Meenu
| |
| Wednesday, January 17, 2007 - 10:08 am: |
| 
|
होय की झाले होते, तुझ्यासाठी मी वेडी .. पण आता नकोच वाटते प्रेमाचीही बेडी ..
|
Mankya
| |
| Wednesday, January 17, 2007 - 10:36 am: |
| 
|
मीनु .... बरसलीस खुप दिवसांनी ! पण ...... मस्तच बरसलीस ! माणिक !
|
Mankya
| |
| Wednesday, January 17, 2007 - 10:50 am: |
| 
|
साद देतो मी सखे तु फक्त प्रतिसाद दे माझ्या जागलेल्या रात्रीला सुंदर स्वप्नांचा गाव दे ! माणिक !
|
Mankya
| |
| Wednesday, January 17, 2007 - 11:47 am: |
| 
|
परत एकदा मन तुझ्या आठवणींच्या हिंदोळ्यावर झुलले रडून मोकळ्या मनाच्या आभाळी इंद्रधनुष्य तुझ्या स्वप्नांचे फुलले ! माणिक !
|
धांदल उडते शब्दांची तु यायची असलीस की मुक्यानेच वेडे बरसतात तु जायला निघालीस की.........
|
नकळत तुझ्या येण्याची एक वेडी चाहुल लागलीये.. अर्धमेल्या माझ्या मनाला बघ नवी पालवी फुटलिये....
|
मीच केला हट्ट उन तु हार मानलीस.. सवयीन तुच माझी मिटली पापणी पुसलीस....
|
Mankya
| |
| Wednesday, January 17, 2007 - 1:28 pm: |
| 
|
काही श्वास सापडले तुझे काल आठवणी सावरताना दमला किती जीव माझा वेडे तुझ्या आठवणींमागे धावताना ! माणिक !
|
Mankya
| |
| Wednesday, January 17, 2007 - 1:33 pm: |
| 
|
साद तुझी आली अन मनी उसळती हर्षतरंग प्रितीप्रकाश मिळे पामराला अन उजळले अंतरंग ! माणिक !
|
आली तुझी याद तरी साद मी देनार नाही.... मनाला वाटले यावे तरी आता पाउल तुझ वळनार नाही...
|
वा माणिक छानच आहे... अजुन येउदेत......
|
Mankya
| |
| Wednesday, January 17, 2007 - 1:40 pm: |
| 
|
धन्यवाद मित्रा nilyakulkarni! पण आता येतो आहे ! उद्या भेटु दोस्त ! माणिक !
|
जाताना नेहमी अस ये तो म्हनाव... त्या वेड्या आशेवर रात्री शांत झोपाव..... माणिक.... चल बाय..... निलेश
|
Poojas
| |
| Wednesday, January 17, 2007 - 2:51 pm: |
| 
|
निरोप तुझा घेताना..म्हटलं होतं.."येऊन जाईन" जाता जाता सोबत म्हणून..उसने क्षण.. घेऊन जाईन वळून तुझी भेट घेणं..पुन्हा जमेल... असं नाही तरी सुद्धा..विसरभोळी.. आश्वासनं देऊन जाईन..!!!
|
Poojas
| |
| Wednesday, January 17, 2007 - 3:00 pm: |
| 
|
नाहीच जमलं.... येऊ नकोस.. निदान शब्द.. देऊ नकोस.. आशेमध्ये गुंतवून अशी.. मध्येच माघार.. घेऊ नकोस...!!!!
|
Mankya
| |
| Thursday, January 18, 2007 - 1:52 am: |
| 
|
पुजा ..... छानच ! तुझा सहवास देई आनंद तु दिलेले दु:खही बेभान करी वेदनाही होती अमृत तु दिल्यावर तीच वेदना उरावी उरी ! माणिक !
|
Mankya
| |
| Thursday, January 18, 2007 - 2:09 am: |
| 
|
ना कळले कधी शब्द तुझे ना कळला कधी ईशारा तुला पाहता सखे फ्क्त अंगोअंगी शहारा .. ना शब्द .. ना ईशारा ! माणिक !
|
Deep_tush
| |
| Thursday, January 18, 2007 - 3:30 am: |
| 
|
वा माणिक मस्त लिहलस लगे रहो माणिकभाई...... तुशार......
|
Deep_tush
| |
| Thursday, January 18, 2007 - 3:41 am: |
| 
|
माघार घेउ कसा मी जीव माझा तुझ्यात गुंतला आहे..... शब्दाच काय घेतेस मी प्रत्येक क्षण तुझाच आहे...... तुशार......
|
दिवस आणी रात्र माणसानां.. दोन पात्र! गणेश(समीप)
|