghdhara
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| Saturday, January 07, 2006 - 10:02 am: |
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आकाशाचा अबोला त्याला फितुर चांदणी माझी रात आसावली गात मळभाची गाणी मेघा
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Meghdhara
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| Saturday, January 07, 2006 - 10:12 am: |
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देत चांदणगारवा तुझा स्पर्ष मखमली नको अबोल्याची भाषा आतुरली रातराणी मेघा
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सारन्ग, तुझी फ़र्माईश म्हणून केवळ. शिरशिरती सर रेन्गाळली झिरझिरती ऊन्हे गन्धाळली अबोल तुझी स्पन्दने आसावली भिरभिरत्या नजरे आकण्ठली. बापू करन्दिकर
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Shyamli
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| Saturday, January 07, 2006 - 10:33 am: |
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रातराणी चन्द्र चान्दणि न्हाई का ईथ कुनि तुज्या माज्यावानी
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Shyamli
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| Saturday, January 07, 2006 - 10:39 am: |
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रेन्गाळलेल्या सरीला म्रुदगन्धाचा ऊबारा पुरे झाला राग सगळे सोडा हा अबोला
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Chinnu
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| Saturday, January 07, 2006 - 3:09 pm: |
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क्षणात रुसणे, पुन्हा हासणे सुखदु : खाचे गीत डोळे माझी बोलती सखया अबोल माझी प्रीत! सारंग फ़ार छान आहेत चारोळ्या! हे पान खुपच वाचनीय झालय. सर्वांच्या चारोळ्या सुंदर आहेत!
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श्यामली, चिन्नू, छान चारोळ्या. पण आता अबोला सोडू या का? बापू
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Shyamli
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| Saturday, January 07, 2006 - 11:54 pm: |
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खरच बापु अबोला सोडावाच आता उगाचच सगळे फुगुन बसलेत बघा
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Shyamli
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| Sunday, January 08, 2006 - 4:38 am: |
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का आज असा हा गुलमोहर सुकला कुणि न ईथे आज का वाट चुकला
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एक वेडी सायंकाळ अबोल्या ने संपलेली चांदनी रात्र सारी आसवांत चिम्ब भिजलेली
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Shyamli
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| Sunday, January 08, 2006 - 9:32 am: |
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भिजलेल्या चान्दण्याला रातराणिचा सुगन्ध चन्द्र आणि चान्दणे आप आपल्यात दन्ग श्यामलि
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श्यमली, निलय, वा. सुन्दर. बापू.
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Jo_s
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| Monday, January 09, 2006 - 12:55 am: |
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नयनांनीच सांग सखे का धरला अबोला चेहरा तुझा तुलाच फसवे लटका रुसवा जरी केला
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Devdattag
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| Monday, January 09, 2006 - 3:00 am: |
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वर शुक्राची चांदणी शुभ्र चांदणे तळ्यात त्यांच्या अबोल्याचा गंध वसतो रातराणीच्या कळ्यांत
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Devdattag
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| Monday, January 09, 2006 - 3:04 am: |
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रातराणीच्या गंधाने ऐसे जाळीले जीवाला मग पौर्णिमेचा चंद्र हलके तळ्यात निवाला
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Jaaaswand
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| Monday, January 09, 2006 - 3:37 am: |
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जळलोदेखील आम्ही असे कि भय नव्हत ओल्याचं संपायचे जरी ठरवले तरी मरण येईल कोळ्याच जास्वन्द...
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Megh
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| Monday, January 09, 2006 - 4:33 am: |
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Nishabd chandnyat sur lagale saptaki shwas mand dhund geet kesh mokale zelati aabhal ase vakun khsitijas bhetale dole mitata samrpani oth alagad tekale...
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