Yog
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| Thursday, December 08, 2005 - 2:11 pm: |
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छान लिहीलय, पण हृदयावर टाटू, फ़ारच प्रोग्रेसिव झाल्या तर typical मराठी मुली.. चान्गल आहे! 
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Seema_
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| Thursday, December 08, 2005 - 2:41 pm: |
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college मध्ये असताना हे अस र्हुदयाची धडधड वाढवणार रोमांचक वाचायला फ़ार मजा यायची. गुदगुल्या वैगरे पण व्हायच्या. सुरुवातीचा बहर ओसरल्यावर मात्र मित्रत्वाच्या खुणा जागोजागी सांभाळुन ठेवल्या जातात. वय बदलल आणि सन्दर्भ बदलले तरी.
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Manuswini
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| Thursday, December 08, 2005 - 5:54 pm: |
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कथा छान होती पण हे काय काहेच रहस्य नाही सुरवात खुप छान होती मराठी मुली modern झाल्या टाटू केला म्हणुन काय बुरसट विचार आहे मराठी पुरुषाचा
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Pardesi
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| Thursday, December 08, 2005 - 7:33 pm: |
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ट्युलिप, छानच ग. माझ्यासह अनेकजणीन्चा स्वतह्चा पुर्वीचा अनुभव जागा केलास. या पेक्शा मोठ certificate काय देऊ?
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Bhagya
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| Thursday, December 08, 2005 - 9:03 pm: |
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ट्यु, खरच छान. आणि लग्नाआधीचा नवरा आणि लग्नानंतरचा नवरा यात खरंच फ़रक असतो... याबद्दल मला माझ्या एका मैत्रिणिने सांगितलेल्या गोष्टी आठवल्या... लग्नाआधी नवरा पेपर वाचायला फ़ारसा उत्सुक नसतो.. लग्नानंतर पहिल्या वर्षी दूध, भाजी या गोष्टींसारखेच एक म्हणून पेपर लावतो. दुसर्या वर्षी सोफ़ा, टेबल यासारखीच एक वस्तु समजून बायकोकडे दुर्लक्ष करत पेपर वाचतो. तिसर्या वर्षी ही वस्तू' पेपर उचलून पण ठेवेल हे गृहित धरतो. आणि बायको? लग्नाआधी नवर्याला आवडतील ते पदार्थ शिकते... पहिल्या वर्षी नवरा जेवायला बसला की वाढायला उभी रहाते. दुसर्या वर्षी नवर्याबरोबर जेवायला बसते. तिसर्या वर्षी आपण जेवून अहो अन्न ठेवलंय टेबलावर, जेवून घ्या' असं सांगते.
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Amitpen
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| Thursday, December 08, 2005 - 9:32 pm: |
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आणि चौथ्यावर्षी बायको जेवायचं असेल तर स्वत: बनवा' असं म्हणते का??... पण ट्युलिप, सुंदर कथा....सगळं कसं गोड गोड.... टॅटूची concept आवडली...
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Kandapohe
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| Thursday, December 08, 2005 - 9:59 pm: |
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शुक्राची चांदणी, पारीजातक, कृष्णकमळ अगदी निनावी म्हणते तशी गद्यात कविता लिहीली आहेस. सुंदर चित्रण!! अनेक लोकांच्या अनेक आठवणी जागवल्यास. (स्वतः आणि इतरांच्या) लग्नाच्या बरका!! मला सुरूवात वाचुन, खरे तर श्रीश चे वागणे वाचुन काहीतरी वेगळे असेल असे वाटले होते. इतर लोकांप्रमाणे कल्पनेच्या भरार्या पण मारल्या. पण पहीली आठवण कुसुम अभ्यंकर यांच्या ` लाल बंगलीची ` आली होती. एक मात्र आहे तो एवढा मोठा बंगला नसता तर छान हॉटेल मधे रूम नसती का बूक करता आली श्रीशचा Loosers मित्रांना? रूम सजवण्यात पण वेळ नसता गेला!! आणि हॉल मधील प्रणय रंगवायचे तुझे टेंशन पण कमी झाले असते!!
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Bhagya
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| Thursday, December 08, 2005 - 9:59 pm: |
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अमित, शक्य आहे बाबा.....
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Tulip
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| Friday, December 09, 2005 - 1:28 am: |
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कथा वाचणार्या आणि त्यावर प्रतिक्रिया लिहिणार्या सर्वांना मनापासून धन्यवाद. खरच साधी सोपी प्रेमकथा लिहिण आणि प्रेमळ संवाद लिहिण हे प्रेम करण्यापेक्षा जास्त कठीण असत हे ह्या निमित्ताने मला समजल हेही नसे थोडके. तसा काही प्लॅन नसतानही कथेत रहस्य आहे काही असा भास वाचकांना व्हावा हे काही बरोबर नाही कथालेखनाच्या दष्टीने :-P . मूड्डी अग tatoo काढून घेताना भले तिनेही romantic चित्र रंगवली पण मधे भांडण आलं तर काय करणार. DJ तुझ्या सूचना जरा उशीरा हातात पडल्या असो.. पण लिहिताना अस वाटलं की फ़ारच पसरट होत चाललय, किती लिहयच ते, मग विस्तारभयास्तव शेवटच्या प्रसंगांना कात्री लागली. पुन्हा एकदा सर्वांना thanks . p.s. Milndaa : Orange चा हा संदर्भ दिला आहेस तर कॉपिलाईन बदलते जरा ... Love is Orange : Stay Connected
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Maitreyee
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| Friday, December 09, 2005 - 2:34 am: |
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ट्यु, मस्त ग,क्यूट! पण प्रतिक्रिया पाहून वाटले की ते एवढे गुलाब पाकळ्या, निशिगन्ध वगैरे तयारी केल्यामुळे कथे च्या end बद्दल पब्लिक च्या अपेक्षा फ़ार वाढल्या वाटते ;-)
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Rajkumar
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| Friday, December 09, 2005 - 2:57 am: |
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ट्यु,छान आहे कथा. चांगली रंगवलियेस. 
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फ़ारच प्रोग्रेसिव्ह झाल्या तर typical मराठी मुली. ह्रदयावर tattoo काढून घेणे फ़ार प्रोग्रेसिव्ह वाटते म्हणजे अजुनही अगदी 'typical' च आहेत तर मुल! ~D
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Maitreyee
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| Friday, December 09, 2005 - 9:35 am: |
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असं का बर म्हणतेस DJ , त्याच्या कथेतल्या नायिका पण भरपूर progressive(?!) असतात की! आठवतेय का 
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Tulip
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| Friday, December 09, 2005 - 10:57 am: |
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त्या नायिकांच्या त्या ' उघड्या दंडांवर' काढले असते टॅटू तर ते प्रोग्रेसिव्ह ठरल असत की नसत
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शिरिष कणेकरांच्या भाषेत सांगायचं तर... पहिल्या अंकात भिंतीवर टांगलेली बंदूक दाखवली, की तिसर्या अंकात त्याने कुणाचा तरी मुडदा पडायलाच हवा.. किंवा हिरॉईन घागरी भरभरून गरम पाणी आणते, ते काय तिच्या बापाला दाढी करण्यासाठी? 
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Tulip
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| Friday, December 09, 2005 - 11:48 am: |
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? ? .. .. .. ..
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Manuswini
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| Friday, December 09, 2005 - 1:11 pm: |
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मी ही तेच म्हणत होते मुली progressive झाल्या तरि मराठी पुरुष हे असेच बुरसट आणि फक्त कथे पुरते प्रोग्रेस्सिव
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Neelu_n
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| Friday, December 09, 2005 - 1:35 pm: |
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ट्युलिप, तुझ्या कथेने v&C साठी नविन विषय दिला आहे..... टॅटू काढणे किती प्रोग्रेसिव???? 
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Paragkan
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| Friday, December 09, 2005 - 3:18 pm: |
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LOL vinay 
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Ninavi
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| Friday, December 09, 2005 - 3:33 pm: |
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अरे, त्या टॅटूचा किती कीस काढाल! गोष्ट राहिली बाजूलाच!
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Atul
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| Friday, December 09, 2005 - 4:12 pm: |
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मला शेवट पर्यन्त तो' जुळा भाऊ असणार असच वाटत होतं. . गोष्ट छानच लिहिली आहे...
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Wah....tulip, gelya 4 warshyancha period dolya samorun gela maazya.....kahi swanubhav jaage zaale parat...!! saglya sweet memories....!!! Ani kahi diwasaan purvi saasu baainna asach chidavta chidaavta mhantlela dailog aathavla... ki " Mulinna lagna nantar hi navra nakoch asto kadhi...mitrach hava asto nehmi.... aani mulanna maitrin nako asate lagna nantar....baayko havi assate mhanun " 
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Sashal
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| Friday, December 09, 2005 - 6:48 pm: |
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Tulip छान रंगवली आहेस कथा .. मजा आली वाचायला .. आणि कथेची नविन punchline सुध्दा आवडली ..
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ट्यू... मंतरलेल्या दिवसांची उजळणी झाली... अगदी Romantic विनयजी कणेकरी झकास... progressive बद्दल संझगिरींच्या शब्दात सांगायचे झाले तर " हे म्हणजे अलका कुबलला Baywatch मधे Role देण्यासारखे झाले " नीलू... अपेक्षाभंग नाही झाला, k मालिका न पाहण्याचा फ़ायदा...
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Meggi
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| Saturday, December 10, 2005 - 11:15 pm: |
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Tulip, mastca...sagaL\yaa AazvaNaI jaagyaa Jaalyaat. ekdma cute..
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Jit
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| Sunday, December 11, 2005 - 12:18 pm: |
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well tulip, nice story. pan kharach shewat jara urakalasach.
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Tanya
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| Monday, December 12, 2005 - 10:15 am: |
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Tulip ... मस्तच! त्यात, केशरी संध्याकाळची जादू.... खरच! मस्त ओघवती कथा लिहिली आहेस.
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टुलिप एकदम खल्ल्लास!!! आणि " केशरी ठिपका " सहीच...
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Prajaktad
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| Thursday, December 15, 2005 - 3:07 pm: |
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ट्युलिप!एकदम सहिच लिहलयस ग!
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Parijat30
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| Wednesday, December 21, 2005 - 7:02 pm: |
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ट्युलिप छान आहे ग केशरी संध्याकाळ.
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Birbal
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| Tuesday, December 27, 2005 - 1:53 am: |
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फारच सुन्दर कथा. अप्रतिम. नवविवाहितान्ची मनस्थिती फारच छान वर्णन केली आहे............ अतिशय आवडली....
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Daizy
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| Saturday, December 31, 2005 - 6:05 am: |
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ट्युलीप... सगले कसे छान छान वटाले... लग्नाआधी खुप खुप कल्पना असतात.... नतर कलते की आपनही सामान्न ज़ाले आहोत... तरीहि लग्ना नतर मित्रत्वाची कल्पना छानच आहे..
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