R_joshi
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| Wednesday, January 10, 2007 - 3:37 am: |
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धन्यवाद माणिक, गणेश तुझ्याबरोबरची प्रत्येक भेट मजसाठी नवखी असते गर्द काळोख्या रातितील ती मजसाठी चांदरात असते प्रिति
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"कोण म्हणतं तू सोबत नसलीस की कंटाळवाणी विरह रात्र असते! त्या प्रत्येक रात्री माइया सोबत चांदण्याची वरात असते! " गणेश (समीप)
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या आधीचे पोस्ट डिलिट केले आहे... चालु द्या... 
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R_joshi
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| Thursday, January 11, 2007 - 2:39 am: |
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इन्द्रा पोस्ट का डिलिट केलिस मनाच्या पालवितुन आठवणिची पानगळ होते तुझ्याविना जीवन हे पर्णहिन झाड वाटते प्रिति
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ये कहां आ गये हम..... वैभव, स्वाती, सारंग, दीप, मयूर, मेघधारा वगैरे लोक आता इथे फिरकत नाहीत का? आणि तो झुळूकला स्वतंत्र बीबीचा दर्जा देण्यासाठी लढा देणारा गिरीराज?
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Shyamli
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| Thursday, January 11, 2007 - 12:34 pm: |
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माहीतीये, आता तर भांडणारही नाहीयेस पडत चाललेल्या अंतराला सांधणारही नाहीयेस श्यामली!!!
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Mankya
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| Thursday, January 11, 2007 - 12:43 pm: |
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आहा ...... किती दिवसानी श्यामली ! छानच !
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Shyamli
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| Thursday, January 11, 2007 - 12:44 pm: |
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ठीक आहे चल, थोडस रुसुन घे मी जरा सावरते तुही थोड आवरुन घे श्यामली!!!
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Mankya
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| Thursday, January 11, 2007 - 12:47 pm: |
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वाह ! ये हुई ना बात ! माणिक !
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Mankya
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| Thursday, January 11, 2007 - 12:52 pm: |
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सारखी आठवण तुझीच सारखा तुझाच ध्यास क्षितिजाच्या वेशीवर कललेला तुझा भास ! माणिक !
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Shyamli
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| Thursday, January 11, 2007 - 10:13 pm: |
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वाळुच हातात धरली तर उरणार काय? रीकामी होणारी मूठ आणि खोल जाणारा पाय श्यामली!!!
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Giriraj
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| Friday, January 12, 2007 - 1:08 am: |
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मित्रा, सध्या माझं असं झालय बघ... वेळ मिळेना कशाचसाठी आठवत राही तिचेच हसणे जाई सारा वेळ खरे तर सोसत हसण्या आधीचे रुसणे! गिरिराज
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"इथला प्रत्येक देव खरच साधा आणी भोळा आहे त्याच्या समोरच्या पैशावर... फक्त पुजार्यांचाच डोळा आहे!" गणेश(समीप)
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गणेश मस्तं. देवाचा अभिषेक करायला पुरे होत नाही भक्ती काही लोकांनी केली त्यावर पैशाची सक्ती श्री
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Mankya
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| Friday, January 12, 2007 - 4:11 am: |
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देव म्हणे भक्तहो नाही भक्तिची सक्ती नि : स्वार्थ तुझी प्रिति हिच माझी तृप्ति ! माणिक !
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झाडावर पक्षी जमतात तेव्हां झाडाला किती आनंद होत असेल पक्षी उडून गेल्यामुळेच तर झाड... कदाचीत पानं गाळत नसेल? गणेश(समीप)
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R_joshi
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| Friday, January 12, 2007 - 4:42 am: |
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रात्र हि जागलि अंधारलेलि गोठणा-या श्वासासोबत स्वप्न पालवि गळते जाणा-या श्वासासोबत प्रिति
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Mankya
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| Friday, January 12, 2007 - 5:31 am: |
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प्रिति छान ! गोठलेली रात्र भिजलेली गात्र ! माणिक !
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तू हसलीस की हे जग मला माझं वाटतं मग मलाही जगताना... थोडं ताजं वाटतं गणेश(समीप)
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Mankya
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| Friday, January 12, 2007 - 6:45 am: |
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हे पटल ह .. गणेश ! माणिक !
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