Princess
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| Friday, January 19, 2007 - 2:07 am: |
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तु वा म्हण मला मी अहा म्हणेन तुला, दोघी मिळुन काहीही लिहु, झुळुकेचा हा बीबी आपण वाहता ठेवु... छत्री अन टोपी उन्हापासुन करतात संरक्षण आपण उन्हा पासुन काळजी घेत असण्याचे आहे ते लक्शण
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ते म्हणतात हिंदी पिक्चर बघताना डोके बाजुला ठेवावे, मायबोलीवरच्या झुळुका वाचताना याचे काय बरे करावे? >>>>>. , khatranaak poonam,....
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Meenu
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| Friday, January 19, 2007 - 2:10 am: |
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princess , ती म्हणाली मला घे कागद अन वही मी म्हणलं कशाला झुळुकच आपली रफ वही .. या रे या सारे या काही पण लिहु या यमक जुळवुया झाली झाली कविता म्हणुन नाचुया
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Meenu
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| Friday, January 19, 2007 - 2:13 am: |
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नीष्टेने >>> नीष्टेनेच वाढे नीष्टा यमक जुळायला घे प्रतिष्टा सगळे प्रश्न प्रतिष्टेचे करु झुळुकेवरुन पाणी भरु
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Princess
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| Friday, January 19, 2007 - 2:15 am: |
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मीनु टोपी पेक्षा छत्रीच बरी, उन आणि पावसात तीच खरी, पाउस आला जोरात तर जावे लागणार नाही तिच्या घरात... धन्यवाद लोपा
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Meenu
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| Friday, January 19, 2007 - 2:19 am: |
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princess तिच्या घरात तिची आई वाट पहात आसेल बाई छत्री आधीच नेली तर ती काय म्हणेल ..? असली कसली पोरं आजची बनेल ..
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Krishnag
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| Friday, January 19, 2007 - 2:26 am: |
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वाह!! मिनू वाह!!! अगदी गहन अर्थपूर्ण!!!! काल पावसात भिजलो सर्दी त्याने झाली तिच्या भावाने तपकिरी ऐवजी मिरपूड हुंगायला दिली
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Meenu
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| Friday, January 19, 2007 - 2:31 am: |
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कृ .. ये ना घरात ती म्हणाली घेउन हातात परात मी म्हणलो वरात रस्त्यानी चाल्लीये ती म्हणाली उरात धडकी भरलीये तार आणि पत्र माणसांना दोन पात्र ..
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Smi_dod
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| Friday, January 19, 2007 - 2:36 am: |
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मीरपुड ती हुंगुन पाणी डोळ्या आले तरीही धन्यवाद दिले नाकातुन नाही पण डोळ्यातुन तर आले रागवली असती ती जर बोललो असतो मी काही कारण नाक जरी माझे होते तरी भाउ तीचा होता
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Psg
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| Friday, January 19, 2007 - 2:38 am: |
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मीनु पण आता थोडा स्वल्पविराम घ्या, बहुदा message पोचला असावा इच्छित ठिकाणी नाहीच पोचला, तर फ़िरसे हो जाईये शुरु!
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Milya
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| Friday, January 19, 2007 - 2:39 am: |
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स्मि, क्रिश, प्रिन्सेश : मिनू सुटली आहेस अगदी आज'काल' 
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तार आणि पत्र माणसांना दोन पात्र .. ...
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Princess
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| Friday, January 19, 2007 - 2:48 am: |
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अरे वा, आज कितीतरी दिवसानी मनमोकळी हसलीये मी. सगळेच सुटलेत...  
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Mankya
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| Friday, January 19, 2007 - 3:23 am: |
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मीनू छानच ! निश्कर्षावरुन प्रयत्न ठरवण्यापेक्षा कधी प्रयत्नानांनाही वाव द्यावा प्रयत्नांमागच्या हेतुचा तर कधी हेतुमागच्या मनाचाही ठाव घ्यावा ! आज तर खुप जण जमले आहेत ! मस्तच ! माणिक !
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Jo_s
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| Friday, January 19, 2007 - 3:40 am: |
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बनेल तर आहेतच झुळूका नाहीका बनवत अम्ही नाही वाचत आता तब्येतीला नाही मानवत
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तात्पर्यच काढायच तर तपशील माहिती हवा निष्कर्षच काढायचा तर निश्चय ठाम हवा! मला ते तार आणि पत्र आणि दोन पात्र.... काहीच समजल नाही!
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Shyamli
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| Friday, January 19, 2007 - 3:46 am: |
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समजण्यासारख नसतच हल्ली काही इथे, निर्मल आनंद........... जस सत्र, पत्र,गोत्र........ तसच...
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Krishnag
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| Friday, January 19, 2007 - 3:48 am: |
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मला ते तार आणि पत्र आणि दोन पात्र.... काहीच समजल नाही! >>>>> तुम्हाला समजावे म्हणून आम्ही लिहीत नसतो तुम्हाला समजले नाही हा आमचा दोष नसतो
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Himscool
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| Friday, January 19, 2007 - 4:04 am: |
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Mankya
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| Friday, January 19, 2007 - 4:11 am: |
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limbutimbu.... मस्तच ! निश्कर्ष, प्रयत्न, निश्चय ... नीट अर्थ करा खातरजमा श्रेष्ठत्वाला कधीच नसावी येथे समर्थनाची तमा ! हे फक्त सुचलं म्हणुन लिहितोय मित्रा ! माणिक !
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