Mankya
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| Tuesday, January 16, 2007 - 7:28 am: |
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पुजा .... सुन्दरच ! शब्द छान वापरलेस ! माणिक !
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पुजा.... अतिशय सुरेख... "अडवून पापण्यांना......." भावल मनाला... प्रिति... छानच
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R_joshi
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| Wednesday, January 17, 2007 - 5:43 am: |
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रीमझिमणा-या सरीहि ओळखीच्या वाटु लागतात मनाला जेव्हा तुझ्या आगमनाचे वेध लागतात प्रिति
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दिवे लावले की किडे अधांरातून प्रकाशी भवती जमतात अन् माणसमात्र... दिवे मिटवून झोपतात! गणेश(समीप)
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Meenu
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| Wednesday, January 17, 2007 - 7:58 am: |
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अनोळखी वाटेवरती भेटे कोणी ओळखीचे, मावळतीला पुन्हा दिसावे रंग अनोखे उगवतीचे ...
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Meenu
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| Wednesday, January 17, 2007 - 8:02 am: |
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जागेपणी दिलेली वचनं मोडणारे, ईथे पदोपदी भेटतात ... स्वप्नात दिलेल्या वचनांना जागणारे, ते कुणी वेगळेच असतात ...
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Meenu
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| Wednesday, January 17, 2007 - 8:05 am: |
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मौनाचं हर एक भाषांतर चुकत गेलं .. फुल एक उमलण्यापुर्वीच मिटत गेलं ...
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Meenu
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| Wednesday, January 17, 2007 - 8:08 am: |
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जखम जुनी ही परी, वेदना नवी नवी .. असुनही वेदना, वाटते हवी हवी ..
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Mankya
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| Wednesday, January 17, 2007 - 8:08 am: |
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मीनु ..... छानच ! माणिक !
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Meenu
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| Wednesday, January 17, 2007 - 8:12 am: |
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रुकार नयनी, अधरावरती नकार होता .. मला न कळला, कसा अजब हा प्रकार होता ..
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Shyamli
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| Wednesday, January 17, 2007 - 8:12 am: |
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दिल्या वचनास ना आणखी फसायचे बेगडी जगास या आता असेच झेलत जायचे श्यामली!!
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Shyamli
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| Wednesday, January 17, 2007 - 8:17 am: |
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नि:शब्द आज शब्द माझे उमगेल का काही कुणा फार नाही सांगायचे घडला न काही येथे गुन्हा श्यामली!!!
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Mankya
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| Wednesday, January 17, 2007 - 8:17 am: |
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मीनु .... अप्रतिम ! इथे ना कोण कोणाचा ना कोणाचा शब्द चालतो माणुस म्हणुन घेतो आम्ही मनात हिन्स्र श्वापद पाळतो ! माणिक !
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Mankya
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| Wednesday, January 17, 2007 - 8:32 am: |
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शब्दशरान्चा खच पडला गेला तोल मनाचा आम्ही तरी का धरावा संयम असेल तो फुकाचा ! माणिक !
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Mankya
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| Wednesday, January 17, 2007 - 8:48 am: |
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घावांना जर असत्या जिव्हा वेदना तुम्हा कळल्या असत्या अंगार फुलतो तो मनामध्ये ज्वाला तुम्हा दिसल्या असत्या ! माणिक !
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Meenu
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| Wednesday, January 17, 2007 - 9:50 am: |
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मी कधी म्हणले सख्या नाही तुला ..? फक्त ना केला इशारा मी तुला .. समजुनीया घेशील मजला वाटले, समजुच ना शकले कधी रे मी तुला ..
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Meenu
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| Wednesday, January 17, 2007 - 9:54 am: |
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चुकलीच जर वाट तर भेटु पुन्हा ..!! भिडलीच जर नजर तर भेटु पुन्हा ..!! पहाटेला भंगताना स्वप्न माझे लाडके सांगुनी गेले मला 'भेटु पुन्हा ..!! '
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Meenu
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| Wednesday, January 17, 2007 - 9:57 am: |
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जरी वेगळे मार्ग आज, अन भाव कटु जरी मनीचे .. पुन्हा मिळावी सोबत तव, अन क्षण सोनेरी सोबतीचे .. कुणास वाटे काय हट्ट हा ..? अप्रुप ईतके काय तुझे .. रंगांधाला कसे कळावे, महत्व रंगसंगतीचे ..?
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Meenu
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| Wednesday, January 17, 2007 - 10:00 am: |
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असु दे एखादी, तुझी आठवण उशाला .. कदाचीत ती घेऊन येईल, माझ्या स्वप्नात तुला ..
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Meenu
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| Wednesday, January 17, 2007 - 10:03 am: |
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भले बुरे ते क्षण सारे, आले तसेच निघुन गेले .. अनुभवांनी आयुष्याचा, पट सोनेरी करुन गेले ..
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