प्रिति छान लिहिलस अगदी. शांतसमयी कुणाची ती आर्जवी हाक होती? एकदम झक्कास. श्री
|
Mankya
| |
| Friday, March 09, 2007 - 12:42 am: |
| 
|
सुख दुःखाच्या रंगात रंगुनी अंती मिळाला तुझा रंग श्रीधरा दंग व्हाव तुझ्या रंगात रंगुनी सुखे पाहो सर्व आजची रंगपंचमी ! मित्रांनो, सर्वांना रंगपंचमीच्या मनापासून शुभेच्छा ! माणिक !
|
कधी साथ द्याया उरे फ़क्त भास कुणी हात द्यावा, नसे काही खास मनाचेच घाव, मनाचाच ठाव जीवाचा जीवाला अवेळीही त्रास...
|
Mankya
| |
| Sunday, March 11, 2007 - 1:53 am: |
| 
|
तुझाच भास तुझीच आस नकळत .. मना तुझाच ध्यास ! माणिक !
|
प्रत्येक नोटेवर गांधीजीचां हसरा फोटो असतो आपण मात्र किती रडत,रडत नोटांचा व्यवहार करतो. गणेश(समीप)
|
माणक्या, लय झकास राव
|
Mankya
| |
| Monday, March 12, 2007 - 4:21 am: |
| 
|
तु समोर असताना कुठलं आलय भान तुझा सहवास म्हणजे मज अस्तित्वाला आव्हान ! भ्रमरा ... आभार ! माणिक !
|
R_joshi
| |
| Monday, March 12, 2007 - 8:16 am: |
| 
|
मी न मी राहिले तुजसी जेव्हा पाहिले भान हरपल्याचे क्षण आजहि स्मरणात राहिले प्रिति माणिक....
|
R_joshi
| |
| Monday, March 12, 2007 - 8:26 am: |
| 
|
आपलीही एक छबी स्मरणात त्याच्या यावी चुकुनच का होईना आठवण त्याने काढावी आपलेही काहि स्वर कानात त्याच्या घुमावेत नकळत का होईना मनात त्याने आठवावेत आपल्याहि काहि वाटा घराशी त्याच्या मिळाव्यात चारपावल का असेनात त्यावरुन त्याने चालावे आपल छोटस जीवन त्याच्या जीवनाशी समरस व्हावे स्वप्नातच का होईना त्याने मला आपले मानावे. प्रिति
|
R_joshi
| |
| Monday, March 12, 2007 - 8:34 am: |
| 
|
रंग वेड्या आभाळाचा सांग कोणी घेतला पाहा पाहा हा गिरीधर निळा कसा झाला प्रिति पुढे सुचत नाहि आहे तुम्हि मदत करावी.
|
व्वा!!! प्रिति ग्रेट. छान लिहिलसं. श्री
|
Mankya
| |
| Wednesday, March 14, 2007 - 11:55 pm: |
| 
|
विठ्ठलकृपे जीवना सुखतरंग मना रंगतो तुज भक्तिरंग एकादिशीदिनी मन दंग हाक देण्या माऊलीस .. पांडुरंग पांडुरंग ! माणिक !
|
Mankya
| |
| Thursday, March 15, 2007 - 1:06 am: |
| 
|
अनुभवुनी कृपाप्रकाश उजळतो अंतरंग ह्रदयी एकच नाद उरतो पांडुरंग पांडुरंग ! माणिक !
|
Mankya
| |
| Thursday, March 15, 2007 - 1:46 am: |
| 
|
घेता तुझे नाम देवा वेड लागे जीवाला नामाच्या गोडिची सर कुठे अमृताला ! माणिक !
|
Suvikask
| |
| Thursday, March 15, 2007 - 3:21 am: |
| 
|
अरे वा!!! काय माणिक मोती सांडलेत...
|
Mankya
| |
| Thursday, March 15, 2007 - 9:16 am: |
| 
|
लोक म्हणे ' रीकाम्या हाती आलो रीकाम्या हातीच जायचे ' पण प्रश्न पडला, तुझ्याकडे प्रथमभेटी रिक्तहाती कसे यायचे ...! माणिक !
|
Meghdhara
| |
| Thursday, March 15, 2007 - 10:02 am: |
| 
|
व्वा माणिक! प्रथम भेटी.. सुंदरच. मेघा
|
Mankya
| |
| Thursday, March 15, 2007 - 10:50 am: |
| 
|
मनःपुर्वक आभार ....Suvikask, मेघा ! उत्तर मिळालं प्रथमदर्शनी प्रश्नाचं भावाकडून ! भेट नसेल ती पहिली असेल तुज विसर पडला अंतरी वसतो तुझ्या, ऐक तरी मी भावाचा, भक्तिचा भुकेला ! माणिक !
|
Mankya
| |
| Thursday, March 15, 2007 - 11:00 am: |
| 
|
याची देहि याची डोळा पाहिला विठ्ठल सावळा दाटतो कंठ जसे दिसता माऊलीचे वास्त्यल्य बाळा ! माणिक !
|